हैदराबाद : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में हुए कथित हमले के बाद राज्य की सियासत में नया मोड़ आ गया है. तृणमूल कांग्रेस ने इसे 'बंगाल की शेरनी' पर हमला बताया है. पार्टी का कहना है कि न तो प्रधानमंत्री और न ही गृह मंत्री ने पूरे मामले पर अपना बयान दिया है. इन दोनों नेताओं ने ममता से फोनकर हाल भी नहीं पूछा है.
दरअसल, चुनाव से ठीक पहले टीएमसी को अचानक ही एक ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसका पार्टी अधिकतम राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है. ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी है कि वह व्हील चेयर पर प्रचार करेंगी. अब सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन इतना तो तया है कि प्रचार के दौरान इसका राजनीतिक संदेश बहुत प्रभावकारी हो सकती है. भाजपा इसे भलीभांति जानती है. इसलिए वह नई रणनीति पर विचार कर रही है.
ममता के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले शुभेंदु अधिकारी भी इसे अच्छी तरह जानते हैं. यही वजह है कि नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने कहा कि वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे. उन्हें पता था कि दुर्घटना से संबंधित कुछ भी बयान देंगे, तो ममता उसका फायदा उठाएंगी.
टीएमसी सुप्रीमो ममता राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं. 1974-75 से ही वह राजनीति में हैं. मुद्दों को कैसे उछाला जाता है, वह बखूबी जानती हैं.
ममता बनर्जी ने अपने कार्यों से अपनी छवि एक जुझारू नेता के तौर पर बनाई है. चार दशक के राजनीतिक करियर में चाहे उन पर हमले हुए हों या वह चोटिल हुई हों, हर बार वह अपने सार्वजनिक जीवन में मजबूती से उभरकर सामने आई हैं.
ऐसी घटनाओं के बाद जब-जब उन्होंने वापसी की, अपने विरोधियों पर और मजबूती से हमलावर हुईं.
1990 में सीपीएम के एक युवा नेता (लालू आलम) ने उनके सिर पर वार किया था, जिसके चलते उन्हें पूरे महीने अस्पताल में बिताना पड़ा था. लेकिन उसके बाद वह बेहद मजबूत नेता के तौर पर उभरीं.