नई दिल्ली:वैश्विक महामारी कोविड-19 वायरस, जिससे अब तक देश में 1,38,000 लोगों और पूरे विश्व में 1.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो चुकी है, की अत्याधिक संक्रामक प्रकृति के बावजूद भारत में एक बड़ा तबका है, जो वैक्सीन के प्रभाव और दुष्प्रभावों को लेकर संदेह में है.
कम्युनिटी एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म लोकलसक्रिल्स के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि एक चौथाई से भी कम भारतीय, विशेष रूप से फ्रंटलाइन कार्यकर्ता, जो कुल उत्तरदाताओं का सिर्फ 8% का गठन करते हैं, वैक्सीन के उपलब्ध होते ही इसे लेने के लिए तैयार थे.
सर्वेक्षण ऐसे समय में हुई जब कम से कम चार वैक्सीन उम्मीदवारों, फाइजर बायोएनटेक, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका और रूसी स्पुतनिक वी वैक्सीन ने उच्च प्रभावकारिता का दावा किया है, कुछ मामलों में तो 90 फीसदी तक प्रभावकारिता का दावा है.
यूके सरकार ने बुधवार को फाइजर के टीके को देश में आपातकालीन टीकाकरण उपयोग के लिए अधिकृत किया है, जिसके अगले सप्ताह से शुरू होने की उम्मीद है.
हालांकि, 23 से 30 नवंबर के बीच लोकलसक्रिल्स द्वारा किए गए 25,000 से अधिक प्रतिभागियों के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में बहुत कम प्रतिभागी कोविड वैक्सीन लेने के लिए तैयार थे.
केवल 8% प्रतिभागियों ने कहा कि वे किसी भी माध्यम से वैक्सीन लेते हैं जैसे ही यह उपलब्ध हो जाता है, जबकि 13% ने कहा कि वे इसे तब ही लेंगे जब इसे स्वास्थ्य सेवा माध्यम से प्रदान किया जाएगा.
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11% प्रतिभागियों ने कहा कि वे कोविड की वैक्सीन तभी लेंगे, जब इसे एक निजी स्वास्थ्य सेवा चैनल के माध्यम से प्रदान किया जाएगा. यह नागरिकों की इस धारणा को रेखांकित करता है कि सरकारी अस्पतालों द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर लोगों को संदेह है.
गौरतलब है कि 59% लोगों ने कहा कि वे कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए वैक्सीन लेने में जल्दबाजी नहीं करेंगे क्योंकि वे इसकी प्रभावकारिता और दुष्प्रभाव पर संदेह है.
नमूने आकार के 28 फीसदी लोगों ने कहा कि वे वैक्सीन लेने से पहले 3-6 महीने तक का इंतजार करेंगे. इनमें से लगभग एक चौथाई, कुल प्रतिभागियों में से 13% ने कहा कि वे 6-12 महीनों तक इंतजार करेंगे, जबकि लगभग 12% संशयवादी, कुल नमूना आकार का 7%, ने कहा कि वे अगले साल वैक्सीन नहीं लेंगे.