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Published : Oct 27, 2021, 9:04 PM IST

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ऑस्कर में नॉमिनेशन पाने से क्यों चूक जाती हैं भारतीय फिल्में, फिलहाल 'कूड़ांगल' से उम्मीद

भारत में औसतन 800 फिल्में हर साल बनती हैं. भारत करीब 65 साल से एक फिल्म आधिकारिक तौर से ऑस्कर के बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी के लिए भेजता है. मगर अभी तक एक भी फिल्म को सफलता नहीं मिली है. जानिए ऐसा क्यों हैं.

nomination for best foreign language film in oscar
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हैदराबाद :भारत की ओर से तमिल फिल्म कूड़ांगल (Koozhangal) ऑस्कर के लिए चुनी गई है. बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेशन के लिए जब ऑस्कर के ज्यूरी को यह फिल्म दिखाई जाएगी तो उसका टाइटल होगा Pebbles. पेबल्स यानी छोटे-छोटे चिकने पत्थर, जो रेत में अक्सर मिलते हैं. शराबी बाप और मासूम बेटे की ओरिजिनल कहानी वाली इस फिल्म ने शानदार स्क्रिप्ट, बेजोड़ एक्टिंग, कमाल के डायरेक्शन और अदभुत सिनेमैटोग्राफी की वजह से बड़ी बजट वाली14 फिल्मों को पीछे छोड़ दिया. यह फिल्म ऑस्कर अवॉर्ड जीत पाती है या नहीं.

भारत 1957 में मदर इंडिया के साथ ऑस्कर में एंट्री की शुरुआत की थी. कूड़ांगल (Koozhangal) ऑस्कर में जाने वाली भारत की तरफ से 54वीं फिल्म है. मगर इतने साल में सिर्फ 3 फिल्म ही टॉप-5 के लिए नॉमिनेशन हासिल कर सकी. पहली फिल्म थी महबूब खान की मदर इंडिया. दूसरी 1989 में बनी फिल्म सलाम बॉम्बे और आखिरी आशुतोष गोवारिकर की लगान. 2001 में आमिर खान स्टारर लगान अंतिम क्षण में बोस्निया-हरगोविना की फिल्म नो मेंस लैंड से पिछड़ गई. इसके बाद से किसी भारतीय फिल्म को नॉमिनेशन नहीं मिला.

भारत 1957 में मदर इंडिया के साथ ऑस्कर में एंट्री की शुरुआत की थी.

आज तक बॉलीवुड की 33 हिंदी और 10 तमिल फिल्म ऑस्कर के लिए भेजी गई है. इसके अलावा मलयालम की तीन, मराठी और बांग्ला की दो-दो फिल्में भी भेजी गई. तेलगू, असमी, गुजराती और कोंकणी की एक-एक फिल्म ऑस्कर के लिए चुनी गई हैं. मगर अभी तक एक भी फिल्म ऑस्कर के पैमाने पर खरी नहीं उतरी. भारतीय फिल्मों की लंबाई और गाने भी ऑस्कर की राह में रोड़े की तरह ही है. विदेशों में दर्शकों को छोटी फिल्में देखने की आदत होती है.

अभी तक पांच भारतीयों ने ऑस्कर जीता है, जिनमें 4 विजेताओं को विदेशी फिल्मों के लिए मिला है. तीन विजेता तो सिर्फ एक फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर से हैं. संगीतकार ए.आर. रहमान, गीतकार गुलजार और बेस्ट साउंड मिक्सिंग के लिए रसूल पोक्कुटी. स्लमडॉग मिलेनियर यूके के डायरेक्टर डैनी बॉयल ( Danny Boyle) थे. यह फिल्म भले ही भारतीय पृष्ठभूमि पर बनी है, मगर प्रोडक्शन हाउस के कारण ऑस्कर अवॉर्ड यूके के खाते में चला गया.

इससे पहले 1983 में रिलीज हुई फिल्म गांधी के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया को ऑस्कर मिला था. गांधी इंडो-ब्रिटिश फिल्म थी, इसके निर्माण में भारत सरकार ने भी (National Film Development Corporation of India) पैसा लगाया था. इसके निर्देश रिचर्ड एटनबर्ग हैं. साल 1991 में देश के दिग्गज फिल्ममेकर सत्यजीत रे को ऑनरेरी लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए ऑस्कर अवार्ड मिला था.

2001 में आमिर खान स्टारर लगान नो मेंस लैंड से पिछड़ गई.

भारतीय फिल्म बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट होने के लिए भेजी जाती हैं. अभी तक के रेकॉर्ड के अनुसार, इस कैटिगरी में चुनी गई 80 फीसद फिल्म यूरोपीय देशों की होती है. मगर इसमें जापान, इज़राइल और मैक्सिको भी तगड़ी दावेदारी करता है. यूरोपीय फिल्मों के चयन के कारण कई बार ऑस्कर ज्यूरी पर पक्षपात के आरोप भी लगे हैं.

आधिकारिक प्रवृष्टि के लिए सही फिल्म का चुनाव नहीं होने के कारण भी भारतीय फिल्में ऑस्कर की रेस में काफी पीछे छूट जाती हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि अधिकतर भारतीय सिनेमाघरों में हिट फिल्म को ऑस्कर के लिए चुना जाता है. इस दौरान यह ध्यान नहीं रख पाते हैं कि कहानी और स्क्रीनप्ले कितना मौलिक है.

फिल्म को तय करते वक्त यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि हिट के बावजूद फिल्म में ग्लोबल अप्रोच है या नहीं. 2019 में ‘गली बॉय', 2015 की फिल्म मराठी फिल्म कोर्ट और 2017 की न्यूटन के सिलेक्शन पर ऐसे सवाल उठे थे. फोर्ब्स के लेख में Rob Cain ने बताया कि भारतीय निर्माता कभी भी ऑस्कर हासिल करने के नजरिये से फिल्म का निर्माण नहीं करते हैं. जो निर्माता इस स्तर की फिल्म बनाते हैं तो उसे भारत की ज्यूरी सिलेक्ट ही नहीं करती है. 2015 में क्रिटिक्स ने बाहुबली द बिगनिंग की अनदेखी पर आश्चर्य जताया था.

फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर को मिला था अवॉर्ड.

कई बार भारतीय फिल्म अच्छी होती हैं मगर उसका प्रमोशन नहीं हो पाता है. 2004 में ऑस्कर में गई मराठी फिल्म श्वास (द ब्रीथ) के निर्माता के पास इतने पैसे नहीं थे, जिससे वह लॉस एंजेलिस में प्रमोशन शो आयोजित कर सकें. फंड के लिए कैंपेन भी किया गया, मगर वह प्रदर्शन के लिए पैसे नहीं जुटा सके थे. अमूमन लॉस एजेंलिस में कैंपेन के लिए 10 मिलियन डॉलर के बजट की जरूरत होती है.

अपनी तमिल फिल्म विसारानाई को लेकर ऑस्कर पहुंचे वेत्री मारन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ऑस्कर के लिए ज्यूरी एक बार ही मुफ्त में शो आयोजित करने का मौका देती है. उसके बाद हर शो के लिए पैसे के इंतजाम करने होते हैं. 2017 में वेत्री मारन को एक स्क्रीनिंग के लिए 17500 डॉलर खर्च करने पड़े.

ऑस्कर के लिए सिलेक्ट भारतीय फिल्म की पहुंच अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक नहीं होती हैं. इस कारण हर बार फिल्में प्रचार से चूक जाती हैं. बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में मुकाबला करने वाली विदेशी फिल्में ऑस्कर में जाने से पहले अमेरिका के सिनेमाघरों में रिलीज हो जाती है. जबकि भारतीय फिल्म को विदेशों में रिलीज के बिना भी भेज दिया जाता है. इससे ऑस्कर अकैडमी के मेंबर, मीडिया और फिल्म समीक्षक का ध्यान भारतीय फिल्मों पर कम ही जाता है. कई बार भारतीय फिल्म निर्माताओं को अंतिम क्षण में सबटाइटल्स बनाने पड़े, जो ज्यूरी को समझ में ही नहीं आई.

कूड़ांगल ऑस्कर में जाने वाली भारत की तरफ से 54वीं फिल्म है.

तमिल फिल्म कूड़ांगल (Koozhangal) को भी प्रमोशन, सब टाइटल्स और फॉरेन रीलीज जैसी चुनौतियों से जूझना होगा. हालांकि इसके सिलेक्शन पर अभी तक कोई सवाल नहीं उठे हैं और यह रॉटरडैम अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में टाइगर पुरस्कार जीत चुकी है. उम्मीद है कि यह कम से कम ऑस्कर नॉमिनेशन हासिल कर लेगी.

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