नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 टीकाकरण को अनिवार्य करने वाले राज्यों के आदेश (Orders of states making covid-19 vaccination mandatory) अगर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं हैं, तो हम इस पर विचार करेंगे.
केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि एक संवैधानिक अदालत होने के नाते उसे उन निहित स्वार्थी समूहों के प्रयासों को ध्यान में रखना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप टीके को लेकर हिचकिचाहट आ सकती है, जिससे देश बहुत मुश्किल से बाहर निकला है.
न्यायमूर्ति एल. एन. राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गावी की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह उन राज्यों को एक पक्षकार के तौर पर सूचीबद्ध करे जिन्होंने ऐसे आदेश जारी किए हैं तथा यह स्पष्ट किया कि यदि उन आदेशों को चुनौती दी जाती है तो उन्हें भी सुना जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, 'यदि राज्य द्वारा टीकाकरण को अनिवार्य करने वाले आदेश व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं हैं तो हम इस पर विचार करेंगे. हम कोई सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकते.'
तमिलनाडु और महाराष्ट्र का किया जिक्र
सुनवायी के दौरान याचिकाकर्ता जैकब पुलियेल की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अब यह मुद्दा और गंभीर हो गया है क्योंकि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने आदेश जारी किया है कि जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है वे अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकते. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने एक आदेश जारी किया है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी, जिसने टीके की दोनों खुराक नहीं ली है उसे काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाएगा जैसे वह वेतन के साथ छुट्टी पर है.
भूषण ने कहा कि केंद्र ने इस मामले में अपना हलफनामा दाखिल किया है लेकिन उसे देर से मिला. पीठ ने कहा कि उसने इसे पढ़ा नहीं है क्योंकि उसने अभी यह प्राप्त नहीं किया है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देरी के लिए माफी मांगी और कहा कि देर रात हलफनामे को अंतिम रूप दिया गया. जब भूषण ने तमिलनाडु, महाराष्ट्र और दिल्ली द्वारा पारित आदेशों का उल्लेख किया, तो पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को इन आदेशों को चुनौती देने और राज्यों को याचिका में पक्षकार बनाने की आवश्यकता है तभी वह उनकी पड़ताल कर सकती है.
'कोविड रोधी टीके अनिवार्य नहीं किए हैं'
भूषण ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा हर दिन नए आदेश पारित किए जाते हैं और उन्हें उन राज्यों को पक्षकार के रूप में जोड़ते रहना होगा. उन्होंने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि इस स्तर पर सरकार ने कोविड रोधी टीके अनिवार्य नहीं किए हैं और इसे स्वेच्छा से लगाया जा रहा है.
मेहता ने कहा, 'यह अदालत एक संवैधानिक अदालत है और इसे निहित स्वार्थी समूहों द्वारा किए गए प्रयासों पर विचार करना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप टीके को लेकर हिचकिचाहट हो सकती है, जिससे देश बड़ी मुश्किल से बाहर निकला है. न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों को टीका लगाया गया है.'