बीकानेर. भुजिया के तीखेपन और रसगुल्ला की मिठास के साथ ही अपने सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत को समेटे बीकानेर शहर (Gangaur Celebration in Bikaner) अपनी अलग पहचान रखता है. तीज-त्यौहर को मनाने के मामले में भी इस शहर का अलग अंदाज दिखाई देता है. इसी कड़ी में धुलंडी के बाद से 16 दिन तक महिलाओं की ओर से (Bikaner Wooden Gangaur) मनाई जाने वाली गणगौर को लेकर भी बीकानेर की खास पहचान है. खास तौर पर बीकानेर में बनने वाली लकड़ी के गणगौर को लेकर. बीकानेर में लकड़ी पर हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में प्रसिद्ध है.
महिलाओं के लिए खास उत्साह वाला गणगौर त्यौहार होली के अगले दिन यानि की धुलंडी के साथ ही शुरू होता है. अगले 16 दिन तक महिलाएं अपने घर में एकल और सामूहिक रूप से गणगौर का पूजन करती हैं. लगातार 16 दिन तक गणगौर की पूजा-र्चना के साथ ही महिलाएं दिनभर गणगौर के गीत घरों गाती हैं. सामूहिक रूप से परिवार में गणगौर की पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की मंगल की कामना करती है. गणगौर की पूजा में 16 दिन तक हर दिन गणगौर के बासा देने की परंपरा है. मान्यता है कि इस दौरान जो भी मन्नत हो वो पूरी होती है. बीकानेर में राजपरिवार की ओर से भी गणगौर की खोल भराई की रस्म की जाती है और गणगौर की शाही सवारी भी निकाली जाती है.
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सागवान की लकड़ी से बनती है गणगौरः बीकानेर में लकड़ी की गणगौर (प्रतिमा) बनाई जाती है. यहां बनी लकड़ी की हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में विख्यात है. सागवान की लकड़ी से हाथ से बनी गणगौर (Wooden Gangaur is Made in Bikaner) कुछ खास तरीके और करीने से बीकानेर में बनाया जाता है. पूरी गणगौर के तैयार होने के बाद सोलह सिंगार के बाद ऐसा लगता है कि कोई महिला ही श्रृंगार किए खड़ी है. पीढ़ियों से काम कर रहे गिरधारी कहते हैं कि वह चौथी पीढ़ी में है जो इस काम को कर रहे हैं. उनसे पहले उनके पूर्वज गणगौर बनाने का काम करते थे और पूरे साल में सिर्फ इसी काम में जुटे हुए रहते हैं.
देश के विभिन्न शहरों से आते हैं लोगः गिरधारी बताते हैं कि बीकानेर ही नहीं बल्कि देश के अन्य शहरों और विदेशों से भी लोग गणगौर को लेने के लिए लोग हमारे पास आते हैं और पूरे साल यह काम जारी रहता है. ऑर्डर पर भी आपूर्ति की जाती है. 30 हजार से 3 लाख रुपए तक की गणगौर बनाने के काम में जुटे सांवरलाल कहते हैं कि वे पूरी शिद्दत के साथ इस काम को करते हैं. एक गणगौर को बनाने में कम से कम 15 दिन लगते हैं. वे कहते हैं कि सागवान की लकड़ी पर बनी गणगौर 30 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक की होती है.