दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

भारत से 56 साल पीछे अमेरिका, 119 देशों ने आज तक महिलाओं को नहीं सौंपी सत्ता

लोकतंत्र, समानता, महिला अधिकार और मानव अधिकार को अपनी 'थाती' समझने वाले पश्चिम के अधिकांश देशों में आज भी महिलाएं शीर्ष पद तक नहीं पहुंच सकी हैं. विकास के हरेक पैमाने पर अपने आप को 'सर्वश्रेष्ठ' समझने वाले अमेरिका के इतिहास में आज तक कोई भी महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकी है. जबकि श्रीलंका और भारत जैसे विकासशील देशों ने साठ और सत्तर के दशक में ही महिलाओं के हाथों में सरकार का नेतृत्व सौंप दिया था. श्रीलंका की सिरिमावो भंडारनायके किसी भी देश की चुनी हुई पहली महिला प्रधानमंत्री थीं. उसके बाद भारत ने इंदिरा गांधी को नेतृत्व का मौका दिया था. एक दिन पहले ही ब्रिटेन ने महिला नेता लिज ट्रेस को प्रधानमंत्री बनाया है. आइए एक नजर डालते हैं दुनिया के किन-किन देशों में महिलाएं सत्ता के शीर्ष पर काबिज हैं. women heads across world .

design photo
डिजाइन फोटो

By

Published : Sep 6, 2022, 10:22 PM IST

Updated : Sep 7, 2022, 5:20 PM IST

नई दिल्ली : अमेरिका और यूरोप के देश, भारत जैसे देशों को जनतंत्र की दुहाई देते हैं. वे महिला को समान अधिकार देने की बातें करते हैं. खुद रंगभेद की राजनीति से ग्रसित हैं, लेकिन दूसरों को जाति और धर्म के नाम पर नसीहत देते रहते हैं. लेकिन, शायद वे भूल जाते हैं कि भारत ने सत्तर के दशक (1966-67) में ही इंदिरा गांधी जैसी मंझी हुई राजनेता को नेतृत्व का मौका दे दिया था. श्रीलंका का इतिहास भारत से भी पुराना है. बल्कि पूरी दुनिया में वह पहला देश है, जिसने किसी महिला को प्रधानमंत्री पद पर आसीन किया था.women heads across world.

इंदिरा गांधी

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि एशियाई देशों ने राजनीति के इस पहलू पर पश्चिमी देशों को सोचने पर मजबूर कर दिया. एशियाई देशों ने जो राह दिखाई है, अमेरिका आज तक उस पर आगे नहीं बढ़ सका है. अमेरिकी इतिहास में आज तक एक भी महिला को राष्ट्रपति बनने का मौका नहीं मिला. अभी वहां पर भारतीय मूल की कमला हैरिस उप राष्ट्रपति हैं. इससे पहले हिलेरी क्लिंटन ने चुनाव लड़ा था, लेकिन वह चुनाव हार गईं. वैसे, अमेरिकी कांग्रेस की एक चौथाई सदस्य महिलाएं हैं.

ताइवान की राष्ट्रपति

एशियाई देशों की नजीर देखें, तो श्रीलंका और भारत के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी महिलाओं को राजनीतिक शिखर तक पहुंचाया. बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. उनके पिता भी पाकिस्तान के पीएम बने थे. बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना अभी भारत दौरे पर हैं. वहां पर बेगम खालिदा जिया भी पीएम रह चुकी हैं. दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रहती है, लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में महिलाओं का वर्चस्व भारत की ही देन है.

2021 के यूएन के लिस्ट के अनुसार 193 देशों में से 27 देशों में महिलाएं टॉप पद पर काबिज थीं. यूरोप के करीब 46 देशों में से 13 देशों में राजनीतिक नेतृत्व महिलाओं के पास है. अब ब्रिटेन का भी इसमें नाम जुड़ गया है. 1945 में जब संयुक्त राष्ट्र अपने अस्तित्व में आया था, तब पूरी दुनिया में एक भी ऐसा देश नहीं था, जहां पर सरकार का नेतृत्व किसी महिला के हाथों में हो.

ब्रिटेन की नई पीएम लिज ट्रस, साथ में हैं भारत के विदेश मंत्री

यूरोप के 46 देशों में से 13 देशों की सरकारों का नेतृत्व महिलाओं के पास है. इसी साल मई महीने में इंडिया-नोर्डिक देशों की एक बैठक हुई थी. बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नार्वे के प्रधानमंत्री जोंस गहर ही सिर्फ पुरुष थे. बाकी सभी प्रतिनिधि महिलाएं थीं. डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, स्वीडन की राष्ट्र प्रमुख महिलाएं हैं. यूरोप के अन्य देशों में मोलदोवा, एस्टोनिया, ग्रीक, हंगरी, आइसलैंड, कोसोवो, लिथुआनिया और सर्बिया का नेतृत्व महिलाओं के पास है. अब तो ब्रिटेन का भी नाम जुड़ गया है.

इंटरेस्टिंग ये है कि सर्बिया की प्रधानमंत्री ने खुलेआम स्वीकार किया है कि वह लेस्बियन हैं. और वहां के लोगों ने इसे स्वीकार भी किया. वैसे आपको बता दें कि 1970 के दशक के उत्तरार्ध से यूरोपीय देशों ने महिलाओं को राष्ट्राध्यक्ष या सरकार प्रमुख के रूप में चुनना शुरू किया था. कई लोगों ने सत्ता पर काबिज रहने में महारत हासिल की. थैचर ने 1979 से 1990 तक यूके के पीएम के रूप में अपना पद संभाला, जबकि एंजेला मर्केल ने 2005 से 2021 तक जर्मन चांसलर के रूप में काम किया. मिल्का प्लानिन 1982-1986 तक पूर्व यूगोस्लाविया की पीएम थीं. माना जाता है कि यूरोप में प्रगतिशील राजनीति, यूरोपीय संघ के कार्यक्रमों के तहत बेहतर प्रतिनिधित्व और युवा पीढ़ी के उदय की वजह से महिलाओं ने राजनीति में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेना शुरू किया.

जॉर्जिया जो मुख्य रूप से एशिया और यूरोप में आता है. यहां की अधिकांश आबादी एशिया में रहती है. इसने भी 2018 में सालोमे जाउराबिचविलि (महिला) को राष्ट्रपति के रूप में चुना. ग्रीक की पीएम कैटरीना साकेल्लारोपाउलो, हंगरी की राष्ट्रपति कातालिन नोवाक, स्लोवाकिया की राष्ट्रपति जुजाना कैपुटोवा, मोलदोवा की राष्ट्रपति मैया संदु हैं. मालदोवा में पीएम और राष्ट्रपति दोनों ही महिलाएं थीं. डेनमार्क की प्रमुख मेट्टी फ्रेडरिक्सन, फिनलैंड में सना मारिन, सर्बिया में अना बर्नाबीक, स्वीडन में मैगडलेना एंडरसन के हाथों में देश की बागडोर है.

बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ

एस्टोनिया ने 2021 में पहली बार काजा कल्लास (Kaja Kallas) के रूप में किसी महिला को बतौर प्रधानमंत्री चुना. एस्टोनिया की राष्ट्रपति भी महिला (kersti Kaljulaid) बनीं. लेकिन गत अक्टूबर में कर्स्टी पद से हट गईं. कल्लास ने अपने कैबिनेट में भी कुछ महिलाओं को जगह दी है.

ताइवान की प्रेसिडेंट साइ इंग वेन भी 2016 से ही पद पर बनीं हुईं हैं. हाल ही में वह काफी सुर्खियों में रह चुकी हैं. इन्होंने अमेरिकी मंत्री का अपने देश में स्वागत किया था, जिसकी वजह से चीन भड़क गया था. चीन ने ताइवान के चारों ओर से मिलिट्री एक्सरसाइज के नाम पर घेरने की कोशिश की, लेकिन साइ इंग जरा भी विचलित नहीं हुईं. उन्होंने इन परिस्थितियों का सामना डंटकर किया. भारत से भी उनके रिश्ते काफी मधुर हैं. हाल के वर्षों में भारत और ताइवान में नजदीकियां बढ़ीं हैं.

न्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा अर्डेनहैं. कोरोना काल में इन्होंने जिस तरीके से काम किया, पूरी दुनिया उनकी मुरीद हो गई. आइसलैंड की पीएम कार्टिन जाकाओब्सडोट्टीर( Kartin Jakaobsdottir) हैं. इन्होंने 2040 तक देश को कार्बन न्यूट्रल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. नामीबिया की पीएम Saara Kuugongelwa हैं. जब वह 13 साल की थीं, तब उन्हें देश निकाला दे दिया गया था. बाद में उन्होंने दूसरे देश में रहकर इकोनोमिक्स में डिग्री हासिल की. उन्होंने देश में पहली बार सरप्सल बजट भी पेश किया. नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी हैं. वह जेंडर समानता को लेकर मुखर रहीं हैं. 2020 में ग्रीक, मालदोवा, टोगा, गेबोन और 2019 में आस्ट्रिया, बेल्जियम और स्लोवाकिया ने भी शीर्ष स्थान पर महिलाओं को जगह दी.

न्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा अर्डेन

सत्ता की बेहतरीन गारंटी नहीं- देश का नेतृत्व किसी महिला के हाथ में हो, तो इसका मतलब यह नहीं है कि लोकतांत्रिक आदर्शों को बरकरार ही रखा जाएगा. मार्च में, हंगरी ने अपनी पहली महिला राष्ट्रपति कातालिन नोवाक को चुना था. पीएम विक्टर ओर्बन के एक करीबी सहयोगी, नोवाक की आलोचना की गई थी कि वे पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करती हैं. हालांकि उन्होंने अपने चुनाव को महिलाओं की जीत और देश के लिए एक प्रगतिशील कदम के रूप में चित्रित किया. आलोचकों ने उन्हें एलजीबीटीक्यू विरोधी नीतियों के समर्थन के लिए सामाजिक रूप से रूढ़िवादी करार दिया. हंगरी में लोकतंत्र में गिरावट आई है, जिसने यूरोपीय संघ के साथ तनाव पैदा कर दिया है. ओर्बन भी पुतिन समर्थक हैं. इसलिए, नोवाक के पहली हंगेरियन महिला राष्ट्रपति बनने को एक रणनीतिक कदम तो माना जा सकता है, लेकिन सबकुछ उम्मीद के अनुरूप नहीं हुआ.

एजेंला मर्केल के साथ पीएम मोदी

कुछ प्रमुख तथ्य- सबसे आश्चर्य तो ये है कि 193 देशों में से 119 देशों ने आज तक किसी भी महिला को नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया है. अगर यही गति आगे भी कायम रही, तो अगले 130 सालों में भी सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. आप यह भी कह सकते हैं कि 1960 से लेकर अब तक मात्र 63 ऐसे देश रहे हैं, जिन्होंने महिलाओं को देश चलाने का मौका दिया. सबसे पहला नाम सिरिमावो भंडारनायके का नाम आता है. वह श्रीलंका फ्रीडम पार्टी से थीं. सबसे लंबे समय तक लगातार सत्ता में बने रहने का रिकॉर्ड जर्मनी की एंजेला मर्केल के पास है. वह 16 साल 16 दिनों तक चांसलर बनीं रहीं. इसके बाद डोमिनिका की डेमी यूजेनिया चार्ल्स थीं. वह 14 साल 328 दिनों तक लगातार सत्ता में रहीं. वैसे सिर्फ सत्ता में बने रहने का रिकॉर्ड देखा जाए, तो बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के पास है. वह 18 सालों से अधिक समय तक सत्ता में हैं. इंदिरा गांधी 16 साल 16 दिनों तक सत्ता में बनीं रहीं.

सिरिमावो भंडारनायके

ये भी पढ़ें : भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंध : अच्छे पड़ोस की कूटनीति के लिए एक रोल मॉडल

Last Updated : Sep 7, 2022, 5:20 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details