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सरकारों को आईना दिखा रही यूपी की 'मौसी', बदल रही मजबूरों का जीवन, शिक्षा के साथ दे रही 'सहारा'

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 10:38 PM IST

Updated : Nov 14, 2023, 12:38 PM IST

Shashi Bala Gangwar of UP यूपी की मौसी ने बिना किसी शोरगुल और मदद के उत्तराखंड के 23 बच्चों का भविष्य सुधारने का बिड़ा उठा रखा है. 4 साल से 20 साल के उम्र के बच्चे उनकी परवरिश में भविष्य बना रहे हैं. 2 गरीब असहाय बच्चों से शुरू हुआ कारवां अब 23 और धीरे-धीरे आगे बढ़ता ही जा रहा है. World kindness day

Shashi Bala Gangwar
शशि बाला गंगवार

मौसी ने दिया मां का प्यार

देहरादून (उत्तराखंड) ...काश ऐसी मौसी हर गरीब और असहाय बच्चे को मिले. उत्तरकाशी मोरी के रहने वाले दो भाई शिव लाल और अनिल लाल आर्थिक हालत से मजबूर होकर बाल मजदूरी तक के लिए मजबूर थे. लेकिन बदायूं की मौसी ने इनका जीवन बदल दिया. केवल ये दो ही नहीं, बल्कि ये मौसी पहाड़ के 2 दर्जन गरीब बच्चों का जीवन बिना किसी शोरगुल के संवार रही हैं.

शशि बाला के साथ ही उनकी बेटी रीता भी बच्चों को पढ़ाती हैं.

अनिल और शिव के जीवन में वरदान बनकर आई मौसी: उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक में पढ़ने वाले ढाटमेरी गांव के अनुसूचित जाति से आने वाले शिवलाल और अनिल लाल की घर की स्थिति इतनी दयनीय थी कि उन्हें आठवीं के बाद स्कूल छूट जाने का डर था. किसी तरह उन्होंने किसी से संस्था की जानकारी ली और वहां पढ़ने-लिखने की कोशिश की. लेकिन कुछ समय बाद ही संस्था में शिव और अनिल का उत्पीड़न होने लगा. इसके बाद शिव और अनिल दोनों भाइयों ने बाल मजदूरी करने का फैसला किया. देहरादून में कमरा ढूंढने की कोशिश के दौरान दोनों एक ऐसी मौसी के पास जा पहुंचे, जिन्होंने इन दोनों भाइयों का जीवन बदल दिया.

दीपावली पर ट्रस्ट के सदस्यों ने भी बच्चों के साथ पर्व मनाया.

23 बच्चों का तैयार हो रहा भविष्य: शिव और अनिल किस्मत से शशि बाला गंगवार (मौसी) से मिले. शशि बाला का जीवन पहले से ही ऐसे गरीब बच्चों के लिए समर्पित था जो पढ़ना चाहते हैं. इस तरह से शिव और अनिल को मौसी के घर केवल रहने की जगह ही नहीं मिली, बल्कि मौसी ने उनकी पूरी जिम्मेदारी ही उठा ली. वर्ष 2015 का यह वाकया तब का है जब शिव और अनिल कक्षा 8 के बाद दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और आज शिव ने अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी कर ली है. अनिल ने भी अपनी बीए की पढ़ाई पूरी कर छोटा-मोटा काम-धंधा शुरू कर दिया है. लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती. शिव और अनिल के बाद बच्चों का भविष्य तैयार करने का ये कारवां इस तरह से शुरू हुआ कि आज 4 साल की उम्र से लेकर 20 साल की उम्र तक के तकरीबन 23 बच्चे मौसी के आसरे में पल रहे हैं.

शिव लाल और अनिल लाल.

मौसी का जीवन गरीब बच्चों को समर्पित: उम्र का वो पढ़ाव जब व्यक्ति खुद थक जाता है. उसे सेवा के लिए परिवार के लोगों की जरूरत होती है. ऐसी 67 साल की उम्र में शशि बाबा गंगवार (मौसी) सुबह उठती हैं. 4 साल के आरिश समेत 20 से ज्यादा छोटे बच्चों के लिए खाना बनाना, उन्हें नहलाना और उनके कपड़े धोने का काम करती है. इस तरह से मौसी इन बच्चों के लिए मां से भी बढ़कर है.

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बेटी-दामाद के बाद हुईं शिफ्ट: दरअसल, उत्तर प्रदेश बदायूं की रहने वाली शशि बाला गंगवार पेशे से अध्यापिका रही हैं. इन्होंने एक गरीब परिवार में जन्म लेकर मुश्किल दौर को देखा. शिक्षा की कीमत को समझा. शशि बाला के पति की मृत्यु हो चुकी है. उनके पति उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में एक वरिष्ठ अधिकारी के पद पर तैनात थे. पति की मृत्यु के बाद आश्रित के रूप में शशि बाला को सिंचाई विभाग में क्लर्क के पद पर नियुक्ति मिली. काम के दौरान उन्होंने अपना शिक्षा देने का काम भी जारी रखा. शशि बाला के रिटायरमेंट के बाद उनकी बेटी और दामाद देहरादून शिफ्ट हुए तो शशि बाला भी देहरादून शिफ्ट हो गईं. उन्होंने अपनी सेविंग्स से देहरादून में एक घर लिया. इस दौरान उनके पास उत्तरकाशी के शिवलाल और अनिल लाल नाम के दो असहाय बच्चे किराये पर कमरा ढूंढते हुए आए. तब से आज तक शिव और अनिल के साथ ही अब तक 23 गरीब बच्चों शशि बाबा जिम्मेदारी उठा रही है. शशि अपनी पेंशन से लगातार इन गरीब बच्चों का पालन पोषण कर रही हैं.

दीपावली पर्व को भी बच्चों मौसी के साथ मनाया.

बच्चों के लिए अब कम पड़ रही मौसी की पेंशन:ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मौसी शशि बाला गंगवार ने बताया कि उन्हें शिक्षा की अहमियत संस्कारों में मिली है. वे बेहद गरीब परिवार में पैदा हुईं. जहां पर उन्होंने समझा कि दुनिया में सबसे बड़ा दान, शिक्षा दान है. उन्होंने बताया कि वह शुरू से ही जहां मौका मिलता था, वहां गरीब बच्चों को पढ़ाती थी. ऑफिस में भी लंच टाइम के खाली समय आसपास कहीं ना कहीं गरीब बच्चों को पढ़ाया. इस तरह से वे जब देहरादून में अपनी बेटी के घर आई थी तो उत्तरकाशी के दो बच्चे जो की बाल मजदूरी करने घर से निकले थे, उन्हें संवारते हुए उन्होंने एक शुरुआत की. इन दो बच्चों से शुरू हुआ कारवां आज 23 बच्चों तक पहुंच चुका है. वह अपने पेंशन से ही अपना और इन बच्चों का गुजारा कर रही हैं.
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ट्रस्ट बनाकर रजिस्टर्ड किया: शशि बाला बताती हैं कि उन्होंने अपनी सेविंग से एक घर खरीदा जिसमें वह इन सारे बच्चों को रख रही हैं. लेकिन घर में सुविधा बेहद कम है. कभी उनके रिश्तेदार मिलने आए तो उन्होंने देखा कि बच्चे धूप में बैठे हैं, इसलिए टीन सेट डलवा दिया. किसी ने देखा कि अध्यापिका शशि बाला अकेले सारे बच्चों का काम कर रही हैं, उन्हें पढ़ रही हैं तो किसी ने अध्यापक की व्यवस्था कर दी. इस तरह से अब उनकी परवरिश में बच्चों का जीवन बदल रहा है. शशि बाबा बताती हैं कि उनसे पहाड़ के गरीब बच्चे संपर्क करते हैं और उनके पास आना चाहते हैं. लेकिन उनके पास जगह नहीं है. पैसा भी कम पड़ रहा है. हालांकि कुछ समय पहले उनके द्वारा एक ट्रस्ट बनाकर इसे पंजीकृत किया गया. ताकि लोगों की मदद ले पाएं.

मौसी ने बच्चों को ही बना लिया परिवार: अध्यापिका शशि बाला गंगवार की बेटी रीता का कहना है कि उनकी मां बचपन से ही इस तरह के कामों में लगी रहती है. गरीब बच्चों को पढ़ाना, उनके लिए काम करना, ये सब वह बचपन से देखती आ रही हैं. रीता कहती हैं कि जब उनकी शादी हुई और वह देहरादून शिफ्ट हुई तो उनकी मां जब भी उनके घर आईं तो आसपास में मौजूद सरकारी स्कूल या फिर ऐसे इलाके जहां पर गरीब बच्चे रहते हैं, वहां अक्सर जाया करती थी. लेकिन जब से शिव और अनिल उनके घर पर कमरा किराये पर मांगने के लिए आए, तब से उनकी मां ने उत्तराखंड के खासतौर से उत्तरकाशी के सीमांत इलाकों के वे बच्चे जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं, उनकी पारिवारिक और उनकी शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी उठानी शुरू कर दी. आज यह संख्या 23 बच्चों की हो चुकी है.
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आम लोग भी कर सकते हैं मदद: रीता ने बताया कि अब उनकी मां बूढ़ी हो चुकी है. जिस उम्र में और जिस दौर में लोग एक और दो बच्चों की जिम्मेदारी से भी भागते हैं, उसे दौर में उनकी मां आज 23 बच्चों का पालन पोषण और उनकी शिक्षा का पूरा खर्च उठा रही हैं. इसे देखकर कभी-कभी उन्हें भी बेहद अफसोस होता है. वह भी अपनी मां के काम में हाथ बंटाती हैं. उन्होंने कहा कि यह काम नेकी का है. इसलिए हम अपनी मां को इस काम के लिए मना भी नहीं कर सकते हैं. इसीलिए 2 साल पहले उन्होंने अपनी संस्था 'जन कल्याण जन उत्थान सेवा ट्रस्ट' का रजिस्ट्रेशन करवाया है.

उन्होंने अपील की है कि यदि कोई मदद करना चाहे तो कर सकता है. रीता कहती हैं कि अभी तक उनकी मां द्वारा बिना किसी शोरगुल और बिना किसी मदद के सारा काम किया है. लेकिन अब ट्रस्ट बनाया गया है, जिसमें कई लोग सदस्य हैं और वह चाहते हैं कि यह नेकी का काम इसी तरह से आगे बढ़ता रहे. क्योंकि ना जाने हमारे पहाड़ों में कितने शिव और अनिल जैसे असहाय बच्चे मौजूद हैं.

Last Updated : Nov 14, 2023, 12:38 PM IST

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