नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने सोमवार को केंद्र को जम्मू-कश्मीर में राज्य और लोगों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए 'सच्चाई और सुलह' आयोग (Truth and Reconciliation commission) स्थापित करने की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इस बात पर जोर दिया कि प्रक्रिया समयबद्ध होनी चाहिए और समिति को सुलह के उपायों की सिफारिश करनी चाहिए. न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि आयोग अतीत के घावों को माफ करने में सक्षम हो सकता है और एक साझा राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का आधार बना सकता है.
5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल थे. पीठ ने 16 दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं. पीठ के सभी न्यायाधीशों ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा.
न्यायमूर्ति ने बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए एक अलग निर्णय दिया. इसमें राज्य और लोगों दोनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और रिपोर्ट करने के लिए एक निष्पक्ष सत्य और सुलह समिति की स्थापना की सिफारिश की. न्यायमूर्ति कौल ने इसे समयबद्ध करने पर जोर देते हुए कहा कि स्मृति लुप्त होने से पहले आयोग का गठन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है. न्यायमूर्ति ने यह भी माना कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था, स्थायी नहीं. न्यायमूर्ति कौल ने आयोग के गठन पर जोर देते हुए कहा कि घावों को भरने की जरूरत है.
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह सरकार को तय करना है कि आयोग का गठन किस तरीके से किया जाना चाहिए और उसे इसमें शामिल मुद्दों की संवेदनशीलता पर विचार करना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आयोग को एक आपराधिक अदालत नहीं बनना चाहिए और उसे बातचीत के लिए एक मंच प्रदान करना चाहिए और दक्षिण अफ्रीका में स्थापित सत्य और सुलह आयोग का हवाला दिया.
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की टिप्पणी:धारा 370 को हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'धारा 370 और 35 ए अब अतीत की बात हैं.' ईटीवी भारत से बात करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्र एक संविधान की अवधारणा को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा.'
सबसे बड़ी बात यह है कि सभी पांच जजों ने एक स्वर में कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए अस्थायी थे और इसे हटाने का केंद्र सरकार का फैसला सही था. शीर्ष अदालत ने 30 सितंबर 2024 से पहले चुनाव कराने की बात कही. हम सभी को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार और शीर्ष अदालत को धन्यवाद देना चाहिए.' सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है और राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण अनुच्छेद 370 एक अंतरिम व्यवस्था है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का आदेश संवैधानिक रूप से वैध है.
'पांच अगस्त 2019 और आज की तारीख इतिहास में दर्ज होगी' :संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का बचाव करने में केंद्र की ओर से प्रमुख वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को कहा कि सरकार के पांच अगस्त 2019 के फैसले को बरकरार रखने का उच्चतम न्यायालय का फैसला देश के इतिहास में दर्ज किया जाएगा.