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क्या बीजेपी-कांग्रेस में गहरा असंतोष चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा? - राजनीतिक दलों से बगावत

नौ फरवरी को कुल उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद तस्वीर स्पष्ट हो गई. हालांकि, यह तस्वीर भ्रामक हो सकती है क्योंकि कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने-अपने राजनीतिक दलों से बगावत की है और स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. विद्रोही उम्मीदवार राजनीतिक दलों के लिए अक्सर कांटे बन जाते हैं.

डिजाइन फोटो
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Published : Feb 11, 2021, 1:58 PM IST

अहमदाबाद : हमारे लोकतंत्र की नींव चुनाव है. असहमति और लड़ाई-झगड़े के बावजूद, हम अभी भी एक राष्ट्र हैं, सभी लोकतंत्र के मूल्यों के लिए धन्यवाद करते हैं. उन देशों को देखें, जो हमारे विघटन के बाद बने थे. आइए आगामी स्थानीय स्व - सरकारी निकायों के चुनावों पर एक नजर डालते हैं.

नौ फरवरी को कुल उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद तस्वीर स्पष्ट हो गई. हालांकि, यह तस्वीर भ्रामक हो सकती है क्योंकि कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने-अपने राजनीतिक दलों से बगावत की है और स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है.विद्रोही उम्मीदवार राजनीतिक दलों के लिए अक्सर कांटे बन जाते हैं.

चुनाव के समय, टिकट चाहने वालों के बीच रस्साकशी स्वाभाविक रूप होती ही है हालांकि, अगर यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है, तो यह प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन जाता है.

स्थानीय स्वशासन निकाय चुनाव गुजरात के कोने-कोने में हैं. भाजपा में छह नगर निगमों में, औसत 45 व्यक्तियों ने प्रति वार्ड टिकट की मांग की थी.

कांग्रेस में स्थिति और भी खराब थी, जिन लोगों को टिकट से वंचित किया गया , उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में विद्रोह का बैनर उठाया. विद्रोह इतना भयंकर था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को छिपना पड़ा.

कांग्रेस नेतृत्व अभी भी विभिन्न फार्म हाउसों में बैठकें लगातार कर रहा है. उसको पार्टी के कार्यकर्ताओं की जानकारी नहीं है.

इमरान खेड़ावाला की दबाव की रणनीति

कांग्रेस में टिकट के लिए रस्साकशी इतनी भयंकर हो गई कि अपनी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट देने से इनकार करने से नाराज कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला ने अपना इस्तीफा दे दिया.

खेड़ावाला कांग्रेस से बेहद नाखुश थे, जिन्होंने बेहरामपुरा वार्ड में छह उम्मीदवारों को जनादेश दिया था. अपनी नाराजगी को सार्वजनिक करते हुए खेड़ावाला ने विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी के बजाय अपना इस्तीफा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा को सौंप दिया.बाद में दिल्ली से एक दूत के हस्तक्षेप के बाद खेड़ावाला ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया.

कांग्रेस उम्मीदवार के पर्चा वापस लेने के बाद, भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध जीता

पिछले तीन कार्यकाल से भाजपा अहमदाबाद नगर निगम में सत्ता में है. कांग्रेस का यह दुखद परिदृश्य है कि उम्मीदवार इसके टिकट पर लड़ने में कम से कम रुचि दिखाते हैं.

नारनपुरा एक ऐसा वार्ड है, जहां कांग्रेस शक्तिहीन हो गई है. कांग्रेस के चंद्रिका रावल ने कल अपना नामांकन फॉर्म वापस ले लिया, जिस क्षण रावल ने अपना नामांकन वापस लिया, भाजपा की बिंद्रा सुरती निर्विरोध जीत गईं.

इस पर महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष सोनल पटेल ने आरोप लगाया कि नेतृत्व ने इंडिया कॉलोनी के वार्ड टिकट को 20 लाख रुपये में बेच दिया. यह आरोप इतने गंभीर थे कि उन्हे पार्टी से निकाल दिया गया.

दीपक बाबरिया ने नोटिस किया

दीपक बाबरिया द्वारा चुनावी पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किए गए पत्र को विद्रोह के संकेत के रूप में देखा जा रहा है. बाबरिया ने बताया कि कैसे नेताओं और विधायकों के दबाव के बाद उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के पैनल रातोंरात बदल दिए गए. उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में दिल्ली हाईकमान को लिखेंगे.

भाजपा अध्यक्ष की बगावत को हवा देने की योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी होने के बावजूद सोनल को टिकट नहीं दिया गया. यह पार्टी की रैंक में संदेश भेजने के लिए पर्याप्त था कि पार्टी किसी भी कीमत पर भाई-भतीजावाद की अनुमति नहीं देती है.

यह उदाहरण पार्टी के कई असंतुष्ट कार्यकर्ताओं के मुंह बंद करने के लिए पर्याप्त था. हालांकि, विद्रोह अभी तक शांत नहीं हुआ है. हो सकता है कि असंतुष्ट पार्टी कार्यकर्ता चुनाव के दौरान पार्टी का काम न करें.

असंतोष की ज्वाला दब जाती है, खत्म नहीं होती

संसदीय बोर्ड की बैठक में पाटिल ने फैसला किया कि 60 से ऊपर वाले और जो लगातार तीन बार नगरसेवक रहे हैं, उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा.

भाजपा नेताओं के परिजनों को भी टिकट नहीं दिया जाएगा, इस प्रकार पार्टी से भाई-भतीजावाद का उन्मूलन होगा. हालांकि असंतोष खुले में बाहर नहीं है, लेकिन यह एक शिकायत के रूप में सामने आया है कि वरिष्ठ नगरसेवक नए उम्मीदवारों के लिए अभियान में शामिल नहीं हो रहे हैं.

हालांकि भाजपा ने खुले तौर पर अपने उम्मीदवारों की सूची घोषित कर दी है, लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई है. कांग्रेस को ईमेल या फोन के माध्यम से अपने उम्मीदवारों को जनादेश देना था.

स्थानीय निकायों चुनावों में टिकट के लिए ललक क्यों ?

जब भाजपा या कांग्रेस में टिकट से इनकार किया जाता है, तो पार्टी कार्यकर्ता विद्रोह करते हैं. ऐसे कार्यकर्ता पार्टी के लिए खलनायक के रूप में कार्य करते हैं.

भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस में भी असंतोष स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. हर उम्मीदवार एक नगरसेवक के पद के लिए उम्मीदवार बनना चाहता है. उसकी इच्छा होती है कि वह नगरसेवक के रूप में चुने जाने के बाद विधायक और फिर सांसद बने. इसलिए, स्थानीय निकायों के चुनावों में टिकट के लिए ऐसी ललक है.

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टिकट या नो टिकट, पार्टी में सब बराबर

बीजेपी के दिग्गज और राज्य के नगरपालिका वित्त बोर्ड के अध्यक्ष धनसुख भंडारी ने ईटीवी भारत को बताया कि टिकट मिले या न मिले, हर कोई पार्टी में बराबर है, जिन लोगों को टिकट से वंचित किया गया है, वे कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले हैं जिन्हें टिकट दिया गया है. पार्टी का कानून सभी पार्टी सदस्यों के लिए सर्वोच्च है.

सिर्फ कमजोर कांग्रेस छोड़कर जाते हैं

राजकोट के पूर्व विधायक, इंद्रनील राज्यगुरु ने ईटीवी भारत से कहा कि हो सकता है कि कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़ दें, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता कभी भी अपनी पार्टी को नहीं छोड़ते. हमारे कार्यकर्ता बीजेपी की तुलना में अधिक मजबूत हैं. भाजपा अपने असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को छुपाती है. कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता जोश के साथ पार्टी के लिए काम करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार अजय दावे ने ईटीवी भारत से कहा कि भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने के नाते सबसे कम परेशान होता है. पार्टी के पास देश में 70 फीसदी मतदाताओं का जनादेश है. यदि पार्टी का कार्यकर्ता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल कर लेता है, तो उसे भाजपा में वापस शामिल कर लिया जाता है. हालांकि, कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है. कांग्रेस पार्टी की पूरी मशीनरी ध्वस्त हो गई है.

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