हैदराबाद : तेलंगाना के मुलुगु जिले में स्थित रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple) को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) की सूची में जगह मिली है. हालांकि, तेलंगाना में कई ऐतिहासिक इमारतें व किले हैं, मगर रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलना बड़ी उपलब्धि है.
यह दर्जा हासिल करना कोई आसान रास्ता था. इस मंदिर की विशेषता को पूरी दुनिया के सामने लाने के लिए, राज्य और केंद्र सरकार ने कई प्रयास किए और अलग रणनीतियां अपनाईं, तब जाकर यह संभव हो सका. रामप्पा मंदिर को इसकी विशेष संरचना, वास्तुकला और विशेष सामग्री से निर्माण के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई, जो कई दशकों से समय की कसौटी पर खरी उतरी है.
मंदिर की मुख्य संरचना के आसपास कई निर्माण और अतिक्रमण न होने जैसे समेकित भौगोलिक लाभों ने भी यह दर्जा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
इससे पहले गोलकुंडा किला, चारमीनार और कुतुब शाही मकबरों को यूनेस्को की मान्यता के लिए प्रयास किए गए हैं. राज्य सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पास प्रस्ताव भी भेजे गए. हालांकि, इसमें अभी तक सफलता नहीं मिली है.
यूनेस्को के नियमों के अनुसार विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त करने के लिए उस भवन के 100 मीटर के दायरे में कोई अन्य संरचना नहीं होनी चाहिए. संरचना के चारों ओर 200 मीटर के दायरे को संरक्षित क्षेत्र माना जाना चाहिए. साथ ही संरचना यूनिक होनी चाहिए, दुनिया में किसी अन्य इमारत से मेल न खाती हो.
इन विनियमों और अन्य मुद्दों का पालन न करने के कारण इन संरचनाओं का अब तक विश्व धरोहर स्थल का दर्जा नहीं मिल सका है. हजार स्तंभों वाले रामप्पा मंदिर और वारंगल किले को शुरू में यूनेस्को के नियमों का पालन न करने के लिए अलग रखा गया था. हालांकि, रामप्पा मंदिर को अब यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दे दिया गया है.
रामप्पा मंदिर का इतिहास
आंंध्र प्रदेश के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव ने 13वीं सदी में रामप्पा मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने अपने शिल्पकार रामप्पा से ऐसा मंदिर बनाने को कहा, जो वर्षों तक टिका रहे. माना जाता है कि मंदिर का निर्माण सन 1213 में शुरू हुआ था और लगभग 40 साल में निर्माण कार्य पूरा हुआ था. रामप्पा ने अपने शिल्प कौशल से ऐसा मंदिर तैयार किया, जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत था. जिससे खुश होकर राजा ने मंदिर का नाम उसी शिल्पी के ही नाम पर रख दिया. यही खूबसूरती आज इसे यूनेस्को की धरोहर में शामिल करवा दिया.
काकतिय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र थे. उनकी देखरेख में पूरा निर्माण कार्य हुआ.
रामप्पा मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं, इसलिए इसे रामलिंगेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है और मंदिर के अधिष्ठाता देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं.