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जम्मू-कश्मीर : महिला आयोग की निष्क्रियता पर उठे सवाल, कौन सुनेगा पीड़ा ?

केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 34ए निरस्त किए जाने के साथ ही महिला और बाल अधिकार संरक्षण राज्य आयोग भी खत्म हो गया था. इसको लेकर केंद्र शासित प्रदेश की एक वकील का कहना है कि तब से महिलाओं की दशा और खराब हो गई है. ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्हें न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं. दिल्ली में एक राष्ट्रीय महिला आयोग है, लेकिन वहां पहुंचना सबसे बस में नहीं है. गुलशन जैसी कई महिलाएं असहज होने के बावजूद अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं.

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Published : Mar 19, 2021, 12:50 PM IST

Updated : Mar 19, 2021, 2:11 PM IST

no women commission in kashmir
no women commission in kashmir

श्रीनगर :केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के लाल बाजार इलाके में रहने वाली 35 वर्षीय गुलशन इरफान शाह अपने पति की मौत के बाद अब अपने ही घर में अजनबी हो गई हैं. पिछले साल कैंसर के कारण पति की मौत के बाद से ससुराल वालों की प्रताड़ना और आरोपों को सहते हुए गुलशन न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही हैं.

गुलशन ने ईटीवी भारत को बताया, 'मेरे पति की कैंसर से मृत्यु हो गई. मैं इलाज के लिए दिल्ली गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और पिछले साल सितंबर में वह इस दुनिया से चले गए.' उन्होंने अपने ससुराल वालों पर आरोप लगाया कि उनको ससुराल वालों से कोई मदद नहीं मिली. मुश्किल के इस दौर में उनके साथ उनके माता-पिता और पति के दोस्त ही हैं.

पीड़िता का बयान

पति की मौत के बाद ससुराल ने भेजी चेतावनी
गुलशन ने बताया कि 'मेरे पति की मृत्यु के एक सप्ताह के भीतर, मेरे ससुराल वालों ने मेरे नाम से चेतावनी भेजी. एक गृहिणी होने के नाते मुझे इसका मतलब समझ नहीं आया. हालांकि, जब मुझे पता चला तो मेरे होश उड़ गए. '

सीसीटीवी से निगरानी
रोते हुए गुलशन ने बताया कि 'उस दिन के बाद से मेरे दुखों का अंत नहीं हुआ है. मेरे ससुराल वाले मुझे परेशान करने के लिए सभी तरह के आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने मुझे और मेरे बच्चों को स्टील की छड़ से पीटा है. मुझ पर सीसीटीवी के माध्यम से लगातार नजर रखी जाती है. मेरा जीवन नरक बन गया है.

मायके से मिल रही है आर्थिक मदद
दो बच्चों की मां गुलशन ने ससुराल वालों पर आरोप लगाते हुए कहा कि ससुराल वाले गुलशन और उनके बच्चों के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं. वह बच्चों को संपत्ति के अधिकार से वंचित कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 'मेरे माता-पिता और भाई-बहन आर्थिक रूप से हमारी मदद कर रहे हैं और मुझे नहीं पता कि कब तक चल पाएगा.'

अदालत के चक्कर
गुलशन कहती हैं कि जब उनके सामने सभी रास्ते बंद हो गए तो उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा. वह कहती हैं, 'मामला अदालत में है, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. पहली सुनवाई के दौरान वकील अनुपस्थित थे, दूसरी सुनवाई के दौरान मेरा वकील देर से आया और तीसरी सुनवाई के दौरान जज अवकाश पर थे.'

वकील फिजा फिरदौस का बयान

बच्चों के लिए लड़ने का संकल्प
उन्होंने महिला आयोग से मदद की उम्मीद जताई और कहा कि वहां चीजें अगल होती हैं. हालांकि, मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. गुलशन ने का 'मैं अदालत में असहज महसूस करती हूं, लेकिन अपने बच्चों के लिए मुझे अंत तक लड़ना होगा.'

नहीं काम कर रहा महिला आयोग
गुलशन उन कई महिलाओं में से एक हैं जो जम्मू-कश्मीर में स्टेट कमीशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ वीमेन एंड चाइल्ड राइट्स की अनुपस्थिति के कारण पीड़ित हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त होने के बाद यह आयोग भी निरस्त हो गया था.

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निवारण मंच का अभाव
वर्तमान में, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 250 से अधिक महिलाएं हैं, जिनके मामले आयोग के समक्ष लंबित थे. ऐसे मामलों से निपटने वाले वकील भी किसी निवारण मंच के अभाव में पीड़ितों के दर्द को महसूस कर रकते हैं.

अदालतों में न्याय, लेकिन महिलाएं असहज
महिलाओं से संबंधित मामलों से निपटने वाली वकील फिजा फिरदौस ने कहा, जब से आयोग को निरस्त किया गया है, जम्मू-कश्मीर में महिलाओं की दुर्दशा बढ़ गई है. जब भी वे हमसे संपर्क करते हैं हम उन्हें अदालत जाने के लिए सलाह ही दे सकते हैं. अदालतों में न्याय मिलने में समय लगता है और महिलाएं सहज महसूस नहीं करती हैं. उनके मन में हिचकिचाहट है लेकिन अब कोई और रास्ता नहीं है.

राष्ट्रीय आयोग तक पहुंचना आसान नहीं
फिरदौस को लगता है कि सरकार को ऐसा फैसला लेने से पहले महिलाओं की दुर्दशा के बारे में सोचना चाहिए था. दिल्ली में एक राष्ट्रीय महिला आयोग है, लेकिन वहां पहुंचना आसान नहीं है. अगर किसी पीड़ित के पास इतने रुपये होते, तो वह इन मामलों के लिए अदालत या आयोग क्यों जाती?

उन्होंने बताया कि श्रीनगर में इस तरह के मामलों को निपटाने के लिए कैंप लगाया गया है. क्या यह मामले एक दिन में सुलझ सकते हैं? एक दिन में सिर्फ सुनवाई हो सकती है, निर्णय नहीं आ सकता.

Last Updated : Mar 19, 2021, 2:11 PM IST

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