नई दिल्ली : न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक रिपोर्ट में कहा है कि विधायकों की चुनाव लड़ने की अयोग्यता को उनकी रिहाई, सजा पूरी होने के बाद छह साल की अवधि तक ही क्यों सीमित किया जाना चाहिए. दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और सांसदों/विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका में हंसारिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था.
कानून के तहत उन सभी मामलों में, जहां राजनेताओं को कारावास की सजा दी गई है, चुनाव लड़ने से अयोग्यता उनकी रिहाई के बाद से केवल छह साल की अवधि तक जारी रहती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कोई व्यक्ति रिहाई के छह साल बाद चुनाव लड़ने के लिए पात्र हो जाता है, भले ही उसे बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों या ड्रग्स से निपटने या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने या भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए दोषी ठहराया गया हो.
"(लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उप-धारा (1), (2) और (3) के प्रावधान, इस हद तक प्रदान करते हैं कि 'आगे की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जाना जारी रहेगा' हंसारिया ने शीर्ष अदालत में विचार के लिए दायर अपनी 19वीं रिपोर्ट में कहा, ''उनकी रिहाई के बाद से छह साल की सजा स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.''
उन्होंने सुझाव दिया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय द्वारा आरपी अधिनियम की धारा 8 की संवैधानिक वैधता का मुद्दा, जहां तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता "उनकी रिहाई के बाद से छह साल की अवधि तक" सीमित है, मामलों के शीघ्र निपटान के मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जा सकता है. अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में हंसारिया ने प्रस्तुत किया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय को उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट और पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की देरी के कारणों की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है.