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अफगानिस्तान के मामले पर खामोश क्यों है सरकार ? - भारत और अफगानिस्तान

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत सरकार एक एक कदम फूंक-फूंक कर उठा रही है. पहले दिन ही एयर इंडिया की फ्लाइट से लगभग 129 लोग भारत पहुंचे, लेकिन अभी भी वहां पर सिख समुदाय के काफी लोग फंसे हुए हैं. हालांकि सरकार और सत्ताधारी पार्टी के तमाम प्रतिनिधि अफगानिस्तान पर चुप्पी साधे हुए हैं. आखिर सरकार और सत्ताधारी पार्टी अफगानिस्तान पर चुप क्यों है? आइए जानते हैं वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में.

अफगानिस्तान
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Published : Aug 16, 2021, 8:26 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 8:35 PM IST

नई दिल्ली : भारत और अफगानिस्तान के संबंध सालों पुराने हैं और अफगानिस्तान को लेकर भारत हमेशा से संवेदनशील रहा है, लेकिन भारत ने अफगानिस्तान पर तब से ही चुप्पी साध रखी है जब से तालिबान धीरे-धीरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा था. हालांकि भारत की चुप्पी ने विपक्षियों को हैरत में डाल दिया है.

ऐसे में विपक्ष की तरफ से सवाल उठाए जा रहे हैं, जिनमें से एक सवाल यह भी है कि क्या भारत की तालिबान के साथ बातचीत हुई है और यदि हुई है तो किस स्तर पर ,लेकिन फिलहाल की स्थिति देखते हुए इतना तो कहा जा सकता है कि तालिबान के मसले पर भारत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है और ऐसा कोई भी बयान या कोई भी कदम उठाना नहीं चाहता जिससे वहां फंसे भारतीयों को कोई मुश्किल में डाल दे.

सूत्रों की मानें तो सरकार ने अपने तमाम मंत्रियों को अफगानिस्तान पर कोई भी बयान बाजी करने से मना कर दिया है. इतना ही नहीं सत्ताधारी पार्टी के तमाम नेताओं ने भी इस पर बोलने से मना कर दिया. सरकार फिलहाल पल पल पर नजर रखे हुए हैं और सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बुधवार के बाद ही सरकार अपनी स्थिति क्लियर करेगी या कोई सार्वजनिक बयान दिया जाएगा.

जानकारी देतीं ईटीवी भारत की संवाददाता

भारत सरकार के अफगानिस्तान के अलग अलग विकास परियोजनाओं में लगभग तीन बिलियन डालर की रकम लगी हुई है और तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद भारत की विकास परियोजनाओं की सराहना भी की है. वहां बड़ी संख्या में फंसे सिख समुदाय के लोगों की सुरक्षा को लेकर भी आश्वासन दिया गया है.

इस मामले पर विदेश मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व अधिकारी अनिल त्रिगुणायत ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि इसमें कोई शक नहीं कि अफगानिस्तान की हालत अब तालिबान के कब्जे के बाद काफी खराब है, लोग डरे हुए हैं. क्योंकि 20 साल तक लोगों ने तालिबानी हुकूमत को देखा है.

लोगों को अपने अधिकारों को लेकर खतरा है, बच्चों को अपनी तालीम पर खतरा है, अल्पसंख्यक को खतरा है. दरअसल, तालिबान की जो शरिया कानून की पॉलिसी है.लोग उससे डरे हुए हैं. हालांकि तालिबान भी अब काफी सोसल मीडिया कनेक्ट ओर ध्यान दे रहा ,और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंता को देखते हुए काफी स्मार्ट हो गए हैं इसलिए वो इस बात का ध्यान रख रहे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनपर कोई सैंक्शन्स न लगे इसलिए वो ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि शांतिपूर्ण सत्ता का हस्तांतरण हुआ है, स्थिति काफी संवेदनशील है.

अनिल त्रिगुणायत का बयान

पढ़ें - अफगान-तालिबान संकट पर सरकार की नजर, भारतीयों के संपर्क में विदेश मंत्रालय

कितना तालिबानियों पर भरोसा किया जा सकता है. ये तो समय बताएगा मगर तालिबानियों का जो वर्किंग स्टाइल है उसपर भरोसा करना काफी मुश्किल है. इसके अलावा इंटेलिजेंस एजेंसियां भी पूरी तरह नाकाम रही हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि जब दिख कि तालिबान आगे बढ़ रहा है तब अमेरिका ने अचानक हाथ पीछे खींच लिए.साथ ही वहां लीडरशिप वैक्यूम भी था.

Last Updated : Aug 16, 2021, 8:35 PM IST

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