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मोदी सरकार 2.0 के 100 दिन और अर्थव्यवस्था की स्थिति - Hyderabad

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सरकार के दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने वाले हैं. इन सौ दिनों के दौरान सरकार की चुनौतियों और उपलब्धियों पर एक नजर.

मोदी सरकार 2.0 के 100 दिन और अर्थव्यवस्था की स्थिति

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Published : Sep 6, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 2:55 PM IST

हैदराबाद: मोदी सरकार सितंबर में अपने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लेगी. इस साल गर्मियों में होने वाले आम चुनाव में बीजेपी ने धमाकेदार जीत दर्ज कर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. जब लोगों ने इस सरकार को दोबारा चुना तो सरकार से लोगों की आशाएं, आकांक्षाएं और उम्मीदें काफी बढ़ गई.

जब तक नई सरकार अपना कार्यभार संभालती तब तक उसे वित्तीय और वृहद आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ा. एक तरफ गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां और आईएलएंडएफएस के पतन के बाद बाजार को गंभीर तरलता की कमी का सामना कर पड़ा तो दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का स्वास्थ्य प्रमुख चिंता का विषय बन गया.

बाजार को रास नहीं आया बजट
वहीं, बाहरी मोर्चे पर व्यापार युद्ध के बादल भी मंडरा रहे थे और वैश्विक आर्थिक स्थिरता दांव पर थी. कृषि संकट भी तेज था और ग्रामीण आय में वृद्धि एक बड़ी चुनौती थी. इस बीच मौद्रिक प्राधिकरण एक तरल मौद्रिक नीति के साथ तरलता के मुद्दों को हल करने का प्रयास कर रहे थे. हालांकि, राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की बाधाओं को देखते हुए अर्थव्यवस्था में कोई राजकोषीय ग्रोथ नहीं आया और बजट के बाद की अवधि में बाजार बेहद कमजोर पड़ गया.

अर्थव्यवस्था में आया धीमापन
लगभग तीन महीनों के बाद सरकार को ऑटोमोबाइल और फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स यानी एफएमसीजी सेक्टर में भारी नुकसान के साथ आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा. जबकि अप्रैल और अगस्त 2019 के बीच ऑटो मोबाइल उद्योग ने 3,50,000 श्रमिकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. वहीं, एफएमसीजी की वृद्धि जो कि अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत मानी जाती है वह भी इस दौरान केवल 10 प्रतिशत की धीमी रफ्तार के साथ बढ़ी.

जब पारले की मांग में आई गिरावट
पारले जैसे ब्रांड, जो बड़े पैमाने पर कम आय वर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करते हैं. उनके अपने उत्पादों की मांग में गिरावट आ गई जिसके कारण उन्हें अपने कर्मचारियों छटनी करनी पड़ी. इसके अलावा साबुन, मसाले और पैकेट चाय जैसे उत्पादों की बिक्री में भारी गिरावट है आई. जिनकी बिक्री काफी हद तक भारतीय मध्यम वर्ग और कम आय वाले समूहों की खपत पर निर्भर करती है.

इस प्रवृत्ति से यह संकेत मिला कि उपभोक्ता अब पैसे खर्च करने से हिचक रहे हैं और आम परिवार अपने खर्च और खपत के बारे में सतर्क हो रहे हैं, जो कि आर्थिक विकास के लिए शुभ संकेत नहीं है. वास्तव में इसका अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू मांग पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. जिसके परिणामस्वरूप देश के उत्पादन, रोजगार, आय और अंततः सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर व्यापक असर पड़ेगा.

एक तरह से देखा जाए तो सरकार आज उसी स्थिति का सामना कर रही है जो तीन महीने पहले थी. फर्क सिर्फ इतना है कि समस्याओं की तीव्रता बढ़ गई है और उसे अधिक चुनौतीपूर्ण बनाने के लिए देश की जीडीपी वृद्धि जनवरी-मार्च के 5.8 प्रतिशत के मुकाबले अप्रैल-जून तिमाही में घटकर 5 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह स्थिति की गंभीरता है जिसने सरकार को नीतिगत उपायों की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया.

एक्शन मोड में आई सरकार
भारत सरकार इस स्थिति को दूर करने के लिए कई उपायों के साथ आई. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 28 अगस्त को प्रेस कांफ्रेंस करके कई घोषणाएं की. जिसमें 'एंजेल टैक्स' से स्टार्ट-अप्स को छूट देने, विदेशी और घरेलू इक्विटी निवेशकों पर बढ़ाया सुपर-रिच टैक्स का वापस लेना शामिल था. सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये खर्च करने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई. इसके अलावा ऑटो सेक्टर में संकट को दूर करने के उपायों की भी घोषणा की गई. जिसमें नए पेट्रोल और डीजल वाहन खरीदने पर सरकारी विभागों से प्रतिबंध हटाने और पुराने वाहनों को हटाने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना शामिल थी.

वहीं, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को भी आश्वासन दिया गया था कि लंबित जीएसटी रिफंड 30 दिनों के भीतर किया जाएगा. इन उपायों के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 अगस्त, 2019 को अनुबंध निर्माण, कोयला खनन और संबंधित बुनियादी ढांचे में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दे दी और कई एफडीआई संबंधित नियमों में भी ढील दी. सरकार ने इस संदर्भ में 30 प्रतिशत घरेलू सोर्सिंग की परिभाषा का भी सरल बना दिया.

इन उपायों के अलावा सरकार ने एकल-ब्रांड रिटेल के तहत ऑनलाइन खुदरा बिक्री की अनुमति दी और और डिजिटल मीडिया में 26 प्रतिशत एफडीआई को भी मंजूरी दी.

सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रमुख नीतिगत सुधारों में 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय कर चार संस्थाएं में बनाना महत्वपूर्ण कदम था. इसके अलावा पीएसबी बोर्डों में सुधार के उपायों की भी घोषणा की गई है, जो बैंकों के शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने में मददगार साबित होंगे. ये सभी उपाय भारत के वित्तीय बाजारों में विश्वास बढ़ाएंगे. इसके साथ ही अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए और बेहतर एवं ठोस प्रयासों को भी लागू किया जाना चाहिए.

ग्रामीण विकास में तेजी लाने और कृषि के बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए. अर्थव्यवस्था में बढ़ती मंदी को देखते हुए राजकोषीय घाटे की कीमत पर भी सार्वजनिक व्यय को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है. लंबे समय में नीति निर्माताओं को आय असमानताओं से संबंधित मुद्दों को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो अन्यथा कुछ व्यक्तियों के हाथों में धन की एकाग्रता को बढ़ावा दे सकता है और इस प्रकार लंबी अवधि में कुल मांग को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है.

एनडीए के पास पर्याप्त राजनीतिक शक्तियां हैं. सरकार को सिर्फ अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कठोर कदम लेने होंगे और देश को जल्द से जल्द आर्थिक मंदी से निकालना होगा.

(लेखक - डॉ.महेंद्र बाबू कुरुवा, सहायक प्रोफेसर, एच एन बी केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड)

Last Updated : Sep 29, 2019, 2:55 PM IST

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