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क्या चुनाव जीतने का सटीक फॉर्मूला है 'मुफ्त वाला वादा', आखिर सरकार इसके लिए पैसे कहां से लाती है ? - yogi adityanath announced to give free cellphone

भारतीय राजनीति में मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी का वादा इतना कारगर हो गया है कि अगले साल 6 राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले हर पार्टी मुफ्त का राग छेड़ रही है. सभी पार्टियां कभी न कभी सत्ता में रही हैं और राजनेताओं को पता है कि ऐसे स्कीम के लिए पैसे जनता की जेब से ही लिए जाते हैं. जानिए फ्री वाली पॉलिटिक्स के बारे में.

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Published : Aug 26, 2021, 9:33 PM IST

Updated : Aug 27, 2021, 6:13 PM IST

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ जी ने 19 अगस्त 2021 को यूपी फ्री स्मार्ट फोन योजना का शुभारंभ किया. इस योजना के तहत प्रदेश के एक करोड़ युवाओं को फ्री यानी मुफ्त में स्मार्टफोन दिया जाएगा. मुफ्त राशन, मुफ्त वैक्सीन की कड़ी में एक और फ्री की स्कीम चुनाव से पहले आ गई.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के थैले

ऐसा नहीं है कि सिर्फ उत्तरप्रदेश में ऐसी योजना आई है या पहली बार सरकार लाई है. अखिलेश यादव मुफ्त साइकिल और लैपटॉप बांटकर 5 साल तक सत्ता में रह चुके हैं. उत्तराखंड में राष्ट्रीय पोषण मिशन योजना के अंतर्गत प्रेशर कुकर बांटे जा रहे हैं. झारखंड में मुफ्त लुंगी-साड़ी वितरण योजना चल रही है. इसके तहत 58 लाख राशन कार्ड धारकों को 10 रुपये में लुंगी और साड़ी बांटी जा रही है. छत्तीसगढ़ में 2005 से 2018 तक चरण पादुका स्कीम चली. इसमें तेंदु पत्ता इकट्ठा करने वाले आदिवासी लोगों को राज्य सरकार की तरफ से हर साल एक जोड़ी जूते दिए जाते थे. भूपेश बघेल की सरकार ने 3 साल पहले जूते देना बंद कर दिए मगर इसके एवज में नकद देना शुरू कर दिया.

दक्षिण भारत के राज्यों में मुफ्त वाली स्कीम काफी पॉपुलर रही है.

फ्री चावल और अम्मा कैंटीन ने दिखाया वोट बटोरने का रास्ता : दक्षिण भारत के राज्यों में मुफ्त वाली स्कीम काफी पॉपुलर रही है. तमिलनाडु में अन्नादुरै ने 1967 में फ्री चावल की स्कीम शुरू की. इसकी अपार सफलता के बाद हर पार्टी के मेनिफेस्टो में मुफ्त वाली स्कीम आ गई. 2006 के विधानसभा चुनाव में डीएमके के नेताओं ने कलर टीवी और मुफ्त चावल देने का वादा किया. पिछले विधानसभा चुनाव में तो वहां मिक्सी ग्राइंडर, कुकर, स्टोव के साथ 1000 रुपये देने का ऐलान भी कई दलों ने कर दिया. फ्री स्कीम का असर यह रहा कि 31 मार्च 2020 तक तमिलनाडु पर 4.87 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था.

छत्तीसगढ़ की रमन सिंह की सरकार ने भी 2005 के बाद राज्य में दाल चावल के साथ नमक भी बांटे थे. अम्मा कैंटीन ने तो योजना बनाने वालों को ऐसी राह दिखाई, जिसकी कोई आलोचना नहीं कर सकता. इसकी तर्ज पर राजस्‍थान में 'इंदिरा थाली', दिल्‍ली में आम आदमी थाली और अटल जन आहार योजना भी लॉन्च हो गई. रही सही कसर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में पूरी कर दी. सब्सिडी को मुफ्त कैसे बताया जाता है, यह तरीका भारतीय राजनीति को सिखाया.

मुफ्त वाली राजनीति में अरविंद केजरीवाल अव्वल.

मुफ्त वाली राजनीति में अरविंद केजरीवाल अव्वल : फ्री बिजली, फ्री पानी का नारा दिल्ली वालों को इतना भाया कि भारी बहुमत से अरविंद केजरीवाल की सरकार दोबारा बना दी. दिल्ली सरकार ने 2019-20 में मुफ्त पानी स्कीम पर 468 करोड़ रुपये ख़र्च किए. दिल्ली में 20 हज़ार लीटर तक के पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल आता है. महिलाओं की मुफ़्त में बस यात्रा कराने की घोषणा दिल्ली सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले ही की थी. राज्य सरकार का दावा है कि इस पर 108 करोड़ रुपये का ख़र्च आया. दिल्ली सरकार की जारी अपने रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक़ 2018-19 में उन्होंने सब्सिडी पर 1700 करोड़ रुपये ख़र्च किए. इसके बाद राज्य सरकारों को भी नया फार्मूला मिल गया. झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने 100 यूनिट बिजली मुफ्त दे रही है. पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में यह होड़ मची है कि कौन पार्टी सत्ता में आने पर ज्यादा फ्री स्कीम लाएगी.

सब्सिडी शासन की ओर से दी जाने वाली सहायता है.

कोरोना ने कॉम्पिटिशन बढ़ा दिया :कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने गरीब लोगों के लिए मुफ्त वाली कई योजना शुरू की. दूसरी लहर के बाद केंद्र ने 80 करोड़ लोगों को दिवाली तक मुफ्त राशन बांटने की घोषणा कर दी. माना जा रहा है कि बीजेपी इस योजना के जरिए लोगों के किचन तक पहुंचना चाहती है. इसके जवाब में तमिलनाडु सरकार की तरफ से यह फैसला लिया गया है कि राज्य के सभी राशन कार्ड धारकों को 15 किलो चावल के साथ 4,000 रुपये नकद भी दिए जाएंगे.

झारखंड में मुफ्त लुंगी-साड़ी वितरण योजना चल रही है.

जानिए सब्सिडी और मुफ्त का फर्क : सब्सिडी क्या है? सब्सिडी शासन की ओर से दी जाने वाली सहायता है. इसका मकसद आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति या संस्था तक जरूरत की चीज पहुंचाना है. कल्याणकारी राज्य में इसका उपयोग इसलिए किया जाता रहा है ताकि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोग भी बिना किसी वित्तीय बोझ के जरूरत की वस्तु ख़रीद लें. ज्यादातर यह जनता को अप्रत्यक्ष तौर पर मिलती है, इसलिए इसका अनुभव नहीं हो पाता है. जैसे सब्सिडी खत्म होते ही गैस सिलिंडर की कीमत एक साल में 400 से बढ़कर 900 हो गई.

अगर वित्तीय मदद सब्सिडी है तो फ्री क्या है ? आपसे आप अथवा बिना प्रयास के मिली वस्तु, जिसके लिए कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ी हो, उसे मुफ्त या फ्री कहते हैं. इसे सरकार अपनी जन कल्याण नीतियों के कारण योजनाओं के तहत देती है. चुनावी साल या उससे पहले ऐसी सरकारी स्कीम ज्यादा दिखाई देती है.

केंद्र और राज्य सरकार विभिन्न तरह के टैक्स से ही अपना खजाना भरती है.

सरकार की आमदनी कहां से होती है :केंद्र और राज्य सरकार विभिन्न तरह के टैक्स से ही अपना खजाना भरती है. आयकर डायरेक्ट टैक्स है, जिसका एहसास करदाताओं को होता है मगर अन्य टैक्स भी जनता की जेब से ही वसूले जाते हैं. केंद्र सरकार की कमाई निगम कर, आय कर, कस्टम ड्यूटी, सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, केन्द्रीय GST, इंटीग्रेटेड GST, ब्याज प्राप्तियां, विदेशी अनुदान, विनिवेश से आय से होती है.

केंद्र सरकार की कुल इनकम में अधिक हिस्सेदारी वस्तु एवं सेवा कर (33%) की है. कारपोरेशन टैक्स से 27 पर्सेंट और आय कर से 23 पर्सेंट कमाई सरकार को हो रही है. राज्य सरकार भी जीएसटी, सार्वजनिक उद्योग, सिंचाई, वन, शराब, बिजली और रोड टैक्स से कमाई करती है. इसके अलावा मनोरंजन कर, रजिस्ट्रेशन फीस, स्टाम्प शुल्क और बिक्री कर से भी राज्य सरकार को आमदनी होती है.

यानी जनता से लिए गए धन को मुफ्त की स्कीम में बांटना राज्य के लिए सही है. एक्सपर्ट मानते हैं कि जनता से वसूले गए टैक्स को जन कल्याण पर ही खर्च किया जाना चाहिए. सरकार को स्कीम बनाते समय यह देखना होगा कि इसका लाभ अधिक से अधिक नागरिक को मिले. मुफ्त की स्कीम सिर्फ ऐसे विषयों के लिए हो, जिससे आम आदमी का मौलिक जरुरत पूरी न होती हो. जैसे दो वक्त का भोजन, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार मुफ्त खर्च कर सकती है. मगर टैक्स के पैसे को चुनावी लोकलुभावन योजना में खर्च करना उसकी बर्बादी है.

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Last Updated : Aug 27, 2021, 6:13 PM IST

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