वाराणसीःचीं-चीं आवाज कर फुर्र-फुर्र उड़ती और फुदकती नन्हीं गौरैया को देखकर एक अलग ही स्फूर्ति आ जाती है. दुखद है कि आंगन से चिड़ियों की चहचहाहट ही गायब हो गई थी, लेकिन वीवंडर फाउंडेशन के पिछले 4 साल के प्रयास से गौरैया फिर से घर-आंगन को वापस आने लगी हैं. गौरैया की चहचहाट को वापस लाने के लिए कोशिशें शुरू हुईं तो लोगों का समर्थन भी मिला. शहर में कृत्रिम घोंसले लगाए गए और लोग छतों पर दाना-पानी रखने लगे. कोशिशें रंग लाईं और रूठी गौरैया वापस लौटने लगी हैं.
अब जरूरत इस बात की है कि इन कोशिशों को जारी रखा जाए. इसीलिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. वीवंडर फाउंडेशन टीम का कहना है कि कंक्रीट में बदलते शहरों में गौरैया के प्राकृतिक वासस्थल खत्म होते जा रहे हैं. न अब आंगन रहे और न ही रोशनदान. हरियाली भी सिमटती जा रही है. ऐसे में कृत्रिम घोंसले लगाकर गौरैया को आसरा देने की मुहिम बीते कई सालों से की जा रही है. इसका परिणाम भी काफी अच्छा रहा है.
अब जरूरत इस बात की है कि देश के अलग-अलग जगहों पर गौरैया पार्क विकसित किए जाएं. इससे गौरैया को बचाया जा सके. गौरैया ही एक ऐसी चिड़िया है जो घरों में परिवारजनों के साथ रहती है. हमारे नजदीक तक आती है, अंडे देती है और परिवार बढ़ाती है. यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती और यही वजह है कि इसका कलरव घर में खुशियां लाता है.
वीवंडर फाउंडेशन की नींव 14 दिसंबर 2017 को रखी गई थी. वीवंडर का अर्थ घुमक्कड़ होता है, घुमक्कड़ों की टीम जो अलग- अलग जगह घूम- घूम कर कुछ एक स्तर तक समस्याओं के निदान पर विचार कर उसे समाज में एक सार्थक रूप देते हैं. वीवंडर फाउंडेशन संस्था की नींव इस सोच के साथ शुरू की गई थी कि अपने व्यस्ततम निजी जिंदगी में से मात्र एक घंटे का समय निकाल कर समाज के कुछ समस्याओं का उद्धार करने का प्रयास करें.
वीवंडर फाउंडेशन के चैयरमैन गोपाल कुमार ने बताया कि संस्था का उद्देश्य वातावरण में पक्षियों और उनके आवास का संरक्षण करना है. पक्षी संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता निरपेक्ष है. हम समानता पर विश्वास करते हैं और संस्था का ऐसा मानना है कि पक्षी और उनके आवासों का संरक्षण मानव सहित अन्य सभी प्रजातियों को किसी ना किसी रूप में लाभ ही पहुंचाता है.