नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणि से पूछा कि केरल के राज्यपाल दो साल से राज्य विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर चुप्पी क्यों साधे बैठे थे? राज्यपालों की जवाबदेही है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले को केरल के मुख्यमंत्री (सीएम) और राज्यपाल की बुद्धिमत्ता पर छोड़ देगी, अन्यथा अदालत यहां राज्यपाल की शक्ति के संबंध में दिशानिर्देश तय करने के लिए है.
केरल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया कि राज्यपाल की शक्ति पर इस न्यायालय की ओर से दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए. एजी ने वेणुगोपाल की दलीलों का विरोध किया और तर्क दिया कि याचिका का दायरा राज्यपाल को निर्देश देने तक ही सीमित है और इस याचिका से व्यापक मुद्दे नहीं उठ सकते.
पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि कहा कि केरल राज्य की ओर से राहत की मांग की गई है. राज्यपाल उचित समय के भीतर प्रस्तुत बिलों का निपटान करने के लिए बाध्य हैं. राज्यपाल अपने संवैधानिक कर्तव्य में विफल रहे हैं.
पीठ ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों को लंबित रखने का कोई कारण नहीं बताया गया है. जैसा कि हमने पंजाब फैसले में देखा है, राज्यपाल की शक्ति का उपयोग विधायिका के कानून बनाने की प्रक्रिया को रोकने के लिए नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि राज्यपाल इस मामले में राज्य के सीएम और प्रभारी मंत्रियों के साथ चर्चा करेंगे. वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यपाल चेहरा बचाने की कवायद चाहते हैं.
पीठ ने केरल सरकार के वकील से पूछा, क्या यह मुद्दे को सुलझाने या राजनीतिक हिसाब बराबर करने की याचिका है? कोई रास्ता निकालें और ये मिल-बैठकर निपटाए जाने वाले मामले हैं. वेणुगोपाल ने कहा कि बिलों पर सीएम के बजाय प्रभारी मंत्री को चर्चा करने दें. सीजेआई ने जवाब दिया, सीएम यह कैसे कह सकते हैं कि राज्य के प्रमुख के रूप में मुझे बिलों के बारे में कुछ नहीं पता.