नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए केंद्र सरकार ने जूट किसानों को दीपावली का खास उपहार दिया है. क्योंकि 76 जूट मिलों में से 55 मिलें पं. बंगाल की धरती पर स्थित है. बीते दिनों संपन्न हुई केंद्रीय कैबिनेट मीटिंग में जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.
बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि कि मंत्रिमंडल ने अनिवार्य जूट पैकेजिंग आदेश का विस्तारित करने का निर्णय लिया है. जिससे प्रत्येक किसान को 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आय होगी.
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस साल से 10 फीसदी जूट को जीएम पोर्टल पर नीलामी के लिए रखा जाएगा, जिसके जरिए एक नई कीमत डिस्कवरी करने का प्रयास किया जाएगा.
इस निर्णय से हजारों किसानों के साथ साथ साथ जूट उद्योग में लगे लगभग चार लाख श्रमिकों को लाभ होगा. पैकेजिंग में जूट की अनिवार्यता से उद्योग को भी काफी समर्थन की आशा है.
जूट को भारत का स्वर्ण फाइबर कहा जाता है और कपास के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण फाइबर है. जूट (पटसन) मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, ओडिशा, मेघालय, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है. पश्चिम बंगाल, असम और बिहार देश के प्रमुख जूट उत्पादक राज्य हैं, जिनका देश के जूट क्षेत्र और उत्पादन में लगभग 98 प्रतिशत हिस्सा है. देश में जूट के कुल 76 मिले हैं और इनमें से 55 मिले केवल पश्चिम बंगाल में ही है.
जूट पैकेजिंग की अनिवार्यता के केन्द्र के फैसले का स्वागत किया उद्योग ने
जूट उद्योग ने एजेंसियों के लिए अनाज और चीनी रखने में जूट के बोरों के प्रयोग की अनिवार्यता संबंधी केद्र के निर्णय का स्वागत किया है. उद्योग ने इसे इस क्षेत्र के लिए सबसे अच्छा 'दीवाली' का उपहार बताया है.
उद्योग सूत्रों ने कहा कि इससे यह पश्चिम बंगाल की 55 जूट मिलों के लिए बारदाने की सामग्री की मांग को सुनिश्चित होगी और इस क्षेत्र पर निर्भर लाखों श्रमिकों और किसानों को इसका लाभ मिलेगा.
भारतीय जूट मिल संघ के पूर्व अध्यक्ष संजय कजारिया ने कहा, "हम कोविड -19 संकट के बीच केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा आज लिए गए निर्णय का स्वागत करते हैं. यह किसानों और श्रमिकों को फायदा देगा. जूट क्षेत्र के लिए यह सबसे अच्छा दीवाली का उपहार है."