नई दिल्ली : पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर में बढ़ते मामलों से हैरान है. देश के कुछ राज्यों और शहरों में लगाए जा रहे नाइट कर्फ्यू और सीमित अवधि के लिए लॉकडाउन स्थिति की गंभीरता को इंगित कर रहे हैं. साथ ही यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि यदि मामलों में और वृद्धि होती है तो व्यापक लॉकडाउन भी लगाया जा सकता है.
भारतीय उद्योग परिसंघ और फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जैसे व्यापार निकायों और टीसीएस और एलएंडटी जैसे निकायों के साथ बात करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देशव्यापी लॉकडाउन को नकार दिया. वहीं देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने हर उन उपायों को अपनाने को कहा जिससे देश लॉकडाउन से बच सकता है. दोनों के शब्दों में कोई विरोधाभास नहीं है.
जब पिछले साल लॉकडाउन लगाया गया था, तो देश की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में 23.9 प्रतिशत कम हो गई थी. इसी कारण केंद्र अब जीवन और आजीविका की रक्षा करने की रणनीति में लगा हुआ है.
पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान घोषित विभिन्न योजनाओं में यह जाहिर होता है. कई रिपोर्टों में पहले ही यह संकेत मिल रहा है कि छोटे व्यवसायी, माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज और दैनिक मजदूरी अर्जक कोविड के पुनरुत्थान के परिणामस्वरूप दयनीय स्थिति का सामना कर रहे हैं. मानवीय सहायता को बढ़ाने के लिए रणनीति को अब तेज किया जाना चाहिए.
इससे पहले, भारतीय रिजर्व बैंक ने उन मामलों में 25 करोड़ रुपये तक के ऋण को पुनर्निर्धारित करने के लिए एक उदार निर्णय की घोषणा की थी, जहां ऋणदाता एक बार में राशि चुकाने में असमर्थ है. यह योजना दिसंबर 2020 में समाप्त हो गई. वित्त उद्योग विकास परिषद की मांग है कि इस योजना को मार्च 2022 तक बढ़ाया जाना चाहिए. वर्तमान स्थिति की पृष्ठभूमि में यह मांग तर्कसंगत भी है. करोड़ों लोगों को लाभ पहुंचाने वाले फैसले लेने में देरी का कोई कारण नहीं है.
कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले, केंद्र ने लघु उद्योग की जीडीपी में हिस्सेदारी 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की थी. महामारी संकट की अप्रत्याशित पुनरावृत्ति ने सरकार के अनुमानों को उल्टा कर दिया है.