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कश्मीर में दुबई के निवेश से पाकिस्तान का परेशान होना तो बनता है, जानिये क्यों ?

जम्मू-कश्मीर सरकार और दुबई की सरकार के बीच एमओयू साइन हुआ है जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के विकास में दुबई भी भागीदार बनेगा. लेकिन इस भागीदारी ने पाकिस्तान की छाती पर मूंग दलने का काम किया है. वैसे पाकिस्तान का परेशान होना तो लाजमी है. लेकिन इसकी वजह क्या है ? क्योंकि कई जानकार मानते हैं कि ये तो अभी शुरुआत है. जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

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Published : Oct 21, 2021, 6:15 PM IST

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हैदराबाद: धारा-370 हटने के 2 साल बाद जम्मू-कश्मीर के लिए एक अहम समझौता हुआ है. इस समझौते के तहत दुनिया के नक्शे पर सबसे अहम शहरों में शुमार दुबई, जम्मू-कश्मीर में निवेश करेगा. जम्मू-कश्मीर में निवेश को लेकर दुबई के साथ समझौते के कई मायने हैं. जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और दुनिया के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रों का रुख और भारत के बढ़ते कदमों को लेकर पाकिस्तान की तिलमिलाहट तक साफ नजर आती है. लेकिन ये सब कुछ रातों रात नहीं हुआ है.

दुबई और जम्मू-कश्मीर के बीच क्या समझौता हुआ है ?

इस समझौते के तहत दुबई, जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट में निवेश करेगा. इसमें औद्योगिक पार्क, आईटी टावर, बहुउद्देशीय टावर, लॉजिस्टिक्स, मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और कई विकास कार्यों के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक हाल में दुबई यात्रा के दौरान किंग सुल्तान अहमद ने भारत में रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश और खासकर जम्मू और कश्मीर का दौरा करने की रुचि दिखाई थी.

दुबई और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच साइन हुआ एमओयू

इस समझौते से क्या होगा ?

पीयूष गोयल के मुताबिक "दुबई के लोग अब जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश पर्यटन और रियल एस्टेट कारोबार में एक लंबा सफर तय करेंगे". इस बयान से साफ है कि ये सिर्फ शुरूआत है. दुबई और अन्य देशों के निवेश से जम्मू-कश्मीर का विकास तो होगा साथ ही साथ रोजगार के अवसर भी खुलेंगे. धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के सियासी दल मोदी सरकार के फैसलों और खासकर विकास के वादों पर सवाल उठा रहे थे. जम्मू-कश्मीर में इस तरह के निवेश से ऐसे नेताओं को जवाब मिलेगा.

पाकिस्तान को जोर का झटका जोर से ही लगा

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान की तिलमिलाहट जगजाहिर है. धारा 370 हटने के बाद से पाकिस्तान ने इस मुद्दे को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है. लेकिन पाकिस्तान की सबसे ज्यादा कोशिश कश्मीर को इस्लाम से जोड़ते हुए भारत के खिलाफ समर्थन जुटाने की रही है और इसके लिए उसने दुनियाभर के इस्लामिक देशों से समर्थन जुटाने की कोशिश की, इसमें मिडिल ईस्ट के देश भी शामिल हैं. हालांकि पाकिस्तान को इसमें कामयाबी नहीं मिली, तुर्की को छोड़कर किसी भी इस्लामिक देश खुलकर कभी भी पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं हुआ.

दुबई इस्लामिक राष्ट्र यूएई यानि संयुक्त अरब अमीरात का शहर है. यूएई ने धारा 370 खत्म करने के मसले पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया था. अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुके जम्मू-कश्मीर से दुबई का समझौता साफ बताता है कि यूएई ने जम्मू-कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता दे दी है. जो पाकिस्तान के लिए जोर का झटके जैसा है.

दुबई और जम्मू-कश्मीर के इस समझौते को लेकर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने ट्वीट किया है. बासित ने इसे कश्मीर को लेकर भारत की एक और जीत बताते हुए पाकिस्तान सरकार से पूछा कि क्या उनके पास कोई रणनीति है?

ये तो सिर्फ शुरुआत है

इस समझौते के बाद कई जानकारों का मानना है कि कश्मीर को लेकर भारत की कूटनीति रंग ला रही है और ये सिर्फ शुरुआत है और भारत की इन्हीं कोशिशें की वजह से पाकिस्तान आज मुस्लिम राष्ट्रों के बीच भी अलग-थलग पड़ चुका है. दुबई के इस निवेश के बाद अब पाकिस्तान को डर है कि आईओसी (OIC) यानि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन के कुछ और देश अगर भारत या जम्मू-कश्मीर में निवेश का रुख कर लिया तो वो हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर पाएगा.

भारत की कूटनीति से अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान

OIC और भारत

57 देशों के संगठन ओआईसी यानी ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन मुस्लिम राष्ट्रों का संगठन है. जिसमें 49 मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश हैं. इस संगठन का मकसद पूरी दुनिया के मुस्लिम हितों की रक्षा करना है. आईओसी में सऊदी अरब का दबदबा है और इस संगठन का मुख्यालय भी सऊदी अरब के जेद्दा में है. मुस्लिम बहुत आबादी वाले देश इस संगठन के सदस्य बन सकते हैं. जबकि रूस, थाईलैंड जैसे कुछ देश ऑब्जर्वर के रूप में हैं. कश्मीर मुद्दे को कई मुस्लिम देश OIC में भी उठाते रहे हैं, लेकिन ज्यादातर मुस्लिम देशों ने इसके शांतिपूर्ण हल की वकालत की है.

OIC के मंच पर भारत

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में मुस्लिमों की आबादी 14 फीसदी से अधिक है जिसे देखते हुए 2018 में OIC की बैठक में बांग्लादेश ने भारत को ऑब्जर्वर के तौर पर शामिल करने का सुझाव दिया था. लेकिन पाकिस्तान ने इसका विरोध किया था. लेकिन मार्च 2019 में ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों का सम्मेलन हुआ. जिसमें भारत को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था.

उस वक्त तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विशेष अतिथि के रूप में शिरकत की और आईओसी के मंच से आतंकवाद को पनाह देने और पोषण देने वाले देशों को खरी-खरी सुनाई. सुषमा स्वराज ने आईओसी से ऐसे देशों के खिलाफ एक्शन लेने की अपील की. वैसे ये वही मुस्लिम देशों का संगठन है जिसने 1969 में भी भारत को आमंत्रण दिया गया था लेकिन पाकिस्तान के विरोध के बाद आमंत्रण रद्द कर दिया गया था.

OIC की बैठक में सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को लिया था आड़े हाथ

जानकार मानते हैं कि आईओसी में पाकिस्तान की मौजूदगी और सऊदी अरब से रही करीबी का इस्तेमाल वो गलत तरीके से करता रहा है. आईओसी के मंच से भारत के खिलाफ बोलने से लेकर आईओसी के आधिकारिक बयान तक में पाकिस्तान का एकतरफा संवाद रहा है. जानकार मानते हैं पाकिस्तान ने इस मंच का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया है और पिछले 5 दशकों की गलतियों को सुधारते हुए भारत को मौका दिया गया लेकिन इसकी वजह दुनिया में भारत का बढ़ता दबदबा है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता.

मुस्लिम देशों के बीच भारत के बढ़ते दबदबे की वजह क्या है ?

OIC के ज्यादातर मुस्लिम राष्ट्रों और खासकर मिडिल ईस्ट के देशों के भारत के अच्छे संबंध हैं. बीते सालों में ये नजर भी आता रहा है. जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए पाकिस्तान के सहयोगियों खासकर मुस्लिम राष्ट्रों या ओआईसी के सदस्य देशों के साथ आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते बनाने की ओर भारत का जोर रहा है, जिसमें वो अब तक कामयाब भी हुआ है.

सऊदी और यूएई से भारत के अच्छे संबंध हैं

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद ओआईसी के सदस्यों समेत दुनियाभर के ज्यादातर देशों ने इसे या तो भारत-पाक का आपसी मामला बताया या फिर इस मुद्दे को शांति से हल करने की सलाह दी. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की झुंझलाहट को सभी ने दरकिनार किया था. आतंकवाद के मोर्चे पर भारत हर मंच पर पाकिस्तान को धूल चटाता ही आया है. ऐसे में दुबई का जम्मू-कश्मीर में निवेश का घटनाक्रम बहुत बड़ा है लेकिन ये रातों रात नहीं हुआ है. मुस्लिम देशों के बीच संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का प्रभाव सबसे ज्यादा है और दोनों देशों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं.

-सऊदी अरब से भारत के संबंध पहले से बहुत बेहतर हुए हैं. पीएम मोदी ने अगस्त 2015 में सऊदी पहुंचकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की थी. उसके अगले साल ही क्राउन प्रिंस ने भारत का दौरा किया और एक साल बाद 2017 की गणतंत्र दिवस परेड में वो मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. पुलवामा हमले के बाद 19 फरवरी को भी सऊदी के प्रिंस ने भारत पहुंचकर पीएम मोदी से मुलाकात की थी.

जब सऊदी अरब के प्रिंस क्राउन मोहम्मद बिन सलमान बने थे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि

- भारत और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्ते भी पहले से मजबूत हुई हैं. पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी अगस्त 2015 में यूएई के दौरे पर गए थे. जहां वो शेख जायद ग्रैंड मस्जिद गए थे. अमेरिका के बाद यूएई में ही सबसे ज्यादा भारतीय आबादी रहती है. एक अनुमान के मुताबिक यूएई की आबादी का एक तिहाई हिस्सा भारतीयों का है. अगस्ता वेस्टलेंड हेलीकॉप्टर घोटाले के मुख्य आरोपियों में शुमार क्रिश्चियन मिशेल और राजीव सक्सेना को भी दुबई में गिरफ्तार किया गया और फिर यूएई ने उनका प्रत्यर्पण किया.

- इस पूरी कवायद में पीएम मोदी की छवि को नकारा नहीं जा सकता. आतंकवाद के मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को घेरने की बात हो या कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने की या फिर निवेशकों को भारत लाने की. पीएम मोदी ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया है. दुनिया के कई देश पीएम मोदी को सर्वोच्च सम्मान से नवाज चुके हैं. इसमें यूएई का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार जायेद मेडल और सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग अब्दुल अजीज साश अवॉर्ड भी शामिल है. इस सूची में अफगानिस्तान से लेकर फिलिस्तीन जैसे अन्य मुस्लिम राष्ट्र भी शामिल हैं.

सऊदी अरब और यूएई दे चुके हैं पीएम मोदी को सर्वोच्च सम्मान

- साल 2019 में पीएम मोदी ने दुबई में हिंदू मंदिर की नींव रखी थी. साल 2015 में पीएम मोदी जब अबू धाबी गए थे उस समय मंदिर को जमीन देने का वादा किया गया था. कहा जा रहा है कि 2022 तक ये मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा. साल 2019 में ही पीएम मोदी ने बहरीन में भी भगवान कृष्ण के 200 साल पुराने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 42 लाख डॉलर की परियोजना का शुभारंभ किया था.

-सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात समेत मिडिल ईस्ट के तमाम देश पेट्रोलियम खनन के सहारे इस मुकाम पर पहुंचे हैं. लेकिन ये सभी देश जानते हैं कि पेट्रोल हमेशा नहीं रहेगा, जिसने इन देशों को भविष्य के लिए सोचने पर मजबूर किया और ये देश अब आय के नए स्रोत ढूंढ रहे हैं. जिनमें से एक है विदेशों में निवेश और मौजूदा दौर में निवेश के मामले में भारत सबसे उपयुक्त देश माना जा रहा है. अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश भारत के बाजार पर नजरें गढ़ाए बैठे हैं और ऐसा ही कुछ मिडिल ईस्ट के देश भी कर रहे हैं.

अब घिरेगा पाकिस्तान

आतंकवाद से लेकर जम्मू कश्मीर के मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की मुहिम हर मंच पर रंग लाई है. और दुबई के साथ कश्मीर के विकास के लिए समझौता पाकिस्तान को चौतरफा घेरने की शुरुआत है. खबर है कि दुबई के बाद जापान और अमेरिका भी जम्मू-कश्मीर में निवेश के लिए तैयार हैं. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित कहते हैं कि आज यूएई ने समझौता किया है कल को सऊदी अरब से लेकर तमाम दूसरे मुस्लिम देश भी ऐसा कर सकते हैं. जिसका साफ संदेश जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर भारत के पक्ष में जाएगा.

जम्मू-कश्मीर में दुबई के निवेश के बाद पाकिस्तान के माथे पर चिंता की लकीर

वैसे तो दुबई के समझौते के बाद ही पाकिस्तान के पैरों तले जमीन खिसक गई होगी लेकिन अगर भविष्य में मोदी सरकार अन्य मुस्लिम देशों का निवेश भारत या खासकर कश्मीर में करवाने में कामयाब रही तो पाकिस्तान का चौतरफा घिरना तय है. जम्मू-कश्मीर में विदेशी निवेश का मतलब है कि आतंक के मोर्चे पर पाकिस्तान की पोल खुल जाएगी, अगर विदेशी निवेश को नुकसान हुआ तो भारत भी चुप नहीं बैठेगा और अगर विदेशी कंपनियों को नुकसान झेलना पड़ा तो वो भी पाकिस्तान के खिलाफ झंडा बुलंद कर सकते हैं. कुल मिलाकर खामियाजा सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान को ही भुगतना पड़ेगा.

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