नई दिल्ली : सिर्फ तीन दिन 13 से 15 अगस्त ही झंडा क्यों फहराया जाए, झंडा तो हर दिन पूरे साल फहराना चाहिए. ये कहना है मशहूर उद्योगपति और तिरंगा लगाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले नवीन जिंदल का. वे आगे कहते हैं कि मैं तो कहूंगा हर घर तिरंगा, हर दिन तिरंगा. तीन दिन काफी नहीं हैं, हर रोज़ फहराएं झंडा. मैं तो ये जानता हूं कि लोग जब इन तीन दिनों मे झंडा लगाएंगे, तो बाकी दिनों के लिए मुझे उनसे कहना ही नहीं पड़ेगा, वे अपने आप रोज़ झंडा लगाएंगे. झंडे के बिना उनको सूना-सूना लगेगा.
पिछले तीस बरसों से अपनी शर्ट पर रोज़ लेपल फ्लैग और कलाई मे तिरंगा बैंड पहन कर घर से निकलने वाले नवीन जिंदल के लिए तिरंगा उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. तीस बरस पहले जब वे अमेरिका से पढ़ कर लौटे थे, तो रायगढ़ की अपनी फैक्टरी पर उन्होंने 26 जनवरी को झंडा फहरा लिया था. अगले दिन किसी स्थानीय अफसर ने आ कर वो झंडा ये कह कर उतरवा दिया कि ये साल में सिर्फ दो दिन ही आम आदमी लगा सकता है. नवीन को ये नागवार गुजरा कि अपने देश के तिरंगे को उन्होंने सालों अमेरिका के अपने कमरे और दफ्तर दोनों जगह लगा कर रखा, लेकिन अपने देश में नहीं लगा पा रहे. और विस्तार में गए तो पता चला कि असल मुश्किल फ्लैग कोड यानी झंडा संहिता में है. उसमें लिखा था कि आम आदमी साल में सिर्फ दो दिन तिरंगा अपने घर या दफ्तर पर लगा सकता है.
झंडे का प्रेम और जुनून नवीन को इतना था कि उन्होंने इसके लिए दस साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. पहले हाइकोर्ट में जीते, फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके हक में फैसला दिया और झंडा फहराना किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार माना. नवीन कहते हैं कि हक तो मिल गया लेकिन पहली बार लोग इसे अपनाने में डर रहे थे कि कहीं जाने अनजाने में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान न हो जाए. तब हमने एक फ्लैग फाउंडेशन का गठन किया. मैं और मेरी पत्नी ने लोगों के बीच झंडे को लोकप्रिय बनाने के लिए किताबें निकाली, पेंटिंग एग्ज़ीबिशन कीं. जगह जगह उंचे-उंचे झंडे लगाए, जैसे कनॉट प्लेस में आप देखते होंगे. देखा-देखी लगभग 600 झंडे और लोगों ने भी लगाए. आज दुनिया भर में सबसे ऊंचे झंडे सबसे ज़्यादा भारत में हैं.
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