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नया नहीं व्यापार बहिष्कार, जानिए इतिहास

देशों के बीच तनाव होने के बाद एक दूसरे के सामानों या व्यापार का बहिष्कार करना कोई नई घटना नहीं है. इससे पहले भी कई देशों ने इसे एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया है. जानिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बहिष्कार का संक्षिप्त इतिहास...

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Published : Jun 21, 2020, 1:24 PM IST

Updated : Jun 21, 2020, 1:32 PM IST

नया नहीं व्यापार बहिष्कार, जानिए इतिहास
नया नहीं व्यापार बहिष्कार, जानिए इतिहास

नई दिल्ली: लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की कायराना हरकत के बाद देशभर में चीन के प्रति उबाल है. इस हिंसक टकराव में भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत 20 जवानों की शहादत के बाद देशभर में लोगों में आक्रोश है. जिससे एक बार फिर से चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील की जा रही है.

बता दें कि देशों के बीच तनाव होने के बाद एक दूसरे के सामानों या व्यापार का बहिष्कार करना कोई नई घटना नहीं है. इससे पहले भी कई देशों ने इसे एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया है. जानिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बहिष्कार का संक्षिप्त इतिहास.

चीन और जापानी संबंधों में बॉयकॉट पर एक संक्षिप्त जानकारी

साल 1928 और 1932 के बीच जापान के साथ अपने संघर्ष में अहिंसात्मक उपकरण के रूप में चीन ने टैरिफ और बहिष्कार का उपयोग जापानी आयात को कम करने के लिए किया था. लेकिन यह जापानी आक्रमण को हतोत्साहित करने के लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरी तरह से प्रभावी साबित नहीं हुआ. वहीं, 1930 के दशक में जापान के तरफ से भी ऐसा ही किया गया था.

साल 1931-32 में वानपॉशन अफेयर के दौरान चीन द्वारा जापानी आक्रमण के जवाब में जापानी सामानों का बार-बार बहिष्कार किया गया. वहीं, चीनी उपभोक्ता ने सेनकाकू / डियाओयू द्वीप के संघर्ष के बाद 2012 में जापान के खिलाफ बहिष्कार किया था.

चीन और पश्चिमी शक्तियां (1900-1940)

चीनी बाजार पर विदेशी उत्पादों के बहिष्कार ऐतिहासिक रूप से चीनी राष्ट्रवाद के उद्भव और महान शक्तियों द्वारा तंग किए जाने की भावना से संबंधित हैं. चीनी उपभोक्ताओं और व्यापारियों द्वारा समान रूप से समर्थित बॉयकॉट, उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से चीन-पश्चिमी संबंधों की आवर्ती विशेषता थी और 1900 और 1940 के बीच विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई थी.

पहला प्रमुख राष्ट्रव्यापी बहिष्कार 1905 में हुआ और इसका उद्देश्य अमेरिकी सामानों के खिलाफ था. उस समय चीन में यह धारणा प्रबल थी कि अमेरिकी सरकार ने चीन के अप्रवासियों के साथ कठोर और अनुचित व्यवहार किया. 1905 की गर्मियों के दौरान प्रमुख चीनी शहरों के व्यापारियों ने अमेरिकी उत्पादों में व्यापार करने से इनकार कर दिया था.

चीन ने साल 1925-1926 में एक और बड़ा बहिष्कार किया था. इस बार ब्रिटिश निर्मित सामानों को निशाना बनाया गया था. ब्रिटिश विरोधी बहिष्कार विशेष रूप से दक्षिणी चीन में उग्र था.

इंगलैंड में बहिष्कार आंदोलन

इंग्लैंड में एक बड़े पैमाने पर बहिष्कार आंदोलन पहली बार 24 मार्च, 1935 को लंदन के ईस्ट एंड के यहूदी क्वार्टर में शुरू हुआ. इसके परिणामस्वरूप फर का व्यवसाय व्यावहारिक रूप से बंद हो गया. ब्रिटिश यहूदियों के बोर्ड ऑफ डिप्टीज ने 1930 के पूरे दशक में इस बहिष्कार को जारी रखा.

रंगभेद व्यवस्था के खिलाफ दक्षिण अफ्रीकी सामानों का बहिष्कार

1950 के दशक के उत्तरार्ध में दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद प्रणाली के विरोध में दुनिया भर में बहिष्कार आंदोलन शुरु हुआ था. दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए बहिष्कार आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय दबाव के रुप में उपयोग करने का लक्ष्य था.

इजराइल उत्पादों के खिलाफ अरब लीग का बहिष्कार

दो दिसंबर 1945 को नवगठित अरब लीग परिषद द्वारा औपचारिक रूप से अरब बहिष्कार की घोषणा की गई. इसमें कहा गया कि यहूदी उत्पादों और उनके देश में निर्मित वस्तुओं को अरब देशों में नहीं बेचा जाएगा. सभी अरब संस्थानों, संगठनों, व्यापारियों, कमीशन एजेंटों और व्यक्तियों को बुलाया गया था और बताया गया कि इजराइल में निर्मित सामानों का बहिष्कार करने को कहा गया.

संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस

साल 2003 में इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने फ्रांस में बने उत्पादों का बहिष्कार किया था.

मुस्लिम देशों द्वारा डेनमार्क वस्तुओं का बहिष्कार

साल 2006 में मुहम्मद के विवादित कॉमिक की प्रतिक्रिया में मुस्लिम देशों ने डेनमार्क की वस्तुओं का बहिष्कार किया था.

दक्षिण कोरिया का जापानी सामानों का किया बहिष्कार

एक जुलाई 2019 को जापान ने दक्षिण कोरिया के तकनीकी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण तीन रसायनों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया. निर्यातकों को हर बार के लाइसेंस के लिए आवेदन करना होता था. जिसमें 90 दिनों तक का समय लग जाता था. वहीं, जापानी सरकार ने दक्षिण कोरिया को भरोसेमंद व्यापार प्राप्त करने वाले भरोसेमंद देशों की अपनी 'सफेद सूची' से हटाने पर भी विचार कर रही थी.

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन ने इसे गंभीर चुनौती बताया और दक्षिण कोरिया के उच्च तकनीकी क्षेत्र को जापानी आपूर्ति पर निर्भरता से दूर करने का वादा किया. जिसके बाद दक्षिण कोरियाई लोगों ने भी जापानी सामान का बहिष्कार करना शुरु कर दिया.

Last Updated : Jun 21, 2020, 1:32 PM IST

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