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राहतभरी खबर: जाइडस कैडिला की कोविड वैक्सीन का ट्रायल पूरा, इमरजेंसी यूज के लिए किया आवेदन

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Published : Jul 4, 2021, 4:28 PM IST

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए जहां केंद्र सरकार की ओर से सभी आवश्यक उपाय किए जा रहे हैं, वहीं वैक्सीन निर्माता कंपनियां भी निर्माण की दिशा में तेजी से काम कर रही हैं. इसी के तहत अग्रणी फार्मास्युटिकल कंपनी जाइडस कैडिला की कोविड वैक्सीन भी ट्रायल पूरा हो चुका है और कंपनी ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पास वैक्सीन के इमजेंसी यूज के लिए आवेदन कर दिया है.

Zydus Cadila's Covid Vaccine, Covid Vaccine
कोरोना वैक्सीन

हैदराबाद:कोरोना वैक्सीन को लेकर एक और राहतभरी खबर आई है. फार्मास्युटिकल कंपनी जाइडस कैडिला की कोविड वैक्सीन भी ट्रायल पूरा होने के बाद इमरजेंसी उपयोग (Emergency Use) के लिए तैयार है. इसके लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drug Controller General of India) को आवेदन भी किया गया है. ये वैक्सीन कोविड-19 के खिलाफ प्लास्मिड डीएनए आधारित है.

कंपनी ने बताया कि देश में अब तक 50 से अधिक केंद्रों पर इस कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ​​​​ट्रायल (Clinical Trial) किया गया. वैक्सीन की खासियत है कि ये देश की पहली ऐसी कोरोना वैक्सीन है जिसका ट्रायल 12-18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों पर किया गया.

जाइडस कैडिला की वैक्सीन कैसे है अन्य से अलग?

वैक्सीन दुनिया की पहली 'प्लास्मिड डीएनए' वैक्सीन है, जो नोवल कोरोना वायरस पर कारगर है. वैक्सीन की डोज लगने के बाद शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ स्पाइक प्रोटीन यानी एंटीबॉडी (Antibodies) तेजी से उत्पन्न होता है. वैक्सीन सेलुलर (टी लिम्फोसाइट्स इम्युनिटी) और ह्यूमरल (एंटीबॉडी-मध्यस्थता प्रतिरक्षा) के मेल से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती है. इसकी एक और खासियत है कि ये एक इंट्राडर्मल वैक्सीन है यानी कि जिसे 'सुई-मुक्त इंजेक्टर' का उपयोग करके लगाया जाता है.

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ये वैक्सीन मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड (Messenger Ribonucleic Acid) वैक्सीन की तरह से ही असर करती है और शरीर में स्पाइक प्रोटीन के कोड विकास करती है. जबकि अन्य वैक्सीन जैसे कि कोविशील्ड और स्पुतनिक-वी वायरल वैक्टर से शरीर में स्पाइक प्रोटीन के कोड का विकसित करते हैं. इसी तरह नोवावैक्स वैक्सीन स्वयं प्रोटीन की आपूर्ति करता है, जबकि को-वैक्सिन एक निष्क्रिय वायरस को सक्रिय करके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है.

वैक्सीन ऐसे करती है काम

प्लाज्मिड डीएनए (Plasmid DNA) ऐसे अणु होते हैं जो कि स्वतंत्र रूप से शरीर में पहले से मौजूद डीएनए के गुणसूत्र को दोहराते हैं और ये मुख्य रूप से बैक्टीरिया में पाए जाते हैं. प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन में शरीर के सही ऊतकों में इंजेक्शन लगाना भी शामिल है जिसमें प्रतिजन यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता का डीएनए अनुक्रम में एन्कोड होता है. शरीर में बी और टी-सेल को मिलाकर ये वैक्सीन ज्यादा लाभ देती है.

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50 से अधिक केंद्रों पर वैक्सीन के क्लीनिकल ​​​​ट्रायल में अभी तक वैक्सीन का रिजल्ट काफी बेहतर रहा है. कंपनी की ओर से बताया गया है कि सभी परीक्षणों की निगरानी एक स्वतंत्र डेटा सुरक्षा बोर्ड ने की है. देश में यह भी पहली बार हुआ कि 12-18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों पर कोरोना वैक्सीन का परीक्षण हुआ और इस दौरान लगभग 1000 मापदंडों पर टीका सफल रहा है. कंपनी के अंतरिम विश्लेषण में रोगसूचक कोरोना के पॉजिटिव (Corona Positive) मरीजों पर टीके का प्राथमिक असर 66.6 प्रतिशत रहा.

जानें उत्पादक क्षमता के बारे में

कंपनी की ओर से जानकारी दी गई है कि 45-60 दिनों में वैक्सीन का उत्पादन शुरू करने की योजना बन रही है, जो मंजूरी मिलने के बाद मैन्युफैक्चरिंग स्केल-अप के अधीन है. कंपनी की ओर से जल्द ही गुजरात के अहमदाबाद में स्थित जाइडस बायोटेक पार्क में अपने संयंत्र में उत्पादन शुरू किया जाएगा.

साथ ही पूरी उम्मीद है कि 15 अगस्त तक हर महीने 1 करोड़ डोज की उत्पादन क्षमता हो जाएगी. कंपनी निर्माण संगठनों के साथ अनुबंध करके वैक्सीन की 50-70 मिलियन खुराक के उत्पादन की तकनीक को विकसित करेगी. कंपनी की ओर से वैक्सीन के ट्रायल और प्रोडक्शन क्षमता को बढ़ाने पर 400-500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है.

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