हैदराबाद : केंद्र सरकार द्वारा संसद से पारित कराए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठन पिछले सात दिनों से विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने छठे दिन किसानों को वार्ता के लिए भी आमंत्रित किया. इसके बाद गतिरोध समाप्त होने के संकेत मिल रहे हैं. हालांकि, कई किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का कानूनी अधिकार नहीं मिलने तक वे विरोध जारी रखेंगे. इसी बीच विरोध प्रदर्शन को लेकर एक धड़ा यह भी कह रहा है कि इसमें पूरे देश के किसानों की भागीदारी नहीं है, चुनिंदा जगहों के लोग इसमें भाग ले रहे हैं. इस संबंध में दावा किया जा रहा है कि बिहार के किसान इसमें शामिल नहीं हैं.
दरअसल, बिहार में कृषि उत्पाद बाजार कानून (एपीएमसी) 2006 में ही खत्म कर दिया गया था. ऐसे में कृषि उत्पाद की खरीद के लिए कई बाजार पहले ही खुल चुके हैं. बिहार के किसान मंडी से मुक्त हो चुके हैं. किसान खुले बाजार में अपना उत्पाद बेच रहे हैं. साथ ही एमएसपी के तहत सरकार खरीददारी भी कर रही है. राज्य सरकार ने कृषि के लिए बहुत सारी स्कीमें भी चला रखी हैं. कृषि में लगने वाले लागत पर सरकार मदद दे रही है (इनपुट स्कीम). क्षतिपूर्ति और मुआवजा भी दिया जा रहा है. आपदा की स्थिति में फसल क्षतिपूर्ति को लेकर सहायता दी जाती है. इसलिए दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां पर समस्याएं कम हैं.
यह भी पढ़ें:
कृषि कानूनों का विरोध, 7वें दिन किसानों ने कहा- संसद का विशेष सत्र बुलाए केंद्र सरकार
क्योंकि 2006 में ही एपीएमसी एक्ट खत्म हो चुका है, लिहाजा किसान पैक्स (पीएसीएस) के जरिए अपने उत्पाद बेच नहीं पा रहे हैं. ऐसे में वे अपने उत्पादों को खुले बाजार में बेचने के लिए स्वतंत्र हैं. बिहार में 1,63,10,913 किसान रजिस्टर्ड हैं. हर साल करीब 1500 करोड़ की मदद किसी न किसी योजना के तहत इन किसानों को दी जा रही है. हालांकि, ये सवाल बना हुआ है कि अधिक उत्पादन की वजह से कीमतें कम मिलती हैं. किसानों को लग रहा है कि एमएसपी खत्म हो जाएगा, तो उन्हें और कम कीमत मिलेगी.
किसानों का संघर्ष सरकारी मंडी को लेकर नहीं है, बल्कि एमएसपी पर है.
क्या है एमएसपी
सरकार ने 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित किए हैं. यानी इन फसलों की खरीद के लिए सरकार ने कीमतें निर्धारित कर रखी हैं. अगर किसी अनाज की कीमत बाजार में कम भी है, तो भी सरकार उसे निर्धारित दर पर ही खरीदती है. इससे किसानों को सहायता मिल जाती है. उन्हें यह लगता है कि कम से कम इतनी कीमत तो उन्हें मिल ही जाएगी. पूरे देश में एमएसपी दर समान होती है. कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइसेस (सीएसीपी) की अनुशंसा के आधार पर कृषि मंत्रालय और भारत सरकार मिलकर एमएसपी तय करते हैं.
यह भी पढ़ें:
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का पहला दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का दूसरा दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का तीसरा दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का चौथा दिन
- पांचवें दिन भी डटे रहे अन्नदाता, कहा पीएम को सुनाना चाहते हैं अपने मन की बात
- कृषि कानून के विरोध का छठे दिन केंद्र सरकार और किसानों की वार्ता बेनतीजा