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छत्तीसगढ़ में गोबर से 'सोना' बना रहीं महिलाएं?

मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे-मोती...यह लाइन छत्तीसगढ़ पर सटीक बैठती है. यहां गोबर बेचकर महिलाएं सोना बना रहीं हैं. कवर्धा के सहसपुर लोहारा विकासखंड में गौठान की महिलाओं ने गोबर बेचकर हुई आमदनी से अपने लिए महंगे जेवर खरीदे हैं.

Kawardha Sahaspur Lohara Gauthan
छत्तीसगढ़ में गोबर से बन रहा सोना

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Published : May 12, 2022, 9:29 PM IST

कवर्धा : इंसान के लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं. बस उसका इरादा उस नामुमकिन को मुमकिन में बदलने का होना चाहिए. छत्तीसगढ़ की पहचान पूरे देश में नक्सलगढ़ के तौर पर होती थी. लेकिन अब इस प्रदेश ने अपनी पहचान एक ऐसी योजना से बनाई है, जिसकी तूती प्रदेश के साथ पूरे देश में बोल रही है. इस योजना का नाम है गोधन न्याय (Godhan Nyay Scheme in Chhattisgarh) योजना. इस योजना को जब प्रदेश में हरेली के मौके पर लॉन्च किया गया तो किसी ने ये सोचा ना था कि इस योजना से लाखों लोगों की जिंदगी बदलने वाली है.

छत्तीसगढ़ में गोबर से 'सोना' बना रहीं महिलाएं

कितनी हुई कमाई:महिला स्व-सहायता समूहों ने गौठानों में अलग-अलग प्रोजेक्ट के तहत काम किए. इसी कड़ी में कवर्धा जिले के सहसपुर लोहारा विकासखंड के गांव बीरेंद्र नगर में महिलाओं को लाखों का मुनाफा (Kawardha Sahaspur Lohara Gauthan ) हुआ. इस गांव में बने गौठान में संस्कार आत्म महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं काम करती हैं. गौठान में महिला स्व-सहायता समूह वर्मी कंपोस्ट तैयार करता है. समूह की अध्यक्ष हेमलता कौशल के मुताबिक '' अब तक 486 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बेचा है. हमें 9 लाख 59 हजार 560 रुपए की आय हुई है.इस गौठान में महिलाएं सुपर कंपोस्ट और वर्मी भी तैयार करती हैं. जिससे अच्छा खासा मुनाफा होता है. 227 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट से 1 लाख 36 हजार 260 रुपए और 14 क्विंटल वर्मी बेचने से 3 लाख 50 हजार की शुद्ध आमदनी हुई है.

वर्मी कंपोस्ट की आमदनी से खरीदे जेवर :संस्कार आत्मा स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष हेमलता कौशल ने बताया '' आमदनी से महिलाओं के घर की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो चुकी है. यही नहीं मुनाफे के पैसों से महिलाओं ने अपने लिए सोने का मंगलसूत्र, नेकलेस, झुमका, नथनी, चांदी की बिछिया जैसे गहने खरीदे (Gold being made from cow dung in Chhattisgarh) हैं. कुछ महिलाओं ने खुद को अपडेट रखने के लिए स्मार्ट फोन भी लिया है.'' अब महिलाओं का कहना है कि वो बचे हुए पैसों से आधुनिक तरीके से होने वाली खेती के सामान खरीदेंगी.

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कैसे हुई शुरुआत:स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष हेमलता ने बताया ''साल 2019-20 में समूह का गठन हुआ. इसी दौरान छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना गोधन योजना लांच हुई. हमें प्रशासन ने इस योजना के तहत काम करने के लिए प्रेरित किया. समय-समय पर सहयोग भी दिया गया. जिससे हम वर्मी कम्पोस्ट बनाकर अच्छी आमदनी कर रहे हैं. शुरुआत में हमें सिर्फ हमारा मेहनताना ही मिल पाता था. अब दूर-दूर से लोग वर्मी कम्पोस्ट लेने आते हैं. हमारी आमदनी काफी बढ़ गई है. हम 2 साल में लगभग 9 से 10 लाख रुपये कमा चुके हैं. समूह की बहुत सारी महिलाओं ने अपने लिए सोने-चांदी के आभूषण और स्मार्ट फोन भी खरीदा है. शासन को इसी तरह की योजना और भी लानी चाहिए, जिससे घरेलू ग्रामीण महिलाओं को गांव में ही रोजगार मिले और आमदनी भी हो, इससे महिलाएं पुरुष के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल सकेंगी.

आत्मनिर्भर बनीं महिलाएं:समूह की सचिव कौशल बाई ने बताया ''शुरू में घर में हम गोबर इकट्ठा कर खाद बनाने का काम करते थे. सरकार की योजना आई तो अब वही काम गौठान में बड़ी मात्रा में करने लगे हैं. अब हम खाद बेच भी रहे हैं. इससे हमें रोजगार मिला है. अब आमदनी भी अच्छी हो रही है. हम अपने पैरों पर खड़े हैं.

गोधन न्याय योजना से फायदा:जिला पंचायत सीईओ संदीप अग्रवाल ने बताया ''सरकार की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना की तरह जिले की महिलाएं खास कर वीरेन्द्रनगर गौठान की महिलाएं बेहतर काम कर रहीं हैं. वर्मी कम्पोस्ट बनाकर बेचने से महिलाओं को काफी लाभ हो रहा है. उन्होंने सोना-चांदी भी खरीदा है. कवर्धा जिले में महिलाओं को 1 करोड़ से अधिक का लाभ मिल चुका है.''

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कोविड काल में बड़ा सहारा :स्व-सहायता समहू की महिलाओं की मानें तो कोविड काल में सारा बाजार बंद था. आमदनी का कोई साधन नहीं था. लेकिन गोधन न्याय योजना से जुड़ने के बाद उनकी माली हालत काफी सुधर चुकी है. अब ये महिलाएं इस योजना के लिए प्रदेश के मुखिया सीएम भूपेश बघेल की तारीफ करती नहीं थक रही हैं. इन महिलाओं ने अब आसपास के गांवों में इस योजना के प्रचार-प्रसार का जिम्मा भी संभाल रखा है ताकि दूसरे लोग भी इसका लाभ ले सके.

महिलाओं को मिला सम्मान :गोधन न्याय योजना का सबसे बड़ा असर उन महिलाओं पर पड़ा जो गांवों में रहकर जीवनयापन करती (Women became self-reliant due to cow justice) हैं. इस योजना से पहले उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि खाना बनाना और खेतों में काम करने के अलावा उनके पास खुद की कमाई करने का कोई साधन उपलब्ध होगा या नहीं. लेकिन गोधन न्याय योजना के तहत बने गौठानों में जब महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं को काम मिला तो ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदल गई.

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