हैदराबाद : विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Desertification and Drought Prevention Day) हर साल 17 जून को मनाया जाता है. इस साल यह खराब भूमि को स्वस्थ भूमि में बदलने पर केंद्रित होगा. इतना ही नहीं इस तरह की भूमि को पुनर्स्थापित करने से न केवल रोजगार सृजित होते हैं, बल्कि आय और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होती है.
इसकी रोकथाम से जैव विविधता को पुनर्प्राप्त करने में मदद करने के साथ वायुमंडलीय कार्बन को पृथ्वी को गर्म करने, जलवायु परिवर्तन को धीमा करने से रोका जा सकता है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अलावा कोविड-19 महामारी को भी कम करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि इस साल के मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को भूमि की बहाली, कोविड-19 व आर्थिक सुधार के बाद योगदान की थीम पर आधारित होगा.
मरुस्थलीकरण क्या है?
मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. यह मुख्य रूप से मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तनों के कारण होता है. मरुस्थलीकरण में मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार का उल्लेख नहीं है.
यह शुष्क भूमि परिवेश के कारण होता है, जो विश्व के भू- क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को कवर करता है, अत्यधिक दोहन और अनुपयुक्त भूमि, उपयोग के लिए बेहद असुरक्षित हैं. गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अतिवृष्टि और सिंचाई के खराब तरीके भूमि की उत्पादकता को कम कर सकते हैं.
मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्या है?
- मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व दिवस' के रूप में घोषित किया गया था. मरुस्थलीकरण तब होता है जब उपजाऊ भूमि मानव गतिविधि के माध्यम से मिट्टी के अत्यधिक दोहन के कारण शुष्क हो जाती है.
- किसी ग्रह के जीवन चक्र के दौरान मरुस्थल स्वाभाविक रूप से बनते हैं, लेकिन जब मानव उपयोग के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की भारी और अनियंत्रित कमी होती है, तो यह मरुस्थलीकरण की ओर ले जाता है.
- वहीं बढ़ती विश्व जनसंख्या के कारण रहने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है. साथ ही मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए भोजन की मांग बढ़ जाती है. इन मांगों और आवश्यकताओं को पूरा करने का मतलब है कि अच्छी उपजाऊ भूमि का दुरुपयोग. फलस्वरुप वह भूमि रेगिस्तान में बदलती जा रही है.
मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस का उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को यह बताने के लिए कि मरुस्थलीकरण और सूखे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है. उसके प्रति लोगों में जागरुकता को बढ़ावा देकर उसका समाधान किया जा सकता है. हालांकि, इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर मजबूत व सामुदायिक भागीदारी और सहयोग में निहित है.
इसमें विशेष रूप से अफ्रीका में गंभीर सूखे या मरुस्थलीकरण का सामना कर रहे देशों में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के कार्यान्वयन को मजबूत करना भी शामिल है.
हम मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्यों मनाते हैं?
मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद 30 जनवरी, 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस घोषित किया गया था.
यह दिन मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के मुद्दों और इससे निपटने के तरीके के बारे में सभी को जागरूक करने के लिए आयोजित किया जाता है. इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर सामुदायिक भागीदारी के बारे में व्यक्तियों को जागरूक करना और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निष्पादन को मजबूत करना है. विश्व स्तर पर, 23 फीसद भूमि अब उत्पादक नहीं है. वहीं 75 फीसद में ज्यादातर भूमि को कृषि के लिए उसकी प्राकृतिक अवस्था से बदल दिया गया है.
हालांकि, भूमि उपयोग में यह परिवर्तन मानव इतिहास में किसी भी समय की तुलना में काफी तेज गति से हो रहा है, और पिछले 50 वर्षों में इसमें तेजी आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में विकास इतनी तेजी से होता है कि उसके मुकाबले यह प्रक्रिया बहुत कम समय में ही देखी जा सकती है.