हैदराबाद: अमेरिका में इन दिनों गर्भपात के एक कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है. खासकर महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और महिला संगठनों का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है. सवाल है कि आखिर उस कानून में ऐसा क्या है जो सड़क पर हल्ला बोलने की नौबत आ गई है ? और भारत में क्या हैं इस संबंध में कानून. पूरी जानकारी के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)
माजरा क्या है ?
अमेरिका के टेक्सास राज्य में गर्भपात से जुड़े कानूनों में बदलाव किया गया है. जिसके मुताबिक गर्भधारण के छह हफ्ते बाद गर्भपात अपराध के दायरे में आएगा. इस कानून में ये भी प्रावधान किया गया कि कोई भी नागरिक आरोपी महिला और गर्भपात कराने वाले क्लीनिक, डॉक्टर, नर्स के खिलाफ मुकदमा दायर करवा सकता है. आरोप साबित होने पर मुकदमा दर्ज कराने वाला व्यक्ति आरोपियों से दस हजार डॉलर का इनाम पाने का हकदार होगा.
ये कानून एक सितंबर से टेक्सास में लागू हो चुका है. रिपब्लिकन बहुल राज्य के नेता भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाने का विचार कर रहे हैं. मानवाधिकार से जुड़े संगठनों ने इस कानून के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था लेकिन फैसला कानून के हक में गया. मिसिसिपी में भी 15 हफ्तों की गर्भवती महिलाओं के गर्भपात पर रोक लगा दी गई है, यहां भी मामला कोर्ट पहुंच चुका है. यहां 1973 के उस कानून पर रोक लग सकती है जिसके तहत महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिला हुआ है. जिसके मुताबिक महिलाएं गर्भावस्था के 28 सप्ताह तक गर्भपात करा सकती हैं.
कानून के समर्थक
इस तरह के कानून को 'हार्टबीट' गर्भपात बैन कहा जाता है. कुछ अन्य रिपब्लिकन सरकारों वाले राज्यों में भी ये कानून लाए गए हैं लेकिन मामले कोर्ट में लंबित पड़े हैं. लेकिन टेक्सास में अदालत की हरी झंडी भी मिल गई है. दरअसल इस तरह के कानून का उद्देश्य है कि भ्रूण के कार्डिएक टिश्यू के धड़कने का पता चलने के बाद गर्भपात कराना संभव ना हो सके. कानून के समर्थक इसी बात का हवाला दे रहे हैं.
इसके अलावा ईसाई धर्म में गर्भपात को लेकर भी अलग-अलग मत हैं. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि गर्भपात किसी की हत्या के समान है. वहीं कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्म गुरु पोप फ्रांसिस ने साल 2015 में कहा था कि गर्भपात कराने वाल महिलाओं को माफ किया जाना चाहिए. चर्च गर्भपात को पाप मानता है लेकिन अगर अब गर्भपात कराने वाली महिलाएं और इस काम में उनकी मदद करने वाले इसे स्वीकार कर लें तो उन्हें माफ किया जा सकता है.
अभी तक कि परंपरा यही है कि गर्भपात कराने वाली महिला खुद-ब-खुद कैथोलिक चर्च द्वारा बहिष्कृत कर दी जाती है. उस पर लगी पाबंदी तभी हटती है,जब कोई बिशप इसकी अनुमति देता है. वैटिकन ने तब जारी किये गए एक बयान में कहा था, "गर्भपात के गुनाह को माफ करने का अर्थ गर्भपात का समर्थन करना या इसके गंभीर नतीजों को कम करके आंकना नहीं है." पोप ने कहा था, "कई महिलाओं को लगता है कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था,लिहाज़ा उनकी मजबूरियों को समझते हुए ये छूट दी गई है."
कानून के विरोधी
अमेरिकी समाज को दुनिया में सबसे अधिक प्रगतिशील समझा जाता है, जहां महिलाएं गर्भपात कराने को बुरा नहीं समझती हैं, बल्कि वे इसे अपना मौलिक व संवैधानिक अधिकार मानती हैं और उनका पूरा यकीन है कि कोई कानून बनाकर उनसे ये हक़ छीना नहीं जा सकता. संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर महिला संगठन तक सड़क पर उतर हगए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद विरोध की आग और भी भड़क गई है. अमेरिका के करीब हर राज्य में कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. दरअसल अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने साल 1973 में ऐतिहासिक फैसला देते हुए गर्भपात को कानूनी मान्यता दी थी. जिसे अब एक तरह से वहां की शीर्ष अदालत ने ये कहते हुए पलट दिया है कि ऐसे कानून को न्यायिक चुनौती तो दी जा सकती है लेकिन फ़िलहाल वो टेक्सास के इस कानून पर रोक लगाने का कोई आदेश नहीं दे रहे हैं. फैसला 5-4 से कानून के पक्ष में रहा हो लेकिन जजों में भी मतभेद देखा गया.
दरअसल गर्भपात के समर्थकों को डर है कि उनको मिले संवैधानिक अधिकारों को इस फैसले के बाद वापस लिया जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट आने वाले वक्त में इसी केस के आधार पर 1973 के फैसले को पलट सकती है. जानकार मानते हैं कि अमेरिका की पीढ़ियां इस विचार के साथ बड़ी हुई हैं कि गर्भपात कानूनी अधिकार है और यह उनके लिए सुलभ भी है. ऐसे में ये एक अधिकार छीनने जैसा है.
अमेरिका में गर्भपात कानून का इतिहास
अमेरिका में पहले इंग्लैंड से मिला कानून लागू था जिसके तहत कम उम्र के भ्रूण का गर्भपात वैध था. जिसकी वजह से डॉक्टर बकायदा विज्ञापन देते थे और ऐसे क्लीनिकों की भी भरमार थी. गर्भपात की वजह से एक महिला की मौत के बाद अमेरिका में गर्भपात कानून की नींव पड़ी. 1821 से राज्यों ने कानून बनाने की पहल की और 1880 तक कई राज्यों ने इसी तरह के कानून बनाए.