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कोरोना प्रभाव: सेबी ने विभिन्न प्रस्तावों पर सुझाव देने की समय सीमा बढ़ायी

सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा दी जाने वाली ई-वोटिंग सुविधा के प्रस्ताव के साथ प्रवर्तक इकाइयों को कर्ज या किसी प्रकार की गारंटी देने से पहले शेयरधारकों से मंजूरी लेने के प्रस्ताव पर टिप्पणी देने की समयसीमा भी बढ़ाकर 30 अप्रैल कर दी गयी है.

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Published : Apr 2, 2020, 5:18 PM IST

कोरोना प्रभाव: सेबी ने विभिन्न प्रस्तावों पर सुझाव देने की समय सीमा बढ़ायी
कोरोना प्रभाव: सेबी ने विभिन्न प्रस्तावों पर सुझाव देने की समय सीमा बढ़ायी

नई दिल्ली: बाजार नियामक सेबी ने दो पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) के बीच छह महीने का अंतर और किसी सूचीबद्ध होल्डिंग कंपनी के साथ विलय की स्थिति में एक कंपनी की सूचीबद्धता समाप्त करने के संदर्भ में नियमों में प्रस्तावित ढील पर सार्वजनिक टिप्पणी अथवा सुझाव दिये जाने की समय सीमा बढ़ाकर 30 अप्रैल कर दी है.

इससे पहले, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इन दोनों प्रस्तावों पर 15 अप्रैल तक टिप्पणी देने को कहा था.

इसके अलावा सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा दी जाने वाली ई-वोटिंग सुविधा के प्रस्ताव के साथ प्रवर्तक इकाइयों को कर्ज या किसी प्रकार की गारंटी देने से पहले शेयरधारकों से मंजूरी लेने के प्रस्ताव पर टिप्पणी देने की समयसीमा भी बढ़ाकर 30 अप्रैल कर दी गयी है. इन दोनों प्रस्तावों पर टिप्पणी 31 मार्च तक मांगी गयी थी.

नियामक ने 31 मार्च को एक रिपोर्ट में कहा, "कोरोना वायरस महामारी के कारण समयसीमा बढ़ाने के बारे में मिले आग्रह को देखते हुए विभिन्न परिचर्चा पत्रों पर टिप्पणी लेने की समयसीमा बढ़ाने का निर्णय किया गया है....ये सुझाव अब 30 अप्रैल 2020 तक दिये जा सकते हैं."

क्यूआईपी के संदर्भ में सूचीबद्ध कंपनियों के तत्काल कोष की जरूरत की स्थिति में कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करने पर पात्र संस्थागत निवेशकों को दो बार सार्वजनिक निर्गम जारी किये जाने के बीच छह महीने के अनिवार्य अंतर की जरूरत के प्रावधान में ढील देने का प्रस्ताव है.

मौजूदा निययों के तहत सूचीबद्ध कंपनियां पहले पात्र संस्थागत नियोजन के छह महीने के अंतर पर ही दूसरा क्यूआईपी जारी कर सकती हैं.

सूचीबद्धता समाप्त करने के संदर्भ में पूंजी बाजार नियामक ने सूचीबद्ध कंपनियों को उस परिस्थिति में नियमों के अनुपालन से छूट देने का प्रस्ताव किया है जब उनका किसी दूसरी सूचीबद्ध होल्डिंग कंपनी में विलय होता है और उस अनुषंगी इकाई के शेयरधारकों को मूल कंपनी के शेयर प्राप्त हो जाते हैं.

यह उन मामलों में लागू होगा जहां एक सूचीबद्ध होल्डिंग कंपनी अपनी सूचीबद्ध अनुषंगी का विलय कर रहे हैं और अनुषंगी इकाई सूचीबद्धता नियमों का अनुकरण किये बिना ही अपनी सूचीबद्धता समाप्त करना चाहती है. इसके अलावा सेबी ने पिछले महीने शेयरधारकों के लिये ई-वोटिंग प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और आसान बनाने के लिये दो व्यवस्था का प्रस्ताव किया था.

प्रस्ताव के तहत शेयरधारक ईएसपी (ई-वोटिंग सेवा प्रदाताओं) ई-वोटिंग लिंक तक पहुंच सकेंगे और इसके लिये उन्हें प्रक्रिया में भाग लेने के लिये किसी और प्रकार से सत्यापन की जरूरत नहीं होगी.

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इसके अलावा डीमैट खाताधारकों को अलग ईएसपी पोर्टल के जरिये वोट देने की अनुमति देने का प्रस्ताव है और इसके लिये उन्हें ईएसपीए पर फिर से पंजीकरण की जरूरत नहीं होगी.

फिलहाल कई इकाइयां ई-वोटिंग सुविधा सूचीबद्ध इकाइयों को उपलब्ध कराती हैं और शेयरधारकों को पंजीकृत होना होता है और विभिन्न 'यूजर आईडी' तथा 'पासवर्ड' को बनाये रखना होता है.

इसके अलावा सेबी ने अपने मसौदा पत्र में यह भी प्रस्ताव किया है कि सूचीबद्ध इकाइयों को प्रवर्तक इकाई समेत किसी को भी कर्ज या गारंटी देती हैं तो उन्हें इस बार में पहले शेयरधारकों से उसकी मंजूरी लेनी होगी.

(पीटीआई-भाषा)

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