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पश्चिम और मध्य अरुणाचल प्रदेश में बंदरों की नई प्रजाति 'सेला मैकाक' मिली

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों ने एक बंदरों (मैकाक) की नई प्रजाति की खोज की है. इस प्रजाति का फैलाव पश्चिमी और मध्य अरुणाचल प्रदेश में है. ZSI की निदेशक धृति बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि वैज्ञानिकों ने कुछ नमूने एकत्र किए और एक विस्तृत phylogenetic विश्लेषण किया. विश्लेषण से हम बंदर की इस नई प्रजाति तक पहुंचे.

पश्चिम और मध्य अरुणाचल प्रदेश में बंदरों की नई प्रजाति 'सेला मैकाक' मिली
पश्चिम और मध्य अरुणाचल प्रदेश में बंदरों की नई प्रजाति 'सेला मैकाक' मिली

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Published : May 28, 2022, 2:13 PM IST

नई दिल्ली : जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों ने एक बंदरों (मैकाक) की नई प्रजाति की खोज की है. इस प्रजाति का फैलाव पश्चिमी और मध्य अरुणाचल प्रदेश में है. ZSI की निदेशक धृति बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि वैज्ञानिकों ने कुछ नमूने एकत्र किए और एक विस्तृत phylogenetic विश्लेषण किया. विश्लेषण से हम बंदर की इस नई प्रजाति तक पहुंचे. ZSI के अनुसार यह प्रजाति आनुवंशिक रूप से इस क्षेत्र में पाई जाने वाली बंदरों की अन्य प्रजातियों से अलग हैं. धृति ने कहा कि वैज्ञानिकों ने इसे 'सेला मैकाक' (मकाका सेलाई) के रूप में नामित किया है. क्योंकि यह प्रजाति भौगोलिक रूप से तवांग जिले के एक पहाड़ी दर्रे से अलग हो गई है. जिसे सेला पास कहा जाता है.

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ZSI के वैज्ञानिक मुकेश ठाकुर ने कहा कि सेला पास ने लगभग दो मिलियन वर्षों तक इन दो प्रजातियों के बीच पलायन को प्रतिबंधित करके इसके विकास को रोके रखा. सेला मैकाक आनुवंशिक रूप से अरुणाचल मकाक के करीब है और इन दो प्रजातियों के बीच कई भौतिक विशेषताएं समान हैं जैसे कि भारी-भरकम आकार और पृष्ठीय शरीर पर लंबे बाल. उन्हें अलग करने के लिए कुछ अलग रूपात्मक वर्णों को वैज्ञानिकों द्वारा पहचाना गया है.

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मुकेश ने समझाया कि संक्षेप में, अरुणाचल मैकाक में एक गहरा भूरा चेहरा और गहरे भूरे रंग के कोट का रंग होता है. जबकि सेला मैकाक का चेहरा पीला और पीठ पर भूरा कोट का रंग होता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि हमने इनके बीच अलग-अलग व्यवहारों का भी अवलोकन किया. कुछ में मानविय उपस्थिति से नहीं घबराते जबकि अन्य मानव निकटता से बचते हैं. ग्रामीणों के अनुसार, सेला मैकाक अरुणाचल के पश्चिम कामेंग जिले में फसल के नुकसान का एक प्रमुख कारण है. यह अध्ययन आणविक phylogenetics और विकास में प्रकाशित किया गया है.

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