नई दिल्ली : एग्जिट पोल मुख्य रूप से तीन बिंदुओं की ओर इशारा कर रहा है. पहला- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने अंतिम दो चरणों के चुनावों की जिम्मेदारी खुद उठा ली थी, खासकर पूर्वांचल में. इसने मतदाताओं का मूड भाजपा के पक्ष में कर दिया. दूसरा- समाजवादी पार्टी ने अति आत्मविश्वास में योगी सरकार के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी फैक्टर पर अत्यधिक भरोसा कर लिया. उन्होंने विश्वसनीय काउंटर नैरेटिव स्थापित नहीं किया. और तीसरा है- भाजपा का हिंदुत्व फैक्टर. यह यूपी में आज भी मजबूत दिखता है.
अधिकांश एग्जिट पोल भाजपा को बहुमत मिलते हुए दिखा रहे हैं. इंडिया टुडे - माय एक्सेस ने तो भाजपा को पिछली बार (2017) के मुकाबले अधिक सीटें दी हैं. एग्जिट पोल - वैसे विगत में कई बार एग्जिट पोल के नतीजे भी सही नहीं आए हैं. वे बुरी तरह फेल हुए हैं. पिछली बार प.बंगाल चुनाव के दौरान भी ऐसा ही देखने को मिला था. कई एग्जिट पोल ने तब बंगाल में भाजपा को बहुमत मिलते हुए दिखा दिया था. 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के एग्जिट पोल भी सच नहीं साबित हुए. यहां तक कि 2017 के यूपी के एग्जिट पोल में भाजपा के क्लीन स्विप की भविष्यवाणी किसी ने नहीं की थी. इस बार एग्जिट पोल किस हद तक सही साबित होगा, यह तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा, जब नतीजे सामने आएंगे.
इस बार एग्जिट पोल ने पता नहीं अंतिम चरण के चुनावों को ठीक से फैक्टर किया है या नहीं, इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है. अंतिम चरण में पूर्वांचल की 54 सीटों पर मतदान हुए थे. जहां पर चुनाव हुए, उनमें वाराणसी, मिर्जापुर, आजमगढ़, भदोही, जौनपुर और सोनभद्र जैसे इलाके शामिल थे. और ये इलाके 2014 तक सपा और बसपा के मजबूत गढ़ माने जाते थे. 2014 में भाजपा ने इन इलाकों में जबरदस्त सफलता प्राप्त की थी. 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा ने यहां पर अपनी स्थिति को और अधिक मजबूत कर ली. लेकिन पूर्वी यूपी को समझना इतना आसान नहीं है. क्योंकि 2017 में जब भाजपा ने यूपी में क्लिन स्विप कर लिया था, तब पूर्वी उत्तर प्रदेश के परिणाम यूपी के बाकी हिस्सों की तरह नहीं थे. तब भाजपा को 54 में से मात्र 29 सीटें ही मिलीं थीं. उनकी सहयोगी को चार सीटें मिलीं थीं. एटा, इटावा और मैनपुरी जैसे यादव बहुल इलाकों में मिली हार के बावजूद सपा को पूर्वी यूपी की 54 में से 11 सीटें मिलीं थीं. मायावती की पार्टी बसपा को पांच सीटें मिलीं थीं. लब्बो लुआब ये है कि मंडल राजनीति के पुनरुद्धार के परिदृश्य में सपा की उम्मीदें बढ़ गईं थीं, लेकिन अगर एग्जिट पोल सही साबित हुए, तो जाहिर है उनकी उम्मीदों पूरी नहीं हुईं.
महिला मतदाता