हैदराबाद: पेट्रोल डीज़ल के दाम रोज़ अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं. आम आदमी का दिल और जेब दोनों जल रहे हैं. दफ्तर जाने के किराये से लेकर किचन तक का बजट बिगड़ रहा है. इसके लिए कच्चे तेल पर हमारी निर्भरता, तेल उत्पादक देशों का मनमाना रवैया जैसे कई तत्व जिम्मेदार हैं. तेल के खेल से निजात पाने के लिए सबसे जरूरी है कच्चे तेल का विकल्पों की तरफ जाना.
भारत जो भी कच्चा तेल आयात करता है उसका बड़ा हिस्सा वाहनों के ईंधन के रूप में लगता है. ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने में कारगर साबित हो सकते हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी कह चुके हैं कि आने-वाले सालों में पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता खत्म करनी होगी और लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ रुख करना होगा. सवाल है कि इससे क्या-क्या फायदा होगा ? क्या सरकार इस ओर कोई कदम उठा रही है ? लेकिन पहले सवाल है कि
क्या देश में इलेक्ट्रिक कारों का दौर आ गया है ?
आज आपको सड़क पर इक्का दुक्का इलेक्ट्रिक कारें दौड़ती दिख जाएंगी, इसलिये इलेक्ट्रिक कारों का दौर आ गया है ये कहना तो फिलहाल बिल्कुल मुनासिब नहीं है. लेकिन ये कहा जा सकता है कि इलेक्ट्रिक कारों को अपनाने का वक्त आ गया है और ईंधन के बढ़ते उपभोग के साथ-साथ कीमतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि ये सही वक्त है. भारत में इलेक्ट्रिक कारों का चलन अभी शुरू ही हुआ है. इसलिये इतनी बड़ी आबादी के वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलना तो बहुत बड़ी चुनौती है लेकिन इसके लिए शुरूआती कदम मजबूती से उठाने होंगे.
दरअसल इलेक्ट्रिक पेट्रोल-डीजल वाहनों से अधिक महंगे होते हैं. स्वदेशी हो या विदेशी, दोनों कारों की कीमत आम पेट्रोल-डीजल कार से अधिक है. ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने की राह में इन कारों का महंगा होना सबसे बड़ी चुनौती है. इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आधारभूत ढांचा भी नहीं है. इसलिये बीते दो से तीन सालों में भारत में बहुत कम इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई है. हालांकि इसमें थोड़ा बहुत ही सही साल दर साल बढ़ोतरी हो रही है.
सरकारें इसके लिए क्या कर रही है ?
1) केंद्र सरकार ने अप्रैल 2015 में नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMM) के तहत FAME (Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric vehicle) योजना की शुरुआत की थी. जिसका उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना था, इसके लिए ऐसे वाहनों के निर्माण के अलावा आवश्यक चार्जिंग और बुनियादी ढांचे को स्थापित करना है. इसी योजना को विस्तार देकर साल 2019 में योजना का दूसरा चरण फेम टू (FAME II ) शुरू हुआ. जिसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर जोर देना है. योजना के तहत सरकार इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए सब्सिडी मिलती है, इसमें इलेक्ट्रिक थ्री व्हीकल्स से लेकर बड़ी आबादी वाले शहरों में इलेक्ट्रिक बसें चलाने की भी योजना है.
2) इसके अलावा कुछ राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर सब्सिडी देती हैं. ताकि लोगों का रुझान इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़े और इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में इजाफा हो.
3) भारत दुनिया के लिए बड़ा बाजार है खासकर दुनियाभर की ऑटो इंडस्ट्री इस ओर नजरें गड़ाए रहती हैं. देश की सड़कों पर आज कई विदेशी कंपनियों की कारें दौड़ रही हैं. इनमें विदेशी कंपनियों के इलेक्ट्रिक कारें भी शामिल हैं. सरकार की योजना है कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहन बेचने वाली विदेशी कंपनियां भारत में ही उनका निर्माण और निर्यात करे. इससे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर भारतीयों का रुझान भी बढ़ेगा.
4) इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में काम करने वाली स्वदेशी कंपनियों और स्टार्टअप को भी सरकार बढावा दे रही है. जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों का विकल्प लोगों के लिए कम कीमत पर मुहैय्या हो सके.
5) इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सबसे जरूरी है इंफ्रास्ट्रक्चर, जिसके लिए सबसे जरूरी है चार्जिंग स्टेशन. जिस तरह हाइवे पर पेट्रोल-डीजल कारों के लिए पेट्रोल पंप होते हैं उसी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों की लिए चार्जिंग स्टेशन होने चाहिए. सड़क पर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अलग लेन भी लोगों के रुझान इस ओर खींच सकती है. सरकार इस ओर काम तो कर रही है लेकिन उसकी रफ्तार फिलहाल उतनी तेज नहीं है
6) दिल्ली से जयपुर के बीच सरकार ने पहला इलेक्ट्रिक हाइवे बनाने का ऐलान किया है. जिसमें खासकर बड़े इलेक्ट्रिक वाहन जैसे ट्रक या बस आदि ट्रेन की तर्ज पर चलेंगे. बिजली से चलने पर ईंधन का खर्च कम होगा.
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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने क्या कहा ?
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर बात करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि "पेट्रोल-डीजल के इंपोर्ट को बंद करना और प्रदूषण को कम करना है. बायोफ्यूल, इलेक्ट्रिक, इथेनॉल, मीथेनॉल, बायोडीजल, सीएनजी और मजबूरी है तो एलएनजी और एलपीजी का इस्तेमाल करेंगे. मैं कई सालों से इथेनॉल के बारे में बात करता था तो कोई मानता नहीं था लेकिन आज दुनिया मान रही है. पेट्रोल-डीजल पर दादागीरी अब किसी की नहीं चलेगी. पेट्रोल-डीजल का विकल्प मौजूद है और ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूचर फ्यूल है. भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यात करने वाला दुनिया का पहला देश बनेगा."
तेल का खेल भी समझ लीजिए
ओपेक देश यानि उन तेल उत्पादक देशों का समूह जो कच्चे तेल की आपूर्ति और कीमत तय करते हैं. इसमें सऊदी अरब, कुवैत, यूएई, इराक, ईरान, कतर, इंडोनेशिया, अंगोला, नाइजीरिया, वेनेजुएला जैसे देश शामिल हैं. भारत जैसे कई देश हैं जो तेल के लिए दुनिया के गिने-चुने देशों पर निर्भर रहते हैं और फिर उनके मनमाफिक दाम देते हैं. तेल उत्पादक देश एशियाई देशों में तेल की सप्लाई के लिए एशियन प्रीमियम लेते हैं, जिसके तहत प्रति बैरल 3 से 4 डॉलर वसूले जाते हैं.
भारत 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. जिसमें से 60 फीसदी के लिए अकेले ओपेक देशों पर निर्भर है. भारत तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. साल 2018 में भारत ने 45.1 लाख प्रति बैरल कच्चा तेल खरीदा था, जो 2017 की तुलना में 2.5 फीसदी अधिक था. हर बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल होता है.