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क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से बदलेगी राष्ट्रीय राजनीति की दशा व दिशा? - पूर्वात्तर में भाजपा को चुनौती

देश में पांच राज्यों के चुनाव की घोषणा हो चुकी है और मुख्य तौर पर दो राष्ट्रीय पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. मगर इस चुनाव में क्षेत्रीय दल भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका में है. दिलचस्प बात यह है कि चुनाव दक्षिण, पूरब और पूर्वोत्तर राज्यों में हैं. जो 2024 की दिशा व दशा तय करेगा. इस मसले पर ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना ने राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.

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Published : Feb 27, 2021, 7:30 PM IST

नई दिल्ली :भले ही देश में पांच राज्यों के चुनाव हैं, मगर यह पांच राज्य अलग भाषा और संस्कृति के अलग-अलग छोर पर मौजूद हैं. इस वजह से इन राज्यों के चुनाव परिणाम को आगे की राष्ट्रीय राजनीति की दिशा व दशा निर्धारित करने वाला भी माना जा रहा है.

एक तरफ दक्षिण भारत में कांग्रेस की कड़ी कमजोर होती जा रही है और भाजपा पूरा दमखम लगा रही है. वहीं दूसरी तरफ पूर्वोत्तर भारत में भारतीय जनता पार्टी को दोबारा सत्ता हासिल करने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है. इसके अलावा वामपंथियों के गढ़ माने जाने वाले पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी सेंध लगा रही है. इसलिए इन चुनावों को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सेमी फाइनल की तरह माना जा रहा है. इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पर राजनीतिक विश्लेषकों की भी नजर है.

राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा असर

राजनीतिक विश्लेषक और संघ विचारक देश रतन निगम ने इस सवाल पर कहा कि यह दोनों मिली-जुली बातें हैं. अगर देखा जाए तो म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव भी हो रहे हैं, तो उसमें भी राष्ट्रवादी विचारधारा प्रभाव डाल रहे हैं. मेरा मानना है कि इन पांच राज्यों के चुनाव में भी राष्ट्रवादी विचारधारा और ज्यादा मजबूत होगी. इन पांच राज्यों के चुनाव में भी जो क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां हैं, जो क्षेत्रवाद पर राजनीति करती हैं, उनकी भी मजबूरी है कि वह राष्ट्र को सर्वोपरि रखकर राजनीति करें. वरना इन चुनावों में उन्हें खत्म होने का डर रहेगा. इसलिए कहा जा सकता है कि इन पांच राज्यों के चुनाव का परिणाम निश्चित तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर पड़ेगा.

राहुल गांधी का दांव उल्टा

इस सवाल पर कि इस चुनाव के बाद बीजेपी और कांग्रेस को वह कहां पाते हैं. इस पर निगम का कहना है कि आज का जो मतदाता है वह काफी राजनीतिक सूझबूझ के साथ ही मतदान करता है. वह दक्षिण और उत्तर भारत के नाम पर मतदान नहीं करता. राहुल गांधी ने जो दक्षिण और उत्तर भारत को डिवाइड करने का जो पासा फेंका है, इसे मतदाता बहुत अच्छी तरह समझ रहा है. यदि हमेशा से उत्तर भारत में लड़ने वाले राहुल गांधी दक्षिण भारत में आकर उत्तर भारत की आलोचना कर रहे हैं, तो आगे जाकर वह दक्षिण भारत को भी छोड़ सकते हैं.

कांग्रेस में नहीं होगी बगावत

क्या चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सशक्त नेता बनकर उभरेंगे. इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि वह सशक्त की बात नहीं करते नरेंद्र मोदी खुद को एक सेवक के तौर पर देखते हैं. लेकिन हां यह जरूर है कि लोग उन्हें मानते हैं. जिस तरह से गुजरात का म्युनिसिपल रिजल्ट दिख रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है की भारतीय जनता पार्टी में दूसरे लेवल की जो लीडरशिप है वह भी काफी मजबूत है. वह अमित शाह हों या जेपी नड्डा. मगर कांग्रेस में देखा जाए, तो कांग्रेस गांधी परिवार से अलग हटकर कुछ भी नहीं है.

कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक संजीव आचार्य से ईटीवी भारत ने इस मुद्दे पर बातचीत की, तो उन्होंने कहा कि यह चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि पुडुचेरी की सरकार जाने के बाद लगभग लगभग दक्षिण से कांग्रेस का सफाया हो चुका है. अगर केरल जहां से चुनाव जीतकर राहुल गांधी लोकसभा में है और वह वहां की क्षेत्रीय राजनीतिक में भी आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. संभावना है कि केरल में कांग्रेस आती है, तो यह कांग्रेस के लिए प्राण वायु की तरह होगा.

पूर्वाेत्तर में भाजपा को चुनौती

इसके अलावा तमिलनाडु में भी डीएमके के साथ कांग्रेस के अच्छे परिणाम आने की संभावनाएं हैं, लेकिन अभी जो फिलहाल राहुल गांधी का एक बयान आया उसे लेकर जो पार्टी में असंतोष है, इस पर फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन उन्हें ऐसा लगता है कि कुछ हद तक कांग्रेस की स्थिति इन पांच राज्यों में सुधरेगी. जहां तक किसानों को लेकर असंतोष और पूर्वोत्तर भारत में नागरिकता बिल पर लगातार विरोध चल रहा है. इन बातों का कुछ फायदा कांग्रेस को मिल सकता है, लेकिन सांगठनिक मजबूती और राहुल गांधी के नेतृत्व की बात को लेकर पार्टी के अंदर का असंतोष जल्दी खत्म नहीं होगा.

चुनाव में कांग्रेस को फायदा

कुल मिलाकर यदि 5 राज्यों में 5 अंकों का भी फायदा होता है, तो यह कांग्रेस के लिए अच्छी स्थिति होगी. बात यह भी है कि केरल में जहां कांग्रेस वामपंथियों के खिलाफ लड़ रही है, वहीं पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के साथ है. यह कहीं ना कहीं मतदाताओं को भी भ्रमित करते हैं. पश्चिम बंगाल में अब चुनाव परिस्थितियां सांप्रदायिक रंग लेती जा रही हैं और ऐसे में हमेशा से कांग्रेस को निश्चित तौर पर नुकसान ही होता है. लेकिन फिर भी ऐसे समय में आकलन किया जाए, तो मेरा यह मानना है कि कांग्रेस को इन चुनाव परिणाम के बाद कुछ फायदा ही होगा.

भाजपा को नहीं नुकसान

संजीव आचार्य का कहना है कि जहां तक राष्ट्रीय राजनीति का सवाल है अभी फिलहाल किसानों का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में सबसे प्रमुख मुद्दा है. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम में किसानों का यह मुद्दा बहुत ज्यादा महत्व रखेगा, क्योंकि इन राज्यों में स्थानीय मुद्दे किसानों के मुद्दों से ऊपर हैं. राष्ट्रीय राजनीति में हालांकि, भाजपा पहले से ही काफी मजबूत स्थिति में है. इसलिए तात्कालिक कोई चुनौती तो नहीं होगी. मुझे नहीं लगता कि अगर पांच राज्यों में यदि परिणाम विपरीत भी आए तो उन पर बहुत ज्यादा असर पड़ेगा.

ममता बन सकती हैं लीडर

संजीव आचार्य का कहना है कि अभी विपक्ष बहुत कमजोर है, इसलिए ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार बिल्कुल अपराजेय हो गई है. यदि विपक्ष मजबूत होता है, तो विपक्ष में कांग्रेस के अलावा वामपंथी, टीएमसी या डीएमके या दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत होती हैं. इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी यदि वह अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उपलब्धि होगी. जहां तक ममता का सवाल है, तो जिस तरह वह मोदी सरकार के खिलाफ राजनीति करती हैं वे तमाम पार्टियां को एक प्लेटफार्म पर ला सकती हैं.

दबाव की राजनीति जारी

संजीव आचार्य ने कहा कि कांग्रेस टूट की तरफ तो नहीं बढ़ रही, क्योंकि जिस तरह की आशंका लगाई जा रही है और जो वरिष्ठ नेता बयान दे रहे हैं उन्हें भी यह पता है कि टूट से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला है. वह यह एहसास दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस में यदि सोनिया गांधी, राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना भी चाहती हैं, तो उन नेताओं और उन अनुभवों को दरकिनार नहीं किया जाए जो पहले से पार्टी में मौजूद हैं. बस इस बात का एहसास दिलाने के लिए ही यह दक्षिण और उत्तर भारत के बयान पर इन नेताओं ने राहुल गांधी के खिलाफ बयानबाजी की है.

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कांग्रेस नेतृत्व सहित उन नेताओं को भी पता है कि गांधी परिवार के अलावा कोई भी कांग्रेस को बांधकर नहीं रख पाया है. उन्हें राहुल गांधी से कोई पर्सनल गुरेज नहीं है, बल्कि कार्यशैली को लेकर वे आपत्ति करते हैं.

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