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क्या भारतीयों को भी Covid-19 वैक्सीन की बूस्टर डोज की जरूरत है ?

अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची (Anthony Fauci) ने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी के खिलाफ अधिकतम सुरक्षा हासिल करने के लिए वैक्सीन के बूस्टर डोड जरूरी हो जाएंगे. दुनिया के कई देशों में बूस्टर डोज (Covid booster shots) देने की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है. भारत में इस पर बहस शुरू हो गई है. सवाल यह है कि क्या भारतीयों को भी बूस्टर डोज की जरूरत होगी या अभी 100 प्रतिशत वैक्सिनेशन के बाद ही इस पर विचार होगा?

covid19 vaccine booster dose
covid19 vaccine booster dose

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Published : Sep 21, 2021, 4:53 PM IST

हैदराबाद : इज़राइल में12 साल और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की बूस्टर डोज (Covid booster shots) लगाए जा रहे हैं. इजरायल ने अपनी रिसर्च में पाया है कि बूस्‍टर डोज से इन्‍फेक्‍शन का खतरा 11 गुना कम हो गया है. अमेरिका में भी 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के नागरिकों को बूस्टर शॉट्स लगाने की तैयारी की जा रही है. ब्रिटंन में हेल्‍थकेयर स्‍टाफ को बूस्‍टर डोज लगाया जा रहा है. संयुक्त अरब अमीरात, रूस, फ्रांस, जर्मनी और इटली में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है. फाइजर इंक और बायोएनटेक एसई के रिसर्च में यह सामने आया है कि वैक्सीन की प्रतिरोधक क्षमता दो महीने बाद 6 प्रतिशत कम होती है, इसलिए बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी.

फैक्ट : एंटीबॉडी जिस रफ्तार से बनती है, वैसे घटती भी है

इससे पहले भी द लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च में यह दावा किया गया है कि फाइजर-एस्ट्राजेनेका के दो डोज के बाद एंटीबॉडी जिस रफ्तार से बढ़ती है, 2 से 3 हफ्ते बाद उतनी स्पीड से घटती भी है. फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के 6 हफ्ते बाद शरीर से एंटीबॉडी का लेवल कम होने लगता है. 10 सप्ताह में 50 प्रतिशत से भी अधिक कम हो सकती हैं. कोरोना वायरस के खिलाफ सभी भारतीय वैक्सीन इफेक्टिव हैं. कोवीशील्ड का इफेक्टिवनेस रेट 70 प्रतिशत है. कोवैक्सिन 78 प्रतिशत तक प्रभावी है. स्पुतनिक वी इस पैमाने पर 91.6 प्रतिशत और मॉडर्ना 90 प्रतिशत इफेक्टिव रही है.

अभी गैप के बाद दी जा रही है वैक्सीन

अभी 100 फीसदी वैक्सिनेशन का दबाव :भारत में वैक्सीन के बूस्टर डोज को लेकर समर्थन और विरोध की चर्चा हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, सामान्‍य आबादी को कोविड-19 वैक्‍सीन का बूस्‍टर शॉट देने की जरूरत नहीं है. प्रतिष्ठित जर्नल 'द लैंसेट' में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्‍ट्रीय समूह ने भी बताया है कि बुजुर्ग और कमजोर इम्‍यून सिस्‍टम वाले लोगों को बूस्‍टर डोज तब लगाया जाए, जब पूरी आबादी को पहले की दोनों खुराक मिल जाए. नेशनल इंस्टीट्यूट आफ इम्यूनोलाजी (एनआईआई) के सत्यजीत रथ ने आगे कहा कि अभी भारत में तीसरी खुराक नैतिक रूप से समय से बहुत पहले की योजना है.

बूस्टर की जरूरत के बारे में डेटा क्या कहता है? :फाइजर इंक और बायोएनटेक एसई ने 30,000 लोगों के क्लिनिकल परीक्षण के बाद डेटा जारी किया है. रिपोर्टस के अनुसार, कोविड-19 के खिलाफ फाइजर और बायोएनटेक के दो डोज 90 फीसद तक प्रभावी है. मगर इसकी प्रभाव क्षमता हर दो महीने में लगभग 6% कम हो जाती है. फाइजर का दावा है कि बूस्टर खुराक से मूल टीकाकरण से शरीर में बनी एंटीबॉडी के घटते स्तर को बढ़ा देता है. इज़राइल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि वहां 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 1.1 मिलियन से अधिक लोगों को फाइजर की बूस्टर खुराक दी गई, जिससे संक्रमण और कोविड से होने वाली गंभीर बीमारी में कमी आई. उनकी स्टडी में यह सामने आया कि एक बूस्टर खुराक वैक्सीन के प्रभाव को 95% तक बहाल कर सकती है.

अभी देश में उपलब्ध वैक्सीन

क्या होती है बूस्टर डोज? :भारत में लोगों को 2 डोज वाली कोरोना वैक्सीन दी जा रही है. कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक के दो डोज दिए जा रहे हैं. पहली दो डोज को प्राइम डोज बताया जा रहा है. अगर इसके बाद भी तीसरी खुराक दी गई, तो उसे बूस्टर डोज माना जाएगा. शरीर में एंटी बॉडी कमजोर न पड़े, इसलिए बूस्टर डोज लगाई जाती है. बूस्टर डोज इम्यून सिस्टम को सचेत करता है, जिससे शरीर में पहले से सुरक्षित एंटीबॉडी बढ़ जाएगी.

भारत में फैसला अगले साल, अभी डेटा ही नहीं :देश में 21 सितंबर तक 82 करोड़ 38 लाख 88 हजार 809 डोज लगाई जा चुकी है. 61 करोड़ 36 लाख 33 हजार 666 लोगों को पहली डोज मिली है. 21 करोड़ 02 लाख 55 हजार 143 लोगों को वैक्सीन को दोनों खुराक मिल चुकी है. सरकार का लक्ष्य दिसंबर तक 100 प्रतिशत वैक्सिनेशन करना है. इसके बाद ही देश में बूस्टर डोज को लेकर फैसले लिए जाएंगे. बूस्टर डोज को लेकर किए गए सवाल पर एम्स डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत में अगले साल की शुरुआत तक इस संबंध में अधिक जानकारी मिल पाएगी. उनका कहना है कि सरकार और आईसीएमआर के पास अधिक उम्र वालों और हाई रिस्क वालों के संबंध में भी आंकड़ा नहीं है, जिससे तय किया जा सके कि बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं.

अभी भारत में संबंधित अथॉरिटी के पास बुजुर्गों और हाई रिस्क कैटिगरी का डेटा उपलब्ध नहीं है

बूस्टर डोज या हर्ड इम्यूनिटी का इंतजार ! :मार्च में एम्स के डायरेक्टर ने बताया था कि टीका लेने के बावजूद अधिकतम एक साल तक ही कोरोना से सुरक्षा मिल सकती है. दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर ने बताया था कि टीका लगाने के बाद एंटीबॉडी शरीर में 6 महीने तक रहता है. अगर इस दौरान कोरोनावायरस फिर से फैलता है तो टीका लेने वाले व्यक्ति भी इंफेक्शन के शिकार होंगे. जिसे 'सबक्लिनिकल इन्फेक्शन' कहते हैं. इसका कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि इसका फायदा ही होगा. यह प्राकृतिक तौर पर हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता रहेगा. 80 या 90 फीसदी लोग जब या तो वैक्सीन ले लेंगे या फिर कोरोना इनफेक्टेड हो जाएंगे तो हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी. इसके बाद वायरस के इंफेक्शन का चेन रिएक्शन रूक जाएगा.

फिलहाल भारत में कोरोना वैक्सीन के बूस्टर डोज की सिफारिश किसी संस्था ने नहीं की है. मगर यह भी माना जा रहा है कि बड़ी आबादी के वैक्सिनेशन के बाद यह उन लोगों को दिया जाएगा, जिनकी उम्र अधिक है या इम्यूनिटी कमजोर है.

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