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दिवाली की रात लक्ष्मी-गणेश की साथ में क्यों होती है पूजा, जानें पौराणिक कहानी

जिस तरह त्योहार को मनाने के पीछे एक कहानी है, उसी तरह पूजा विधियों के पीछे भी कारण छुपे हुए हैं. जैसे, दिवाली की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा एक साथ क्यों की जाती है, इस पूजा विधि से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. कहा जाता है कि दीपावली के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम 14 वर्ष के बाद अयोध्या लौटे थे. इसी खुशी में घर-घर घी के दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गईं. इसलिए दीपावली मनाई जाती है. वहीं इस दिन गणेश और लक्ष्मी का पूजन किया जाता है, तो चलिए जानते हैं कि दीपावली में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों की जाती है.

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Published : Nov 11, 2020, 5:42 PM IST

Updated : Nov 11, 2020, 6:15 PM IST

deepawali
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नई दिल्ली : इस साल 14 नवंबर को दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन प्रदोष काल में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के साथ धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या वापस लौटे थे. राम के लौटने के बाद पूरे अयोध्या को दीपों से सजाया गया था, इसलिए भी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है.

वहीं गणपति भगवान को ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति और मां लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा जाता है. मान्यता है कि इनकी कृपा होने से संसार का सारा सुख मिल जाता है. शास्त्रों के अनुसार, मान्यता है कि माता लक्ष्मी उन्हीं के पास टिकती हैं, जिसके पास बुद्धि होती है. यही वजह है कि लक्ष्मी एवं गणपति की एक साथ पूजा का विधान है, जिससे धन और बुद्धि एक साथ मिले. हिंदुओं का प्रमुख त्योहार दीपावली सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए हर परिवार दीपावली की रात इसी कामना से लक्ष्मी पूजन करता है कि लक्ष्मी मां उस पर अपनी कृपा बनाए रखें.

लक्ष्मी-गणेश.

दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और श्रीगणपति की पूजा का बहुत महत्व है. इनकी पूजा के बिना यह त्योहार अधूरा रहता है. अक्सर मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर दीपावली पर मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा क्यों की जाती है.

माता पार्वती ने लक्ष्मी जी को सौंपा अपना पुत्र

मान्यता है कि भगवान गणेश बुद्धि के प्रतीक हैं और मां लक्ष्मी धन-समृद्धि की. दिवाली पर घरों में इन मूर्तियों को स्थापित कर पूजन करने से धन और सद्बुद्धि दोनों प्राप्त होती है. शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी को धन का प्रतीक माना गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार लक्ष्मी को धन की देवी होने का अभिमान हो जाता है. विष्णु इस अभिमान को खत्म करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने लक्ष्मी से कहा कि स्त्री तब तक पूर्ण नहीं होती है, जब तक वह मां न बन जाए. लक्ष्मी जी का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए यह सुन के वह बहुत निराश हो गईं. तब वह देवी पार्वती के पास पहुंचीं. मां पार्वती के दो पुत्र थे इसलिए लक्ष्मी ने उनसे एक पुत्र को गोद लेने की बात कही. मां पार्वती जानती थीं कि लक्ष्मी जी एक स्थान पर लंबे समय नहीं रहती हैं. इसलिए वह बच्चे की देखभाल नहीं कर पाएंगी, लेकिन उनके दर्द को समझते हुए उन्होंने अपने पुत्र गणेश को उन्हें सौंप दिया. इससे लक्ष्मी माता बहुत प्रसन्न हुईं. उन्होंने कहा कि सुख-समृद्धि के लिए पहले गणेश की पूजा करनी पड़ेगी तभी मेरी पूजा संपन्न होगी. यही कारण है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है.

लक्ष्मी.

लक्ष्मी पूजा का महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों में मां लक्ष्मी धन की देवी हैं यह हम सभी जानते हैं. मां लक्ष्मी की कृपा से ही ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है. धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का आगमन हुआ था. एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म दिवस होता है. कुछ स्थानों पर इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गई है. कालरात्रि को शत्रु विनाशक माना गया है. साथ ही शुभत्व का प्रतीक, सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला भी माना गया है.

हिंदू धर्म में गणपति की पूजा के बिना कोई भी पूजा शुरू नहीं की जाती. दीपावली पर गणपति पूजा की यह भी एक वजह है. सुख-समृद्धि के लिए पहले गणेश की पूजा होती है.

देवी लक्ष्मी के वरदान से बदला भाग्य

एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की लालसा हुई उसने लक्ष्मी की आराधना की. उसकी आराधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं तथा उसे साक्षात दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा. दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज दरबार में पहुंचा. वरदान मिलने के बाद उसे अभिमान हो गया. उसने राजा को धक्का मारा, जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया. राजा व उसके दरबारीगण उसे मारने के लिए दौड़े, लेकिन इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक कालानाग निकल कर भागने लगा. सभी चौंक गए और साधु को चमत्कारी समझकर उस की जय जयकार करने लगे. राजा ने प्रसन्न होकर साधु को मंत्री बना दिया, क्योंकि उसी के कारण राजा की जान बची थी. साधु को रहने के लिए अलग से महल दिया गया वह शान से रहने लगा. राजा को एक दिन वह साधु भरे दरबार से हाथ खींचकर बाहर ले गया. यह देख दरबारी जन भी पीछे भागे. सभी के बाहर जाते ही भूकंप आया और भवन खण्डहर में तब्दील हो गया. उसी साधु ने सबकी जान बचाई. साधु का मान-सम्मान बढ़ गया, जिससे उसमें अहंकार की भावना विकसित हो गई.

गणेश.

राजा के महल में एक गणेश की प्रतिमा थी. एक दिन साधु ने वह प्रतिमा यह कह कर वहां से हटवा दी कि यह प्रतिमा देखने में बिल्‍कुल अच्छी नहीं है. साधु के इस कार्य से गणेश जी नाराज हो गए. उसी दिन से मंत्री बने साधु की बुद्धि बिगड़ गई वह उल्टा पुल्टा करने लगा. तभी राजा ने उस साधू से नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया. साधु जेल में पुनः लक्ष्मी की आराधना करने लगा. लक्ष्मी जी ने दर्शन दे कर उससे कहा कि तुमने गणेश का अपमान किया है, अतः गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो.

लक्ष्मी का आदेश पाकर वह गणेश की आराधना करने लगा. इससे गणेश जी का क्रोध शान्त हो गया. गणेश ने राजा के स्वप्न में आ कर कहा कि साधु को फिर मंत्री बनाया जाए. राजा ने गणेश जी के आदेश का पालन किया और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया. इस प्रकार लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा साथ-साथ होने लगी. बुद्धि के देवता गणेश की भी उपासना लक्ष्मी जी के साथ अवश्य करनी चाहिए. इस प्रकार दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी जी के साथ गणेश की भी आराधना की जाती है.

Last Updated : Nov 11, 2020, 6:15 PM IST

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