नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 24 अक्टूबर को शीर्ष अदालत में निर्धारित बकाया समेकित सकल राजस्व (एजीआर) का स्व-मूल्यांकन या फिर से आकलन करने के लिये केन्द्र और दूरसंचार कंपनियों को बुधवार को आड़े हाथ लिया.
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने एजीआर के मुद्दे पर लगातार समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहे लेखों पर नाराजगी वयक्त की और कहा कि इन सभी दूरसंचार कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जायेगा और भविष्य में समाचार पत्रों में ऐसे किसी भी लेख के लिये उन्हें न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया जायेगा.
पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को एजीआर की बकाया राशि का भुगतान 20 साल में करने की अनुमति देने के लिये केन्द्र के आवेदन पर विचार करने से इंकार कर दिया. पीठ ने कहा कि इस आवेदन पर दो सप्ताह बाद विचार किया जायेगा. पीठ ने सारे घटनाक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा कि दूरसंचार कंपनियों द्वारा एजीआर के स्व-मूल्यांकन की अनुमति देकर हम न्यायालय के अधिकारों का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं दे सकते.
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पीठ ने कहा कि न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों की दलीलें विस्तार से सुनने के बाद एजीआर के बकाये के मुद्दे का निबटारा किया है और उस समय सरकार ने ब्याज और जुर्माने की राशि के लिये जोरदार दलीलें दी थीं. पीठ ने कहा कि एजीआर की बकाया राशि का 20 साल में भुगतान के लिये केन्द्र का प्रस्ताव अनुचित है और दूरसंचार कंपनियों को शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप बकाये की सारी राशि का भुगतान करना होगा.