हैदराबाद : नवजात शिशु शायद दुनिया भर में सबसे असुरक्षित आबादी (Most Vulnerable Population The World) हैं. समय से पहले पैदा हुए बच्चे या बहुत जल्दी पैदा हुए बच्चे, 37 सप्ताह से कम गर्भावस्था, विशेष रूप से जोखिम में हैं. वर्तमान में, दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले जन्म है. बाद में जीवन में विकलांगता और खराब स्वास्थ्य का एक प्रमुख कारण है. दुनिया भर में समय से पहले जन्म के 60 प्रतिशत से अधिक मामले उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया ( Sub-Saharan Africa and south Asia) में हैं.
प्रत्येक वर्ष समय से पहले जन्म लेने वाले 1.5 करोड़ (15 मिलियन) शिशुओं में से 10 लाख से अधिक की मृत्यु समय से पहले प्रीमैच्योर जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण हो जाती है. जन्म के समय कम वजन (नवजात शिशुओं का वजन 2,500 ग्राम से कम) जन्म के समय, समय से पहले जन्म और/या गर्भाशय में सीमित वृद्धि के कारण, वैश्विक स्तर पर नवजात और बच्चों की मृत्यु के साथ-साथ दिव्यांगता और गैर-संचारी रोगों का भी एक बड़ा कारण है.
भारत में प्रीमैच्योर बच्चों की स्थिति
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) का सर्वे 2019-21 में किया गया था.
- विश्लेषण के लिए सैंपल के तौर पर हाल में जन्म लेने वाले 170253 बच्चों के डेट का उपयोग किया गया.
- NFHS-5 सर्वे के अनुसार भारत में हर साल 3341000 प्रीमैच्योरबच्चों का जन्म होता है.
- प्रीमैच्योर जन्म के कारण होने वाली जटिलताओं के कारण पांच साल से कम उम्र के 361600 बच्चे की मौत हो जाती है.
- भारत में 2019-21 में अनुमानित 12 फीसदी बच्चे एलबीडब्ल्यू (Low Birth Rate-LBW) थे.
- वहीं इस दौरान 18 फीसदी बच्चे पीटीबी (Pre Term Birth- PTB) थे.
- देश भर में एलबीडब्ल्यू और पीटीबी की गणना सैंपल के आधार पर होता है.
- पीटीबी और एलबीडब्ल्यू की व्यापकता में अलग-अलग राज्यों में काफी असमान्यताएं हैं.
- एलबीडब्ल्यू और पीटीबी के सहसंबंधों का विश्लेषण (Correlates of LBW and PTB) लॉजिस्टिक मॉडल (Logistic Models) का उपयोग करके किया गया है.
- LBW और PTB बच्चों के जन्म के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं. मातृ प्रसूति और मानवशास्त्रीय कारक (Maternal obstetric And Anthropometric Factors) जैसे प्रसवपूर्व देखभाल की कमी, पूर्व में हुए सीजेरियन डिलीवरी, कम कद वाली माताएं सहित अन्य मानक शामिल हैं.
प्रीमैच्योर बच्चों के मामलों में 5 टॉप देश
- संयुक्त राष्ट्र से जुड़े रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में 15.20 करोड़ (152 मिलियन) प्रीमैच्योरबच्चों का जन्म हुआ था.
- 2020 यानि कोरोना महामारी वर्ष में, यह संख्या 13.4 Crore (13.4 मिलियन) थी.
- उस साल, भारत उन टॉप पांच देशों में से एक था जहां प्रीमैच्योरबच्चों का जन्म हुआ. अर्थात गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले जीवित बच्चे पैदा हुए थे (पूर्णकालिक गर्भावस्था के विपरीत यानि कम से कम 39 सप्ताह).
- भारत में 2020 के दौरान प्रीमैच्योरजन्म बच्चों की अनुमानित संख्या सबसे अधिक 30,16,700 थी. भारत के बाद पाकिस्तान (9.14 लाख से काफी पीछे), नाइजीरिया (7.74 लाख) का स्थान था. इसके बाद चीन (7.52 लाख) और इथियोपिया (4.95 लाख) था.
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे का इतिहास
वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे की नींव का इतिहास1997 माना जाता है. जब यूरोप की सिल्के मैडर नामक एक महिला जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रही थीं. गर्भावस्था के 25वें सप्ताह में उनकी समय से पहले डिलीवरी हो गई, एक की एक सप्ताह के बाद मृत्यु हो गई और दूसरी अब एक स्वस्थ किशोरी बन रही है. इस चुनौतीपूर्ण अनुभव ने सिल्के मैडर को सिखाया कि समय से पहले बच्चों की देखभाल में स्थान-संबंधित अंतराल होते हैं. 2008 में, उन्होंने नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए यूरोपीय फाउंडेशन (The European Foundation For The Care Of Newborn Infants-EFCNI) की सह-स्थापना की.
वह पीडी डॉ. मैथियास केलर, नियोनेटोलॉजिस्ट, थॉमस फोरिंगर, वकील और जुर्गन पॉप, पिता, जिन्होंने अपने तीन बच्चों को समय से पहले खो दिया था, के साथ जुड़ गईं. तब से, उनका उद्देश्य यूरोपीय स्तर पर समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की देखभाल और स्थिति में सार्थक सुधार करना रहा है. अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, उन्होंने 2009 में, अंतरराष्ट्रीय समयपूर्वता जागरूकता दिवस बनाया, जिसे कुछ साल बाद वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे नाम दिया गया. इस दिन को एक अंतरमहाद्वीपीय आंदोलन के रूप में मनाने के लिए अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिका के देशों के संस्थापक संगठन एक साथ आए. चुनौतियों को पहचानने, जागरूकता बढ़ाने और समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं और उनके परिवारों की मदद करने के लिए 100 से अधिक देश एक साथ आए हैं.