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जानिए, बाल गंगाधर तिलक को क्यों कहा जाता है भारतीय अशांति का जनक?

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Published : Nov 7, 2021, 5:03 AM IST

देश को जल्द से जल्द से आजाद कराने के लिए तिलक ने केसरी और महरत्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित अपने लेखों से योगदान दिया, जिसने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. हम देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. ईटीवी भारत देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले उग्र नेता लोकमान्य तिलक को नमन करता है.

बाल गंगाधर तिलक
बाल गंगाधर तिलक

पुणे:देश इस साल आजादी का 75वां साल मना रहा है. इस मौके पर अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. बता दें, आजादी की लड़ाई में तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अहम योगदान दिया. उन्होंने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए थे. देश को स्वतंत्र कराने में बाल गंगाधर तिलक (bal gangadhar tilak) के सहयोग को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. आइये उनके योगदान पर डालते हैं एक नजर...

बाल गंगाधर तिलक ने देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे अवश्य प्राप्त करुंगा यह नारा दिया था. स्वतंत्रता आंदोलन में तिलक के योगदान के इस अमर नारे को कोई इतिहास प्रेमी भारतीय नहीं भूल सकता. अपने समय के सबसे बड़े कट्टरपंथियों में से एक बाल गंगाधर तिलक भारतीयों में बहुत लोकप्रिय थे जिन्होंने अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए आक्रामक तरीकों की वकालत की. उन्होंने साबित किया कि कैसे शब्द प्रतिष्ठानों को चुनौती देने और जनता को प्रेरित करने में भूमिका निभा सकते हैं.

बाल गंगाधर तिलक

देश को जल्द से जल्द से आजाद कराने के लिए उन्होंने मुख्य रूप से केसरी और महरत्ता समाचार पत्रों में प्रकाशित अपने लेखों के माध्यम से योगदान दिया, जिसने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. इसलिए, उन्हें अंग्रेजों द्वारा 'भारतीय अशांति का जनक' कहा जाता था. उन्होंने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया और भड़काऊ लेख लिखने के आरोप में जेल भेज दिया, जिससे उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि मिली, जिसका अर्थ है 'लोगों के स्वीकृत नेता'

इतिहासकार मोहन शेट्टे ने कहा कि तिलक के रुख को देखते हुए व्यापक रूप से सभी लोगों ने उन्हें स्वीकार किया क्योंकि वह अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

बता दें, लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था. 1866 में तिलक अपने माता-पिता के साथ रत्नागिरी से पुणे आ गए, जहां उन्होंने 1872 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. इससे पहले 1871 मेंउन्होंने कोंकण में बल्लाल बाल परिवार की सत्यभामाबाई से शादी की. मैट्रिक के बाद तिलक ने 1876 में पुणे डेक्कन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. यहीं उनकी मुलाकात गोपाल गणेश अगरकर से हुई और दोनों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए एक साथ लड़ने का फैसला किया.

इसके बाद 1881 में तिलक और अगरकर ने दो समाचार पत्र अंग्रेजी में केसरी और मराठी में महरत्ता शुरू किए. अगरकर केसरी के पहले संपादक बने तो तिलक ने महरत्ता का कार्यभार संभाला. हालांकि, अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई में रणनीति पर असहमति के कारण वे अलग हो गए और तिलक ने दोनों अखबारों को अपने कब्जे में ले लिया.

तिलक ने 1881 और 1920 के बीच 513 लेख लिखे. केसरी और महरत्ता में उनके लेखों को खूब सराहा गया और उन्हें ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने के लिए जेल में डाल दिया गया था. हालांकि, उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपना लेखन जारी रखा. तिलक अक्सर बोली जाने वाली कहावत को साबित कर रहे थे कि कलम तलवार से ताकतवर है और उन्होंने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ करने के लिए केसरी और महरत्ता का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया.

1905 में बंगाल के पहले विभाजन के बाद पूरे देश में दंगे भड़क उठे और हिंसक आंदोलन शुरू हो गए. आंदोलन के समर्थन में तिलक ने चार प्रमुख नारे लगाए: स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज्य. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को इकट्ठा करने के उद्देश्य से एक सार्वजनिक गणेशोत्सव भी शुरू किया. तिलक के परपोते रोहित तिलक ने कहा कि उनके दादा लोकमान्य तिलक ने पूरे देश में स्वराज्य की ज्योति जलाई. उन्होंने औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ लोगों को एक साथ लाने के लिए स्वराज्य के मंत्र का जाप किया.

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तिलक जैसे उत्साही स्वतंत्रता सेनानी की स्मृति आज भी कई लोगों को प्रेरित करती है जब हम देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. ईटीवी भारत देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले उग्र नेता लोकमान्य तिलक को नमन करता है.

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