हैदराबाद :कर्नाटक की राजनीति 28 साल पुरानी कहानी. 1983 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने. उनकी कैबिनेट में एस. आर बोम्मई (S.R. Bommai) उद्योग विभाग के मंत्री बने. अचानक हेगड़े पर राजनेताओं और बिजनेमैन के फोन टेपिंग के आरोप लगे. सुब्रमण्यम स्वामी ने रामकृष्ण हेगड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कर्नाटक की सत्ता में फेरबदल हुआ और एस आर बोम्मई कर्नाटक के 11वें मुख्यमंत्री ( 1988-89) बन गए.
25 साल बाद वक्त का पहिया घूमा. भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में बी. एस. येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई. कोरोना को दौर के बीच दो साल तक सरकार शांति से चलती रही. अचानक बीजेपी हाईकमान ने नेतृत्व परिवर्तन किया और बसवराज बोम्मई कर्नाटक के 23 वें मुख्यमंत्री बने. 28 जुलाई को बसवराज ने सीएम पद की शपथ ली.
आप जानना चाहेंगे कि दोनों घटनाओं में कॉमन क्या है? पहला, दोनों घटनाओं में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. दूसरा, पिता के सीएम बनने के 25 साल बाद बेटा कर्नाटक का मुख्यमंत्री बना. बसवराज बोम्मई कर्नाटक के कद्दावर नेता रहे एस.आर. बोम्मई के बेटे हैं. राज्य के इतिहास में एच.डी.कुमारस्वामी के बाद वासवराज दूसरे शख्स हैं, जिनके पिता भी मुख्यमंत्री रहे. एच. डी. कुमारस्वामी के पिता एच. डी देवगौड़ा प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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क्यों हाईकमान की पसंद बने बसवराज
- बसवराज बोम्मई की छवि साफ है. अभी तक उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं.
- बसवराज बोम्मई वीराशैव-लिंगायत समुदाय से आते हैं. बी. एस. येदियुरप्पा के इस्तीफे से लिंगायत समुदाय के मठाधीशों में नाराजगी थी. लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बसवलिंग ने चेतावनी दी थी कि येदियुरप्पा को हटाने का खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा.
- राज्य में सबसे ज्यादा करीब 17 पर्सेंट आबादी लिंगायत समुदाय की है. इसकी ताकत यह है कि अब तक कर्नाटक के 8 मुख्यमंत्री इसी समुदाय से बने हैं और करीब 120 विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव है. बीजेपी ने लिंगायत नेता को सीएम की सीट सौंपकर बैलेंस बनाए रखा.
- येदियुरप्पा 31 जुलाई 2011 को भाजपा से इस्तीफा दिया था और 30 नवंबर 2012 को कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. तब बीजेपी के कई नेता येदियुरप्पा के साथ चले गए मगर बसवराज बीजेपी में बने रहे. जबकि 2008 में येदियुरप्पा ही उन्हें बीजेपी में लेकर आए थे.
- येदियुरप्पा ने ही बसवराज बोम्मई का नाम हाईकमान को सुझाया था. पूर्व सीएम ने लिंगायत मठ को भी बसवराज के लिए राजी किया है. दूसरी ओर, नए मुख्यमंत्री केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के काफी करीबी माने जाते हैं. साथ ही, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी काफी लोकप्रिय हैं. इस तरह बोम्मई केंद्र और राज्य के समीकरण में फिट हुए.
- 61 वर्षीय बोम्मई सीएम बनने से पहले येदियुरप्पा सरकार में गृह, कानून, संसदीय मामलों एवं विधायी कार्य मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. अपने मंत्रालय में उन्होंने केंद्र की नीतियों को लागू किया और खुद को समाजवादी नेता की छवि से आजाद किया.
- वसवराज ने कई मौकों पर जब विधानसभा में पार्टी को मुश्किल से निकाला. सभी दलों में उनके दोस्त हैं और कई बार उनके हस्तक्षेप के कारण विपक्ष शांत हुआ. यह खासियत उनके चयन में सहायक बनी.
- कांग्रेस को उम्मीद थी कि गैर लिंगायत नेता के सीएम बनने के बाद इस वोट बैंक को अपने पक्ष में किया जा सकता है. बसवराज को सीएम बनाकर बीजेपी ने न सिर्फ कांग्रेस की मंशा पर पानी फेर दिया बल्कि एक तीर से कई शिकार कर लिए.
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