हैदराबाद: पीएम मोदी (PM MODI) के कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के बाद देशभर में कुछ और कानूनों को वापस लेने की आवाज उठने लगी है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीएम मोदी के जिस फैसले को कल तक कोई मास्टरस्ट्रोक तो कोई मजबूरी बता रहा था, क्या आने वाले वक्त में केंद्र सरकार और बीजेपी के लिए मुसीबत बन जाएगा ? इस फैसले से बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा ? क्या कृषि कानून वापसी के फैसले ने ब्रांड मोदी को झटका दिया है ? इस तरह के सवाल अगले साल की शुरुआत में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए उठ रहे हैं. पहले जानते हैं कि आखिर वो कौन से कानून है जिन्हें वापस लेने की आवाज उठ रही है.
1. CAA
कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन कानून (citizenship amendment act) को वापस लेने की आवाजें उठने लगी हैं. लखनऊ में प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने पीएम मोदी से इस कानून को वापस लेने की मांग की है. महिला प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सीएए वापिस नहीं लिया गया तो देशभर में बड़ा आंदोलन होगा. उधर असम में भी सीएए के खिलाफ आवाजें फिर उठने लगी हैं.
क्या है ये CAA ?- CAA के तहत अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों यानि हिंदू, सिक, बौद्ध, पारसी, इसाई और जैन धर्म के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. मगर शर्त यही है कि इसका लाभ वही अल्पसंख्यक ले सकेंगे, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले इन देशों से भारत आए. इससे पहले नागरिकता अधिनियम, 1955 ( Citizenship Act, 1955 ) के अनुसार, एक विदेशी भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है , शर्त यह है कि पिछले 14 साल में से 12 साल से भारत में रह रहा हो. साथ ही, आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो
इस कानून के तहत सिर्फ गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने को लेकर देशभर में बवाल मचा था. लखनऊ से लेकर असम और देश की राजधानी दिल्ली समेत कई इलाकों में प्रदर्शन हुए थे. खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों ने इस कानून के लागू होने से मूल निवासियों के सामने पहचान और आजीविका के संकट का सवाल उठाया था. हालांकि सरकार बार-बार कहती रही है कि इस कानून का मकसद सिर्फ पड़ोसी देशों से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना है ना कि किसी भारतीय की नागरिकता छीनना.
2. धारा 370
धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल था. जिसके तहत देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. राज्य में दोहरी नागरिकता और अलग झंडे की इजाजत थी, यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता था और राष्ट्रपति शासन लागू नहीं हो सकता था. लेकिन 5 अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया. जिसके बाद देश का हर कानून, सरकार की हर नीति यहां उसी तरह लागू होती है जैसी देश के दूसरे राज्यों में.
कृषि कानून वापसी के ऐलान के बाद सोशल मीडिया से लेकर जम्मू-कश्मीर के सियासी हलकों में धारा 370 को लेकर भी आवाज उठने लगी है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसले का स्वागत किय और उम्मीद जताई है कि सरकार ने साल 2019 यानी 5 अगस्त को जो फैसला जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 को लेकर किया था, उसको भी ठीक किया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में की गई गलतियों में सुधार करे और अपना वह फैसला वापस ले.
3. NRC
NRC अभी देश में लागू नहीं हुआ है. NRC यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (national ragister of citizen) एक रजिस्टर है, जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा. एनआरसी की शुरुआत साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेक में असम में हुई थी. फिलहाल ये असम के अलावा देश के किसी भी राज्य में लागू नहीं हुआ है, हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा. सरकार के मुताबिक एनआरसी का किसी भी धर्म के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है , इसका मकसद सिर्फ भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है.
एनआरसी के तहत खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को ये साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे. असम में एनआरसी का मसौदा जारी हुआ तो पता चला कि राज्य में 2.89 करोड़ लोग तो देश के नागरिक हैं लेकिन 40 लाख लोगों का नाम सूची से गायब था. इसमें 3 दशक तक सेना में रहे ग्रुप कैप्टन पद से रिटायर हुए शख्स समेत ऐसे कई लोगों का नाम इस सूची में नहीं था. जिसके बाद एनआरसी पर सवाल भी उठे और इसके खिलाफ देशभर में मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन किए और कई सियासी दलों ने भी एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.