नई दिल्ली: मूर्ति बाजार में इस त्योहारी मौसम में 'मेक इन इंडिया' का जलवा है. 'मेड इन चाइना' काफी हद तक गायब है. पिछले कई बरसों से दिवाली पर देवी-देवताओं की मूर्तियों के बाजार में 'ड्रैगन' का कब्जा था.
लेकिन इस बार ऐसा नहीं है और देश में बनी मूर्तियां ज्यादा दिखाई दे रही हैं. राजधानी के सदर बाजार में पिछले तीन दशक से अधिक समय से उपहार सामग्री का कारोबार कर रहे स्टैंडर्ड ट्रेडिंग के सुरेंद्र बजाज ने कहा, "इस बार मूर्तियों के बाजार से चीन काफी हद तक गायब है. बहुत कम व्यापारी चीन से आयातित मूर्तियां बेच रहे हैं."
दिल्ली व्यापार महासंघ के अध्यक्ष देवराज बावेजा कहते हैं, "इस बार व्यापारियों ने चीन से बहुत कम मूर्तियों का आयात किया है. आयात कम होने की वजह चीन से आयातित मूर्तियों के दाम में वृद्धि है."
उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारतीय मूर्तिकारों ने अब चीन की तकनीक को समझ लिया है और अपने उत्पादों में उसी के अनुरूप सुधार किया है. यही वजह है कि आज भारतीय मूर्तिकारों ने चीन को पछाड़ दिया है. आज मूर्तियों के बाजार में चीन का हिस्सा बमुश्किल दस प्रतिशत रह गया, जो पांच-छह साल पहले तक 70-80 प्रतिशत पर पहुंच गया था.
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उल्लेखनीय है कि पिछले कई साल से विशेषरूप से दिवाली के मौके पर चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चलाया जा रहा है. व्यापारियों का मानना है कि चीन की मूर्तियों की मांग घटने की एक वजह यह अभियान भी हो सकता है.
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीन खंडेलवाल ने कहा, "चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान असर मूर्तियों के बाजार पर दिख रहा है. ज्यादातर व्यापारी इस बार देश में बनी मूर्तियां ही बेच रहे हैं."
खंडेलवाल कहते है कि व्यापारियों का तो इसमें योगदान है ही, साथ ही ग्राहक भी अब चाइनीज गॉडफिगर खरीदने से कतराता है. ज्यादातर ग्राहक अब देश में निर्मित मूर्तियों की मांग करते हैं. ऐसे में जैसी मांग होगी, वैसा उत्पाद व्यापारी बेचेंगे.