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कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) को अपने कार्यकाल में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अभी विधानसभा चुनाव होने में 2 साल का वक्त है. यानी उन्हें खुद को साबित करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा. बसवराज के बारे में जानिए इस स्टोरी में

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Published : Jul 28, 2021, 3:01 PM IST

हैदराबाद :कर्नाटक की राजनीति 28 साल पुरानी कहानी. 1983 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने. उनकी कैबिनेट में एस. आर बोम्मई (S.R. Bommai) उद्योग विभाग के मंत्री बने. अचानक हेगड़े पर राजनेताओं और बिजनेमैन के फोन टेपिंग के आरोप लगे. सुब्रमण्यम स्वामी ने रामकृष्ण हेगड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कर्नाटक की सत्ता में फेरबदल हुआ और एस आर बोम्मई कर्नाटक के 11वें मुख्यमंत्री ( 1988-89) बन गए.

25 साल बाद वक्त का पहिया घूमा. भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में बी. एस. येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई. कोरोना को दौर के बीच दो साल तक सरकार शांति से चलती रही. अचानक बीजेपी हाईकमान ने नेतृत्व परिवर्तन किया और बसवराज बोम्मई कर्नाटक के 23 वें मुख्यमंत्री बने. 28 जुलाई को बसवराज ने सीएम पद की शपथ ली.

आप जानना चाहेंगे कि दोनों घटनाओं में कॉमन क्या है? पहला, दोनों घटनाओं में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. दूसरा, पिता के सीएम बनने के 25 साल बाद बेटा कर्नाटक का मुख्यमंत्री बना. बसवराज बोम्मई कर्नाटक के कद्दावर नेता रहे एस.आर. बोम्मई के बेटे हैं. राज्य के इतिहास में एच.डी.कुमारस्वामी के बाद वासवराज दूसरे शख्स हैं, जिनके पिता भी मुख्यमंत्री रहे. एच. डी. कुमारस्वामी के पिता एच. डी देवगौड़ा प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं.

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जाति, शैक्षणिक योग्यता, प्रशासनिक क्षमता और येदियुरप्पा और भाजपा के केंद्रीय नेताओं से करीबी ने सीएम पद तक पहुंचा दिया .

क्यों हाईकमान की पसंद बने बसवराज

  • बसवराज बोम्मई की छवि साफ है. अभी तक उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं.
  • बसवराज बोम्मई वीराशैव-लिंगायत समुदाय से आते हैं. बी. एस. येदियुरप्पा के इस्तीफे से लिंगायत समुदाय के मठाधीशों में नाराजगी थी. लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बसवलिंग ने चेतावनी दी थी कि येदियुरप्पा को हटाने का खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा.
  • राज्य में सबसे ज्यादा करीब 17 पर्सेंट आबादी लिंगायत समुदाय की है. इसकी ताकत यह है कि अब तक कर्नाटक के 8 मुख्यमंत्री इसी समुदाय से बने हैं और करीब 120 विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव है. बीजेपी ने लिंगायत नेता को सीएम की सीट सौंपकर बैलेंस बनाए रखा.
  • येदियुरप्पा 31 जुलाई 2011 को भाजपा से इस्तीफा दिया था और 30 नवंबर 2012 को कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. तब बीजेपी के कई नेता येदियुरप्पा के साथ चले गए मगर बसवराज बीजेपी में बने रहे. जबकि 2008 में येदियुरप्पा ही उन्हें बीजेपी में लेकर आए थे.
  • येदियुरप्पा ने ही बसवराज बोम्मई का नाम हाईकमान को सुझाया था. पूर्व सीएम ने लिंगायत मठ को भी बसवराज के लिए राजी किया है. दूसरी ओर, नए मुख्यमंत्री केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के काफी करीबी माने जाते हैं. साथ ही, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी काफी लोकप्रिय हैं. इस तरह बोम्मई केंद्र और राज्य के समीकरण में फिट हुए.
  • 61 वर्षीय बोम्मई सीएम बनने से पहले येदियुरप्पा सरकार में गृह, कानून, संसदीय मामलों एवं विधायी कार्य मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. अपने मंत्रालय में उन्होंने केंद्र की नीतियों को लागू किया और खुद को समाजवादी नेता की छवि से आजाद किया.
  • वसवराज ने कई मौकों पर जब विधानसभा में पार्टी को मुश्किल से निकाला. सभी दलों में उनके दोस्त हैं और कई बार उनके हस्तक्षेप के कारण विपक्ष शांत हुआ. यह खासियत उनके चयन में सहायक बनी.
  • कांग्रेस को उम्मीद थी कि गैर लिंगायत नेता के सीएम बनने के बाद इस वोट बैंक को अपने पक्ष में किया जा सकता है. बसवराज को सीएम बनाकर बीजेपी ने न सिर्फ कांग्रेस की मंशा पर पानी फेर दिया बल्कि एक तीर से कई शिकार कर लिए.

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कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री को सामने कई चुनौतियां भी हैं.

- बसवराज बोम्मई पूर्व बी. एस. येदियुरप्पा की पसंद हैं. अभी वह सार्वजनिक जीवन में येदियुरप्पा के शिष्य के तौर पर पहचाने जाते हैं. नई सरकार में येदियुरप्पा के कई करीबी मंत्री बनाए गए हैं. नए मुख्यमंत्री के खुद की स्वतंत्र छवि बनाने में मुश्किल होगी. साथ में यह भी साबित करना होगा कि सरकार उनके नेतृत्व में ही काम कर रही है.

कन्रड़ राजनीति में बोम्मई येदियुरप्पा के शिष्य के तौर पर जाने जाते हैं. उनकी सरकार पर येदि का कितना प्रभाव रहेगा, इससे बसवराज की राजनीति तय होगी.

- केंद्र सरकार की नीतियों को राज्य में बिना शर्त लागू करना होगा. साथ ही उन्हें पार्टी हाईकमान से भी तालमेल बिठाना होगा.

- 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे. खुद बसवराज को साबित करना होगा कि बीजेपी कर्नाटक में उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ सकती है.

- कोरोना को पहली और दूसरी लहर में कोरोना ने काफी तबाही मचाई. नई सरकार को राजनीतिक उठापटक के बीच कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए काफी तैयारियां करनी होगी

  • इसके अलावा उन्हें राज्य में आई बाढ़ से भी निपटना होगा.
    बसवराज बोम्मई की फैमिली

अब कर्नाटक को एक इंजीनियर सीएम मिला है :28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज बोम्मई ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. प्रारंभिक जीवन हुबली में बीता है, इसलिए कन्नड़, अंग्रेजी के अलावा धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं. उन्होंने पुणे में तीन साल तक टाटा मोटर्स में काम किया और फिर उद्यमी बने. परिवार की बात करें तो बोम्मई का विवाह चेनम्मा से हुआ है. इस दंपति का एक बेटा और एक बेटी है. बसवराज को कर्नाटक के सिंचाई मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है. उन्होंने राज्य में कई सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र धारवाड़ के शिगांव में 100% पाइप सिंचाई परियोजना लागू कर काफी तारीफ बटोरी है.

बसवराज पशु प्रेमी भी हैं. 15 दिन पहले उनके पालतू डॉगी की मौत हुई थी. तब बसवराज और उनकी फैमिली ने नम आंखों से जिस तरह उसे श्रद्धांजलि दी, वह चर्चा का विषय बनी.

राजनीतिक अनुभव तो विरासत में मिला है :बसवराज बोम्मई राजनीतिक परिवार से हैं. उनके पिता एस आर बोम्मई प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र में भी मंत्री रहे. हालांकि वह खुद 1998 से राजनीति में सक्रिय हुए. वह दो बार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. 2008 में वह जेडी यू को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और शिगांव से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े. जीतने के बाद बाद वह येदियुरप्पा की सरकार में सिंचाई मंत्री बने. तब बीजेपी मुख्यमंत्री बदलती रही मगर बसवराज का पद 2013 तक बना रहा. 2019 में वह गृह समेत चार विभागों को मंत्री बने.

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