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जब इंकलाब-जिंदाबाद का नारा देने वाले फांसी पर झूले...

आज ही के दिन भारत मां के तीन सपूतों ने हंसते हुए सूली चढ़ी और मौत को गले लगा लिया. वो अमर वीर जवान, जिन्होंने इंकलाब-जिंदाबाद का नारा लगाया और आजाद भारत में हमेशा के लिए सो गए, उन्हें हमारा सलाम.

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Published : Mar 23, 2019, 2:01 PM IST

देश के वीर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु. (डिजाइन फोटो)

नई दिल्ली: 23 मार्च 1931 को भारत मां के तीन सपूत हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए थे. इंकलाब-जिंदाबाद का नारा देने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को आज ही के दिन ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दी थी. उनकी शहादत को याद करने के लिए इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है.

1928 में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी थी. जिसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने तीनों वीरों को फांसी की सजा सुनाई थी. जब-जब आजाद भारत की कहानी सुनाई जाती है, तब-तब भारत मां के इन वीर सपूतों को याद किया जाता है.

लाहौर की सेंट्रल जेल में दी गई थी फांसी
लाहौर की सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी पर चढ़ाया गया. तीनों वीर इंकलाब-जिंदाबाद का नारा लगाते हुए देश के लिए शहीद हो गए.

प्रधानमंत्री मोदी ने वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की
शहीद दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया. देश के महान और अमर वीर जवानों को याद करते हुए उन्होंने लिखा, 'आजादी के अमर सेनानी वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद दिवस पर शत-शत नमन. भारत माता के इन पराक्रमी सपूतों के त्याग, संघर्ष और आदर्श की कहानी इस देश को हमेशा प्रेरित करती रहेगी. जय हिंद!'

भारत के अमर वीरों को सलाम. (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री ने अपने ब्लॉग में लिखा, ‘आज का दिन देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है. उन्होंने कहा कि मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

गौरतलब है कि 23 मार्च, 1931 को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तीन बड़े नायकों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.

मोदी ने कहा कि अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी तथा अप्रतिम देशभक्त डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर सादर नमन. प्रखर बुद्धि के धनी डॉ. लोहिया में जन सरोकार की राजनीति के प्रति गहरी आस्था थी.

उन्होंने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में डॉ. लोहिया का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है.

मोदी ने कहा कि जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों, वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे.

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