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विश्व पर्यावास दिवस 2021: जानिए इसका महत्व, इतिहास और विषय

हर वर्ष अक्‍टूबर माह के पहले सोमवार को विश्‍व पर्यावास दिवस मनाया जाता है. संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा द्वारा 1985 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की गई थी. हर साल अलग-अलग थीम तय की जाती है, और उस थीम के अनुसार बेहतरी के लिए निर्णय लिए जाते हैं. साल 2021 की थीम है- 'कार्बन मुक्‍त दुनिया के लिए शहरी कार्रवाई में तेजी लाना.' पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

विश्व पर्यावास दिवस
विश्व पर्यावास दिवस

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Published : Oct 4, 2021, 5:00 AM IST

हैदराबाद :वर्ल्ड हैबिटेट डे (विश्व पर्यावास दिवस) प्रतिवर्ष अक्टूबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य मानव बस्तियों की स्थिति और पर्याप्त आश्रय के लिए सभी के बुनियादी अधिकार पर जोर देना है. साथ ही लोगों को यह याद दिलाना भी है कि वह भावी पीढ़ियों के निवास के लिए जिम्मेदार हैं. इस वर्ष यह 4 अक्टूबर को मनाया जाएगा. विश्व पर्यावास दिवस को दुनिया को यह दिलाने के लिए भी मनाया जाता है कि हम सभी लोगों को अपने-अपने शहरों और कस्बों के भविष्य को लेकर उसे आकार देने की जिम्मेदारी है.

हर साल, विश्व पर्यावास दिवस की एक नई थीम होती है, जो सभी के लिए पर्याप्त आश्रय सुनिश्चित करने वाली सतत विकास नीतियों को बढ़ावा देने के लिए यूएन-हैबिटेट के जनादेश पर आधारित होती है. साल 2021 की थीम है 'कार्बन मुक्‍त दुनिया के लिए शहरी कार्रवाई में तेजी लाना.'

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, शहरी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बड़े हिस्से के लिए परिवहन, भवन, ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन के साथ वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 70 प्रतिशत के लिए शहर जिम्मेदार हैं. यह दिन वैश्विक दौड़ को शून्य अभियान और यूएन-हैबिटेट के क्लाइमेटएक्शन4सिटीज तक बढ़ा देगा और स्थानीय सरकारों को इस साल नवंबर में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन COP26 के लिए कार्रवाई योग्य शून्य-कार्बन योजनाओं को विकसित करने के लिए प्रेरित करेगा.

विश्व पर्यावास दिवस का इतिहास

  • विश्व पर्यावास दिवस की स्थापना 1985 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 40/202 के तहत की गई थी.
  • विश्व पर्यावास दिवस पहली बार साल 1986 में मनाया गया, जिसकी थीम 'शेल्टर इज माय राइट' थी. उस वर्ष इसके पालन के लिए नैरोबी मेजबान शहर था.
  • विश्व पर्यावास दिवस की पिछली थीम: 'शेल्टर फॉर दि होमलेस' (1987, न्यूयॉर्क); 'आश्रय और शहरीकरण' (1990, लंदन); 'फ्यूचर सिटीज' (1997, बॉन, जर्मनी); 'सुरक्षित शहर' (1998, दुबई); 'शहरी शासन में महिलाएं' (2000, जमैका); 'सिटीज विदआउट स्लम' (2001, फुकुओका, जापान), 'शहरों के लिए पानी और स्वच्छता' (2003, रियो डि जनेरियो), 'हमारे शहरी भविष्य की योजना' (2009, वॉशिंगटन), 'बेहतर शहर, बेहतर जीवन' (2010, शंघाई, चीन) और 'शहर एवं जलवायु परिवर्तन' (2011, Aguascalientes, मैक्सिको).
  • साल 1989 में यूएन ह्यूमन सेटलमेंट्स प्रोग्राम द्वारा हैबिटेट स्क्रॉल ऑफ ऑनर पुरस्कार लॉन्च किया गया था. वर्तमान में यह दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित मानव बस्तियों का पुरस्कार है.
  • इसका उद्देश्य उन पहलों को स्वीकार करना है, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया है, जैसे- आश्रय का प्रावधान, बेघरों की दुर्दशा को उजागर करना, संघर्ष के बाद पुनर्निर्माण में नेतृत्व करना और मानव बस्तियों और शहरी जीवन की गुणवत्ता को विकसित करना और सुधारना.

शहरीकरण और कार्बन उत्सर्जन

बीसवीं सदी के मध्य से वैश्विक शहरी आबादी तेजी से बढ़ी है. विश्व बैंक के अनुसार 1950 और आज के बीच, दुनिया भर के शहरों की आबादी चौगुनी से अधिक हो गई है. यही वजह है कि 4.2 बिलियन से अधिक लोग अब शहरी वातावरण में रह रहे हैं. यूएनडीईएसए के अनुसार अगले 30 वर्षों में शहरों और कस्बों में और 2.5 अरब लोग शहरों से जुड़ जाएंगे. इसमें 2050 तक शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का प्रतिशत लगभग 70 फीसदी हो जाएगा जो वर्तमान में 55 फीसदी है. वर्तमान में, अधिक विकसित क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना अधिक शहरी निवासी कम विकसित क्षेत्रों में रहते हैं. इनमें 90 फीसदी नए शहरी निवासी अफ्रीका और एशिया में रहते हैं. वहीं वर्तमान समय में दुनिया भर के शहरों में ऊर्जा की खपत करीब 75 फीसदी होती है जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 60 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेदार है.

जिस तरह से शहरों की योजना के अलावा उनका निर्माण और प्रबंधन किया जाता है, वह कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर 2015 पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ग्लोबल वार्मिंग को बनाए रखने की कुंजी है. दूसरी तरफ बढ़ती जनसंख्या वृद्धि और शहरों में लोगों के रहने के अलावा कई मामलों में जलवायु परिवर्तन की वजह से विशेषकर गरीबों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में चुनौती पैदा करती है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, लगभग 1.8 बिलियन लोग कोरोनोवायरस महामारी के प्रकोप से पहले से ही झुग्गी-झोपड़ियों और अनौपचारिक बस्तियों में, अपर्याप्त आवास या दुनिया भर के शहरों में बेघरों में रह रहे थे. महामारी के बीच, रहने, काम करने और सीखने के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए घर की आवश्यकता उल्लेखनीय रूप से बढ़ गई है.

संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के अनुसार शहर भी जलवायु संकट की अग्रिम पंक्ति में हैं. इस वजह से आधे अरब से अधिक शहरी निवासी पहले से ही बढ़ते समुद्र के स्तर या गंभीर तूफान का सामना कर रहे हैं. साथ ही सदी के मध्य तक 3.3 अरब से अधिक शहरी निवासियों को गंभीर जलवायु प्रभावों का खतरा हो सकता है.

भारत में स्थिति

भारत दुनिया की सबसे बड़ी शहरी आबादी में से एक है, जिसमें 2011 की जनगणना के अनुसार देश के कुल 7,935 शहरों में से 6,166 महानगरों / शहरी कस्बों में फैले 377 मिलियन से अधिक हैं. लेकिन 2030 तक भारत की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में रहने लगेगी और बड़े शहरों की संख्या पांच से बढ़कर सात या इससे ज्यादा हो जाएगी. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2015 और 2030 के बीच भारत में अधिकांश जनसंख्या वृद्धि शहरी क्षेत्रों में होगी जिससे लगभग 164 मिलियन लोग इसके शहरी आधार में जुड़ जाएंगे.

चुनौतियां

भारत सुधारों और आर्थिक लाभों को बनाए रख सकता है और निर्माण कर सकता है. हालांकि, स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं को मजबूत करने के लिए पर्याप्त क्षमता और समर्थन की जरूरत होगी. हालांकि स्थानीय सरकारों / उपयोगिताओं को आवश्यक उपकरणों से लैस करने की आवश्यकता है ताकि एक स्थायी और समावेशी शहरीकरण के साथ-साथ भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर स्थापित किया जा सके.

अनुमान के मुताबिक 180 मिलियन ग्रामीण भारत के 70 सबसे बड़े शहर के समीप रहते हैं जिसकी संख्या 2030 तक बढ़कर लगभग 210 मिलियन हो जाएगी. इसी तरह 2030 तक भारतीय शहरों में 60 मिलियन लोग रहने लगेंगे. इस तरह हर साल एक शिकागो का निर्माण करना होगा.इस तरह इसमें पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर के अलावा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने सहित कई बिंदु शामिल हैं.

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