तिरुवनंतपुरम : मुल्लापेरियार जलाशय में 'बेबी' बांध के निचले इलाके के 15 पेड़ों को काटने की अनुमति देने संबंधी केरल सरकार के विवादास्पद आदेश को लेकर राज्य विधानसभा मे सोमवार को शोर-शराबा हुआ और विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF) ने इस मुद्दे की न्यायिक जांच की मांग की तथा बाद में सदन से बहिर्गमन किया. वहीं दूसरी ओर केरल सरकार ने आज स्पष्ट किया कि वह कभी भी ऐसा कोई निर्णय नहीं लेगी जो मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा को खतरे में डाले या राज्य के लोगों की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाए.
सरकार ने सदन को बताया, 'केरल के लिए सुरक्षा और तमिलनाडु के लिए पानी' मुल्लापेरियार मुद्दे में राज्य सरकार की घोषित नीति है और वह इस रूख से कभी भी पीछे नहीं हटेगी.' कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने कहा कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा पांच नवंबर को जारी किया गया आदेश, मुल्लापेरियार मुद्दे पर राज्य द्वारा अपनाए गए रुख का उल्लंघन है.
हालांकि, सरकार ने आश्वासन दिया कि राज्य के हितों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का कोई सवाल ही नहीं है और कहा कि इस मुद्दे पर उसकी मजबूत स्थिति मुल्लापेरियार मामले के संबंध में उच्चतम अदालत में दायर जवाबी हलफनामे में स्पष्ट की गई थी. केरल सरकार ने मुल्लापेरियार जलाशय में बेबी बांध के रास्ते में 15 पेड़ों को काटे जाने के लिए वन विभाग द्वारा दी गयी अनुमति पर रविवार को रोक लगा दी थी तथा उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का फैसला किया जिन्होंने यह आदेश दिया था. इसके एक दिन बाद पिनराई विजयन सरकार का यह स्पष्टीकरण आया है.
इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव की मांग वाले नोटिस का जवाब देते हुए वन मंत्री एके शशिंद्रन ने कहा कि सरकार इस संबंध में राज्य के हितों के खिलाफ लिए गए नौकरशाही के फैसले को कभी स्वीकार नहीं करेगी. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु जल संसाधन विभाग के मुख्य कार्यकारी अभियंता ने बेबी बांध स्थल के पास से 23 पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी थी. उन्होंने कहा, 'केरल के लिए सुरक्षा और तमिलनाडु के लिए पानी मुल्लापेरियार मुद्दे में राज्य सरकार की घोषित नीति है. राज्य विधानसभा ने इस संबंध में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था। इस रूख से पीछे नहीं हटा जाएगा.'
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन परिस्थितियों की जांच कर रही है जिसके कारण पड़ोसी राज्य को बांध स्थल से पेड़ गिराने की अनुमति देने का आदेश जारी किया गया, जो सरकारी रुख का उल्लंघन है. शशिंद्रन ने कहा कि विवादास्पद आदेश छह नवंबर को सरकार के संज्ञान में आया था. उन्होंने कहा कि छुट्टी होने के बावजूद अगले दिन ही इसे रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की गई थी. उन्होंने कहा कि केरल सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में बांध स्थल के पास पेड़ काटने के पड़ोसी राज्य के अनुरोध की अनुमति नहीं देने के कारणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था.
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