हैदराबाद : दुनिया के इतिहास में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में हमने कई बार कई प्रकार की महामारी या ऐसे रोगों के बारें में पढ़ा तथा सुना है जिनके कारण उस समय सैकड़ों, हजारों लोगों की जान गई थी. वहीं कुछ बीमारियां ऐसी भी रही जिनके कारण पीड़ित आजीवन शारीरिक या मानसिक विकलांगता का शिकार भी बन जाते थे. इस सूची में हाल ही में वैश्विक स्तर पर फैली कोरोना महामारी का जिक्र करना भी जरूरी है.
लेकिन वर्तमान समय में चिकित्सा की एक ऐसी उन्नत शाखा है जिसे इस तरह की महामारियों तथा बीमारियों से बचाव के लिए शरीर में प्रतिरक्षा तैयार करने में काफी अहम माना जाता है. वहीं कोरोना पर रोक लगाने में भी इस शाखा की काफी अहम भूमिका रही थी. यह शाखा है टीकाकरण या वैक्सीनेशन .
वैश्विक स्तर पर ना सिर्फ बच्चों को जन्म के बाद बल्कि बड़ों को भी कई गंभीर रोगों तथा महामारियों से बचाने के लिए टीकाकरण कराने के लिए प्रेरित करने तथा इससे जुड़े मुद्दों व भ्रमों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 10 नवंबर को ‘वर्ल्ड इम्यूनाइजेशन डे’ मनाया जाता है.
क्या है और क्यों जरूरी होता है टीकाकरण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टीकाकरण हर साल 2 से 30 लाख मौतों को रोकता है. वहीं बच्चों को डिप्थीरिया, टेटनस, पोलियो, खसरा और निमोनिया जैसी कई बीमारियों से बचाता है. संगठन के अनुसार टीकाकरण शरीर में जरूरी प्रतिरक्षा का निर्माण करके उन बीमारियों की संवेदनशीलता को रोकता व कम करता है जिनके परिणामस्वरूप गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं और यहां तक की मृत्यु भी हो सकती है. गौरतलब है कि बच्चों में जरूरी टीकाकरण का ही नतीजा है कि आज बच्चों में पोलियो और चेचक जैसी घातक बीमारियों का खतरा लगभग समाप्त ही हो चुका है.
टीकाकरण से एंटीबॉडी होता है विकसित
टीकाकरण दरअसल हानिकारक बीमारियों के संपर्क में आने से पहले ही उनसे बचाने का एक सरल, सुरक्षित और प्रभावी तरीका है. टीके या वैक्सीन हमारे शरीर में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को विभिन्न बीमारियों को लेकर एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. जिससे उन रोगों से बचाव होता है या उनका प्रभाव बेहद कम हो जाता है जिसका टीका लगाया जा चुका है. गौरतलब है कि अधिकांश टीके इंजेक्शन द्वारा दिए जाते हैं, लेकिन कुछ मौखिक रूप से यानी मुंह से तथा कुछ नाक में स्प्रे भी किए जाते हैं.
गर्भावस्था में माता व उसके गर्भस्थ शिशु को कई रोगों व समस्याओं से बचाने के लिए माता को टिटनेस, इन्फ्लूएंजा, टीडैप तथा हेपेटाइटिस-बी आदि टीके लगाए जाते हैं. इसके अलावा बच्चे को जन्म के तुरंत बाद से लेकर पांच सालों तक टीबी, पोलियो, रोटावायरस, दस्त, काली खांसी, टिटनेस, हेपेटाइटिस बी, खसरा, हिब-निमोनिया और मेनिनजाइटिस जैसी बीमारियों से बचाने के लिए नियमित समय पर पोलियो खुराक, चिकन पॉक्स वैक्सीन, एमएमआर, बीसीजी, ओपीवी, रोटा, एफआईपीवी, पेंटावेलेंट, एमसीवी, विटामिन-ए, डीपीटी तथा टीटी के उम्र अनुसार अलग –अलग प्रकार व मात्रा के टीके लगाए जाते हैं.