हैदराबाद :भारत की न्याय रिपोर्ट (आईजेआर) मुख्य रूप से हर राज्य की न्याय देने की क्षमता में आने वाले उतार चढ़ाव तथा वित्तीय व ढांचागत पहलू पर नजर रखता है. इसके लिए आईजेआर मानव संसाधन व बजट के ताजा आकड़ों का इस्तेमाल करता है. इस दौरान पुलिस, न्यायपालिका, जेल व विधि सेवा के कार्यों को देखा जाता है. देश में पुलिस की भर्ती और पुलिसकर्मियों के संबंध में जानें इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020.
- 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से तीन, पुलिस आधुनिकीकरण कोष का उपयोग पूरी तरह से करते हैं.
- 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 10 प्रतिशत से अधिक महिलाएं पुलिस बल हैं.
- दो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने घोषित कोटा का कम से कम 80% कार्य किया है.
- नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का पुलिस का खर्च पिछले 5 सालों में उनके राज्य व्यय से अधिक रहा है.
- 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पिछले 5 वर्षों में कॉन्स्टेबल रिक्तियों को कम किया.
पुलिस की ताकत
- 2020 की शुरुआत में, राष्ट्रीय स्तर पर 20 प्रतिशत कॉन्स्टेबल रिक्तियां थी, जिसमें 2017 के मुकाबले दो प्रतिशत कमी आई है.
- कई राज्यों में रिक्तियां 25% तक बढ़ी हैं.
- 2017 में उत्तर प्रदेश में कॉन्स्टेबल की 53 प्रतिशत रिक्तियां थीं और अधिकारियों की 63 प्रतिशत रिक्तियां थी. अब उत्तर प्रदेश पुलिस रैंकिंग में तीन स्थान बढ़कर पंद्रहवें स्थान पर पहुंच गया है.
- तेलंगाना में पुलिस कॉन्स्टेबल की रिक्तियों को भरा नहीं गया, जहां 40% से अधिक पद खाली रहे. वहीं पुलिस अधिकारियों के 14% पद खाली रहे.
- मध्य प्रदेश और बिहार में पुलिस अधिकारियों के लगभग 49% पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई.
- उत्तराखंड में तीन प्रतिशत कॉन्स्टेबल के पद और नौ प्रतिशत अधिकारियों के पद रिक्त रहे.
- बिहार, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा में कॉन्स्टेबलों और अधिकारियों की श्रेणी में 21% से अधिक पद खाली रहे.
- सिक्किम में पुलिस अधिकारियों की भर्ती में 22% की वृद्धि देखी गई.
- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम में कॉन्स्टेबलों और अधिकारियों की श्रेणी में 20% पद खाली रहे.
- राष्ट्रीय स्तर पर, औसतन एक पुलिसकर्मी 858 व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है.
पुलिस में महिलाएं
- 2009 की भारत सरकार की एडवाजरी के बाद लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने महिलाओं की रिक्तियों के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का लक्ष्य रखा. दस राज्यों ने यह आरक्षण 10 % या 10 प्रतिशत से कम निर्धारित किया. वहीं आठ राज्यों ने कोई आरक्षण नहीं रखा.
- 2017 के बाद से तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने आरक्षण को 33% से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया. बिहार ने सबसे अधिक 38 प्रतिशत आरक्षण का लक्ष्य रखा.
- राष्ट्रीय औसत से देखा जाए तो महिलाओं की रिक्तियां 10 फीसदी कम हैं. हालांकि, 2017 से इसमें 7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.
- 2015 और 2019 के बीच, बिहार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुलिस में 7 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हुआ. हिमाचल प्रदेश में 12 प्रतिशत से बढ़कर 19 प्रतिशत हुआ और गुजरात में 4 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत हुआ.
- बिहार के हर चार पुलिसकर्मिंयों में एक महिला पुलिसकर्मी है.
- हिमाचल प्रदेश में हर पांच पुलिसकर्मिंयों में से एक महिला पुलिसकर्मी है.
- महिला पुलिसकर्मी की सबसे अधिक हिस्सेदारी होने के बावजूद बिहार में केवल 6 प्रतिशत महिला, अधिकारी स्तर पर हैं और हिमाचल प्रदेश में 5 फीसदी महिला, अधिकारी स्तर पर हैं.
- राष्ट्रीय स्तर पर, केवल 7 प्रतिशत महिला, अधिकारी स्तर पर पदस्त हैं.
पुलिस में अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व
- कर्नाटक में एससी, एसटी और ओबीसी की रिक्तियां पूर्णत: भरी गई हैं.
- नौ राज्यों ने अनुसूचित जाति अधिकारी कोटा 67 प्रतिशत या अधिक भरे गए हैं.
- महिला एससी कॉन्स्टेबलों की भर्ती 90 प्रतिशत रही.
बजट व्यय