केवलादेव पर भी ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव भरतपुर.पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का असर लगातार देखने में आ रहा है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. जलवायु परिवर्तन के चलते जहां देश के औसत तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, वहीं वार्षिक वर्षा और समुद्र के स्तर में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जहां बीते तीन दशक में पक्षियों की प्रजातियों और उनकी संख्या में कमी आई है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के हाल ही के एक अध्ययन में देश के पर्यावरण में आ रहे चौंकाने वाले बदलावों का खुलासा हुआ है.
117 साल के पर्यावरण पर अध्ययन :वर्ल्ड एग्रोफोरेस्ट्री (आईसीआरएएफ) के राजस्थान राज्य संयोजक और राजपूताना सोसाइटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के पूर्व निदेशक और पर्यावरणविद् डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में सबसे बड़ा नुकसान पर्यावरण का हुआ है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भारत के औसत तापमान, औसत वर्षा समेत अन्य पहलुओं में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अध्ययन 'असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन' में भी ये तथ्य सामने आए हैं. यह अध्ययन वर्ष 1901 से 2018 तक के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर किया गया है.
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बढ़ गया देश का औसत तापमान :डॉ. मेहरा ने बताया कि आधुनिक संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल और पेड़ों की कटाई के चलते ओजोन परत को नुकसान पहुंचा है. इससे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है. अध्ययन में पता चला है कि वर्ष 1901 से 2018 के दौरान भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.
ये-ये बदलाव आए
- वर्ष 1950 से 2015 के दौरान दैनिक वर्ष की आवृत्ति (150 मिमी प्रति दिन से अधिक तीव्र वर्षा) में करीब 75% की वृद्धि हुई है.
- पिछले ढाई दशक (1993 से 2017 तक) उत्तरी हिंद महासागर में समुद्र स्तर में 3.3 मिमी की दर से वृद्धि हुई है.
- वर्ष 1998 से 2018 के मानसून बाद ऋतु के दौरान अरब सागर में प्रचंड चक्रवाती तूफान की आवृत्ति में वृद्धि हुई है.
- मौसम विभाग के 30 साल के आंकड़ों (1989 से 2018 तक) के विश्लेषण से पता चला है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में वार्षिक वर्षा के ट्रेंड में कमी आई है.
- वर्ष 1989 से 2018 के दौरान सौराष्ट्र और कच्छ, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, आंध्रप्रदेश के उत्तरी भाग, दक्षिण पश्चिमी ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्र, छत्तीसगढ़ के कई भाग, दक्षिण पश्चिमी मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, कोंकण, गोवा और उत्तराखंड में भारी वर्षा वाले दिनों की आवृत्ति में काफी वृद्धि देखी गई है.
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केवलादेव नेशनल पार्क पर अध्ययन : डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि वर्ष 2021 में बीएससी स्टूडेंट हर्ष सिंघल ने 'क्लाइमेट चेंज एंड द अविफौनल पैटर्न ऑफ़ द वेटलैंड इन एंड अराउंड केवलादेव नेशनल पार्क' विषय पर अध्ययन किया था. इसमें पता चला था कि वर्ष 1991 से 2000 तक बरसात के औसत दिन 35 तक हुआ करते थे जो वर्ष 2011 से 2020 तक सिमट कर 25 से 27 दिन रह गए. बीते 30 वर्ष में बरसात के औसत दिनों में करीब 20% तक की गिरावट हुई. इस अवधि के अध्ययन में पता चला कि सर्दी का औसत न्यूनतम तापमान भी 3 से 4 डिग्री से बढ़कर 6 से 7 डिग्री हो गया. यानी सर्दी के औसत न्यूनतम तापमान में 2 से 3 डिग्री तक की वृद्धि हो गई.
पक्षियों की कॉलोनी में 70 फीसदी गिरावट :जलवायु परिवर्तन में हुए इन बदलावों का ही नतीजा था कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 3 दशक में पक्षियों की कॉलोनी में 70 फीसदी तक की गिरावट आई है. वर्ष 1991 में जहां केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों के 5549 घोंसले दर्ज किए गए थे. वहीं, वर्ष 2020 में ये घोंसले घटकर 1586 रह गए. डॉ. मेहरा का कहना है कि यदि हमें जलवायु परिवर्तन के इन दुष्प्रभावों से बचना है तो ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे, पॉलिथिन का उपयोग बंद करना होगा. पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे तभी पर्यावरण का स्वास्थ्य बेहतर हो सकेगा.