मनोवैज्ञानिक से जानें कि आत्महत्या के लिए जिम्मेदार डिप्रेशन को कैसे पहचानें. पानीपत:10 सितंबर को आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है.दुनियाभर में आत्महत्या के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. आज के समय में देखा जा रहा है कि ज्यादातर युवा आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में कई लोग स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी से हार मानकर मौत को गले लगा लेते हैं. दूसरों से आगे निकलने की चाह में हाथ लगी निराशा अक्सर आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है. इसलिए आत्महत्या के बढ़ते केस की रोकथाम के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है.
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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस:10 सितंबर को आत्महत्या रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है. एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक, करीब 1 लाख 70 हजार लोगों ने साल 2023 में आत्महत्या की है. यानी औसतन 1 घंटे में 19 से 20 लोग आत्महत्या कर रहे हैं. 2020-21 की तुलना में इन आंकड़ों में बढ़ोतरी आई है. इन बढ़ते आंकड़ों को देखकर उनके कर्म और विचार जानने की जरूरत है.
आत्महत्या करने वालों के लक्षण: मनोचिकित्सक जयश्री के मुताबिक युवाओं द्वारा आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं. हर इंसान का स्वभाव अलग होता है. इंसान का स्वभाव कुछ विषयों को लेकर बहुत ही संवेदनशील होता है. वह अपनी लाइफ को बेहतर बनाने के लिए हर प्रयास में लगा रहता है. लेकिन जब इंसान के हाथ निराशा ही लगती है, तो वह हर तरीके से खुद को कमजोर फील करता है. इस वजह से कई बार आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठाकर जिंदगी को खत्म कर लेता है.
अपनी समस्या को बहुत बड़ा समझ लेना: डॉ. जयश्री के मुताबिक, इस भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान अपने आप को बेहतर साबित करने और दूसरे से तुलना करने लगता है. प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को इकट्ठा कर उन में आ रही परेशानियों से जूझना भी कई बार आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है. आत्महत्या करने से पहले इंसान के दिमाग में यही सोच उत्पन्न होने लगती है कि उसकी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है. उसकी समस्या इतनी बड़ी है कि उसे कोई भी ठीक नहीं कर सकता. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता.
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आत्महत्या की बड़ी वजह डिप्रेशन: हर इंसान को अपनी समस्या बड़ी ही लगती है. ऐसी परेशानी से जूझने वाले इंसान को परिवार के लोगों का सहयोग जरूरी होता है. समस्या को लेकर युवा वर्ग ज्यादा प्रभावित होता है. युवा वर्ग की क्षमता इतनी विकसित नहीं होती और वह यही सोचता है कि समस्या का कोई भी सॉल्यूशन नहीं है. वह अपनी समस्या किसी के सामने भी नहीं रख सकता. जिसकी वजह से युवा डिप्रेशन में चले जाते हैं. देखा गया है कि आजकल युवा ऐसा खौफनाक कदम उठाने से पहले अपनी परेशानियां और अपना दुख सोशल मीडिया से दूसरों के साथ साझा करने की कोशिश करते हैं.
आत्महत्या करने वालों में युवाओं की संख्या ज्यादा: हाल ही में पानीपत जिले के अंदर एक महीने में पांच ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें 18 से 20 साल की आयु वर्ग के युवाओं ने आत्महत्या कर ली. लेकिन आत्महत्या करने से पहले उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर दुख भरे स्टेटस लगाए. ऐसे में परिवार को चाहिए था कि उनके स्टेटस को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चों से उनकी परेशानियां पूछे.
आत्महत्या पर रोकथाम जरूरी:डॉ. जयश्रीबताती हैं किआत्महत्या रोकथाम में हम भी अपनी भागीदारी निभा सकते हैं, पर जरूरत होती है कि कोई भी अपनी समस्या बता रहा है तो उसे गंभीरता से सुनें उसे अन्यथा न लें. इंसान को ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि जो वह सोच रहा है वही होगा या फिर उनकी समस्या का किसी के पास कोई समाधान नहीं है. जब ऐसे विचार मन में आने लगे तो काउंसलिंग के लिए अच्छे काउंसलर का सहारा लें. अच्छे मनोचिकित्सक को अपने विचारों के बारे में बताएं कि उनके मन में आत्महत्या जैसे भी ख्याल आ रहे हैं. अपनी समस्या को लेकर एक डॉक्टर से खुलकर बात करें.
समय पर सावधानी की जरूरत: डॉ. जय श्री का मानना है कि आत्महत्या से पहले इंसान के स्वभाव में बिल्कुल ही बदलाव आ जाता है. जब वह आत्महत्या का मन बना लेता है, तो उसके खान-पान रहन-सहन समेत हर तरीके से बदलाव नजर आना शुरू हो जाता है. बस हमें जरूरत होती है तो समझने की. अगर समय रहते परिवार का सदस्य या अन्य कोई साथी यह समझ जाए तो हम ऐसी अनहोनी को रोक भी सकते हैं.
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