दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

असम-2021 : हिमंत मुख्यमंत्री बनें, पुलिस मुठभेड़ों और सीमा विवाद की होती रही चर्चा

भाजपा ने हिमंत विस्व सरमा को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया था, लेकिन पार्टी का पूर्वोत्तर में आधार बढ़ाने के अलावा असम में दोबारा जीत दिलाने में मदद करने और संगठनात्मक स्तर पर कुशलता का पुरस्कार देते हुए उन्हें राज्य की कमान सौंपी गई. सीएम बनने के बाद उनके कार्यकाल में कई विवाद भी हुए. सरमा की सरकार पर मुस्लिमों को भी निशाना बनाने का आरोप लगा. असम के लिए 2021 कैसा रहा, एक नजर.

etv bharat himanta biswa sarma
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा

By

Published : Dec 26, 2021, 4:53 PM IST

गुवाहाटी : असम में 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता में वापसी की, लेकिन नेतृत्व में परिवर्तन हुआ और पूर्वोत्तर में पार्टी के मजबूत चेहरे हिमंत बिस्व सरमा मुख्यमंत्री बने, उनपर सुरक्षा स्थिति से निटपने में ‘सख्ती करने के’ भी आरोप लगे. इस साल मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में सरमा और पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पार्टी का नेतृत्व किया और कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ सहित 10 दलों के विपक्षी गठबंधन को हराया.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरमा को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया था, लेकिन पार्टी का पूर्वोत्तर में आधार बढ़ाने के अलावा असम में दोबारा जीत दिलाने में मदद करने और संगठनात्मक स्तर पर कुशलता का पुरस्कार देते हुए उन्हें राज्य की कमान सौंपी गई. वर्ष 2016 से असम के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे सोनोवाल के राज्यसभा चुनाव में निर्विरोध चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जहाजरानी और आयुष मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई.

सरमा ने असम के मुख्यमंत्री बनने के अपने लंबे समय से निर्धारित लक्ष्य को जब हासिल किया, तो उन्होंने पुलिस को खुली छूट दी, जिसका नतीजा रहा कि नियमित मुठभेड़ की खबरें आती रहीं.

सरमा की सरकार ने उल्फा जैसे प्रतिबंधित समूहों से भी बातचीत की, जबकि पदभार ग्रहण करने के शुरुआती कुछ महीने पड़ोसी राज्य से सीमा विवाद को लेकर पैदा हुए तनाव को कम करने में गुजरे.

उन्होंने कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी राज्य का नेतृत्व किया और सुनिश्चित किया कि स्वास्थ्य अवसंरचना बेहतर हो और टीकाकरण की प्रक्रिया सुचारु रूप से चल सके. सरमा द्वारा कानून प्रवर्तकों को ‘खुली छूट’ देने का असर हुआ कि पुलिस के साथ 80 मुठभेड़ में विभिन्न आपराधिक मामलों में वांछित 32 लोगों की मौत हुई, जबकि कम से कम 57 अन्य घायल हुए.

विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरमा के शासनकाल में पुलिस बंदूक चलाने में खुशी महसूस करने वाली बन गई है. लेकिन मुख्यमंत्री इससे प्रभावित नहीं हुए और जोर देकर कहा कि प्राधिकारियों को कानून के दायरे में रहकर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी आजादी है.

उन्होंने मादक पदार्थों की तस्करी भी रोकने के आदेश दिए, जिसके बाद पूर्वोत्तर के इस राज्य में करोड़ों रुपये के मादक पदार्थ जब्त किए गए और उन्हें सार्वजनिक रूप से जलाया गया. सरमा की सरकार पर मुस्लिमों को भी निशाना बनाने का आरोप लगा. फिर चाहे समुदाय से जुड़े अतिक्रमण करने वालों पर कार्रवाई हो या फिर उन्हें आबादी नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन को अंगीकार करने की सलाह देना हो. सख्त गौ संरक्षण कानून भी पारित किया गया.

इस साल सितंबर में दरांग जिले में पुलिस और अतिक्रमण करने वालों में हुई झड़प के दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी. यह झड़प अतिक्रमण हटाने के दौरान हुई थी. इस घटना में 20 अन्य घायल हुए थे. पूरे प्रकरण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिससे विवाद पैदा हुआ.

मुख्यमंत्री बनने के पहले ही दिन सरमा ने प्रतिबंधित संगठन उल्फा से वार्ता की पेशकश की और संगठन के प्रमुख परेश बरुआ ने तीन बार एकतरफा संघर्ष विराम बढाकर कर इसका जवाब दिया. बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीआरटी) और तीन पहाड़ी जिलों दिमा हसाओ, कार्बी आंगलांग और पश्चिम कार्बी आंगलांग में अपनी गतिविधियों का संचालन करने वाले एक हजार से ज्यादा उग्रवादियों ने अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया.

भाजपा नीत पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन के संयोजक और पार्टी के इलाके में प्रमुख संकटमोचक सरमा के सामने सबसे पहली बड़ी चुनौती असम-मिजोरम सीमा पर हिंसा के बाद उत्पन्न हुई जब जुलाई में कछार जिले में छह पुलिस कर्मियों एवं एक आम नागरिक की हिंसा में मौत हो गई थी.

सरकार द्वारा इस मुद्दे को सुलझाने के लिए समिति गठित करने के बावजूद अंतर राज्यीय सीमा विवाद की तपिश जारी है. असम सरकार ने मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से सीमा विवाद सुलझाने के लिए कदम उठाए हैं. मुख्यमंत्री ने सीमा विवाद को क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा करार दिया है.

राज्य की वर्ष 2021 में भी कोविड-19 महामारी से लड़ाई जारी है. इस साल अबतक कुल 5,118 संक्रमितों की मौत हुई है जबकि पिछले साल महामारी से 1,037 लोगों की जान गई थी. कुल संक्रमितों की संख्या भी पिछले साल के 2,15,939 के मुकाबले इस साल 6,20,081 हो गई है.

अबतक राज्य में कोविध रोधी टीके की 3,67,14,946 खुराक दी जा चुकी है, जिनमें से 2,16,88,360 पहली खुराक और 1,50,26,586 दूसरी खुराक के तौर पर दी गई है.

महामारी की विभीषिका के बीच भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 60 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि उसके साझेदार असम गण परिषद और यूपीपीएल ने क्रमश: नौ और छह सीटें हासिल की.

विपक्षी ‘महाजोत’ जो चुनाव के बाद बिखर गया है, 126 सदस्यीय विधानसभा में 50 सीटों पर जीत दर्ज कर सका. तेज तर्रार नेता और कार्यकर्ता माने जाने वाले अखिल गोगोई ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. वह राज्य के पहले नेता बने हैं जो जेल से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे हैं.

सरमा लगातार विधानसभा में अपना संख्याबल बढाने का प्रयास कर रहे हैं और इसमें वह सफल भी हुए हैं. कांग्रेस के मरियानी से विधायक रूपज्योति कुर्मी और थोवरा से विधायक सुशांत बोरगोहेन के साथ-साथ एआईयूडीएफ के भबानीपुर से विधायक फणी तालुकदार ने पाला बदला और भाजपा में शामिल हुए और उपचुनाव में जीत दर्ज की.

कांग्रेस के राहा से विधायक शशि दास ने भी घोषणा की है कि वह अपनी पार्टी में रहते हुए भाजपा का समर्थन करेंगे. सरमा ने लगातार विपक्ष के हमलों का भी सामना किया जो आरोप लगा रही है कि रियल एस्टेट कंपनी, जिसकी सह संस्थापक उनकी पत्नी रिनिकी भुइयां सरमा और भाजपा किसान मोर्चा के नेता रणजीत भट्टाचार्य हैं, ने गैर कानूनी तरीके से सरकारी जमीन कब्जा कर रही है.

इस साल असम ने मुक्केबाज लवलिना बोरगोहेन को ओलंपिक में मिले पदक का भी जश्न मनाया. वह राज्य की पहली महिला हैं जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता है. लवलिना ने तोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता है.

ये भी पढ़ें :2021 : सड़क से संसद तक चुनावों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही भारत की राजनीति

For All Latest Updates

TAGGED:

ABOUT THE AUTHOR

...view details