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Jai Bhim : जातिवाद, पुलिस टॉर्चर और न्याय की कहानी बयां करती ऐसी फिल्में बॉलीवुड में क्यों नहीं बनती ?

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Published : Nov 22, 2021, 8:24 PM IST

'जय भीम', ये नाम इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर दुनियाभर की मीडिया तक में छाया हुआ है. ये तमिल सिनेमा की फिल्म IMDb रेटिंग्स के मामले में द गॉडफादर से लेकर द शॉशांक रिडंप्शन जैसी फिल्मों को पानी पिला चुकी है. सवाल है कि ऐसी फिल्में बॉलीवुड में क्यों नहीं बनती?

जय भीम
जय भीम

हैदराबाद:दिवाली पर अक्षय कुमार की 'सूर्यवंशी' और सुपर स्टार रजनीकांत की 'अन्नाते' ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के कई रिकॉर्ड बनाए लेकिन इन दोनों फिल्मों के साथ रिलीज़ हुई फिल्म 'जय भीम' ने जो मुकाम हासिल किया है वो इससे पहले किसी भी भारतीय फिल्म को नहीं मिला है. सूर्यवंशी और अन्नाते सिनेमा हॉल में रिलीज़ हुई तो जय भीम को ओटीटी पर रिलीज़ किया गया लेकिन दर्शकों ने इस फिल्म पर दिल खोलकर प्यार लुटाया है.

इंटरनेशनल न्यूज़ में 'जय भीम'

दरअसल 2 नवंबर को रिलीज़ हुई ये फिल्म करीब एक हफ्ते बाद ही IMDb रेटिंग लिस्ट में टॉप पर जगह बना ली. खास बात ये है कि फिल्म ने इस लिस्ट में लंबे वक्त से पहली और दूसरी पायदान पर मौजूद फिल्मों द शॉशांक रिडंप्शन (The Shawshank Redemption) और द गॉडफादर (The Godfather) को पछाड़ दिया. जिसके बाद इंटरनेशनल मीडिया में भी फिल्म खूब सुर्खियां बटोर रही है.

जातिवाद, पुलिस टॉर्चर और न्याय की सच्ची कहानी है जय भीम

जातिवाद, पुलिस टॉर्चर और न्याय की सच्ची कहानी

'जय भीम' तमिलनाडु की सच्ची घटना पर आधारित है. फिल्म की कहानी जातिवाद की गलियों से होते हुए पुलिस हवालात और फिर न्याय की चौखट तक पहुंचती है. इस बीच समाज और सिस्टम के बीच पिसते आदिवासियों की कहानी को बखूबी पर्दे पर उतारा गया है. फिल्म में दिखाई गई पुलिस बर्बरता किसी के भी जिस्म में सिहरन पैदा कर सकते हैं. टॉर्चर के दृश्य देखकर आप पुलिस को बिना कोसे नहीं रह पाएंगे. जातिवाद के नाम पर आदिवासियों पर जुल्म की सीमा एक लेवल और पहुंच जाती है. कई सीन सांकेतिक तो कुछ डायलॉग सीधे जातिवाद के सीने को छलनी और समाज को शर्मसार करते हैं.

पुलिस टॉर्चर और जातिवाद के जख्मों पर मरहम लगाती है न्यायपालिका, तमिल फिल्मों के सुपरस्टार सूर्या ने वकील की भूमिका निभाई है. फिल्म कोर्ट रूम ड्रामा नहीं है लेकिन न्याय को लेकर बनी सबसे बेहतरीन फिल्म कही जा सकती है. फिल्म न्यापालिका की ताकत का एहसास भी कराती है और न्याय पर भरोसे को और मजबूती देती है. फिल्म की कहानी जितनी मजबूत है उतनी ही अच्छी तरह से हर किरदार को निभाया गया है. एक मामूली किरदार से लेकर मुख्य भूमिका निभाने वाले सूर्या तक ने अपने किरदार सिर्फ निभाए नहीं है बल्कि उन्हें कैमरे के आगे जिया है.

साउथ फिल्म इंडस्ट्री में कंटेट की भरमार

कुछ साल पहले तक दक्षिण भारतीय सिनेमा की गिनी चुनी फिल्में ही हिंदी में डब होकर उत्तर भारत के दर्शकों तक पहुंचती थीं. जो पहुंचती थी वो अभी गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ठेंगा दिखाते फाइट सीन को लेकर हंसी की पात्र बनती थीं. लेकिन बीते करीब एक दशक में दक्षिण भारत का सिनेमा बहुत बदला है, तमिल से लेकर तेलुगु और मलयालम से लेकर कन्नड़ सिनेमा की फिल्मों में कंटेंट पर अच्छा काम किया है. खासकर मलयालम और तमिल सिनेमा की कई फिल्मों ने इस मामले में देशभर के सिनेमा को उन्नीस साबित किया है.

भारत की तरफ से ऑस्कर में ऑफिशियल एंट्री के रूप में पहुंची जलीकट्टू हो या कूझांगल या विसारनाय या फिर असुरन और कर्णन जैसी फिल्में हैं. जिनमें फिल्म निर्माताओं ने पुराने ढर्रे को ढहाते हुए नई कहानियां दर्शकों को परोसी हैं. सबसे ज्यादा बोलबाला सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों और जातिवाद, पुलिस टॉर्चर जैसे उन विषयों पर बनी फिल्मों का है जिनपर बात करने से इंडस्ट्री के लोग बचते हैं.

बॉलीवुड में क्यों नहीं बनती ऐसी फिल्में ?

बॉलीवुड में क्यों नहीं बनती ऐसी फिल्में

सिनेमा समाज का आइना हैं, ये बात इन दिनों दक्षिण भारतीय सिनेमा पर तो लागू होती है लेकिन बॉलीवुड को इस मामले में खुद आइना देखने की जरूरत है. जहां समाज या सच्चाई का फिल्मों से उतना ही लेना देना है जितना काल्पनिक कहानियों में वास्तविकता का, वैसे बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्में इसी कल्पना के इर्द गिर्द ही बुनी जाती हैं. फिल्म जय भीम और सूर्यवंशी में पुलिस का किरदार सबसे अहम था लेकिन एक फिल्म ने वास्तविकता के सहारे दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया और दूसरी में पुलिस की इमेज कल्पनाओं के ऐसी इमारत पर पहुंच गई जिससे ऊपर पहुंचना सिर्फ हॉलीवुड के लिए मुमकिन है.

IMDb पर टॉप रेटिंग्स वाली फिल्में

1) वास्तविकता से दूर- बीते कुछ सालों में दक्षिण भारतीय सिनेमा ने वास्तविकता को तरजीह दी है, यानि सच्ची घटनाओं से प्रेरित अच्छी कहानियां, जो समाज का आईना बनकर समाज को उसका चेहरा और इतिहास दिखा सके. बॉलीवुड में भी कुछ नए फिल्म मेकर वास्तविक घटनाओं को सिनेमा के पर्दे पर उकेर रहे हैं लेकिन इनकी तादाद बहुत कम है और ऐसी फिल्म साल में एक या दो ही नजर आती हैं. ज्यादातर फिल्में बिना सिर पैर के काल्पनिक ताने-बाने में बुनकर परोस दी जाती हैं.

वैसे बीते दिनों जलियांवाला नरसंहार के मुजरिम ब्रिटिश गवर्नर इंग्लैंड में जाकर मौत के घाट उतारने वाले उधम सिंह की कहानी को विक्की कौशल ने जीवंत कर दिया. ये फिल्म भी IMDb की टॉप-05 में शुमार है, अभिनय से लेकर रोंगटे खड़े करने वाले जलियांवाला बाग नरसंहार के दृश्य शानदार हैं, फिल्म को बायोपिक की श्रेणी में रखा गया लेकिन इतिहास के पन्ने टटोलकर सच निकालकर उसे पर्दे पर दिखाने की हिम्मत बॉलीवुड में कम ही लोग दिखा पाते हैं.

2) रीमेक और रटे रटाए फॉर्मूले- हिंदी फिल्म निर्माताओं का एक बड़ा तबका रटे रटाए और उस बोझिल ढर्रे से बाहर ही नहीं निकल पा रहा जिसपर वो बीते कई दशकों से फिल्में बना रहे हैं. हर तीन में से दो फिल्में घूम फिरकर प्रेम कहानी या बेवजह की एक्शन थ्रिलर बन जाती है. जिनके पास ऐसे आइडिया भी नहीं है वो हॉलीवुड से लेकर साउथ फिल्म इंडस्ट्री और इरान से लेकर कोरिया तक की फिल्मों का रीमेक बनाने में लगे हैं. कई एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर तो इन्ही रीमेक के जरिये अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने पर लगे हैं.

IMDB पर जय भीम को मिली है टॉप रेटिंग्स

3) चैलेंज- जय भीम की रिलीज के बाद फिल्म को लेकर कई विवाद भी सामने आ चुके हैं. जातिवाद पर चोट करती इस फिल्म के कई दृश्यों पर कुछ जाति विशेष के लोगों ने आपत्ति भी जताई है. सूर्या पर हमला करने वाले तक को ईनाम देने की घोषणा हुई है. वैसे जातिवाद के मुद्दे पर दक्षिण भारत में कई फिल्में हैं और इसमें तमिल सिनेमा सबसे आगे है. लेकिन जातिवाद जैसे मुद्दों पर चोट करने वाली ऐसी फिल्म बनाने का चैलेंज लेने से बॉलीवुड कोसो दूर है. 2019 में आई आयुष्मान खुराना की फिल्म आर्टिकल 15 जातिवाद के मुद्दे पर जरूर बनी लेकिन उसके मुख्य किरदार अगड़ी जाति से ताल्लुक रखते थे. फिल्म अच्छी थी लेकिन जय भीम की तरह जातिवाद के उस दलदल में नहीं उतर पाई जहां उतरने की हिम्मत दक्षिण भारतीय फिल्मकार करते हैं.

इसके अलावा दक्षिण भारतीय फिल्मों में ग्रामीण अंचल, परिवार या सच्चाई के किस्सों से लबरेज जो कहानियां सिनेमा का कैमरा कैद करता है वो मुंबई पहुंचते-पहुंचते सिर्फ और सिर्फ चमक-धमक और सच से परे के किस्सों को ही कैप्चर करता है. जहां मकसद सिर्फ और सिर्फ बॉक्स ऑफिस से पैसा कमाना है 100 करोड़ी से लेकर 200 करोड़ी क्लब में शामिल होना है. दक्षिण भारत की पुरानी फिल्मों के कुछ वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर मीम्स बनकर तैरते हैं जिन्हें लॉजिक या विज्ञान के दम तोड़ने के रूप में दिखाया जाता है लेकिन आज बॉलीवुड में ऐसी फिल्मों और बड़े-बड़े तथाकथित सुपरस्टार्स की फिल्मों में ऐसे बिना लॉजिक के सीन्स की भरमार होती है.

कैसे तय होती है IMDb रेटिंग्स

IMDb पर टॉप रेटिंग्स वाली फिल्में

IMDb एक पब्लिक डोमेन वेबसाइट और एप है. जहां आपको दुनियाभर की फिल्मों से लेकर वेब सीरीज, टीवी शोज, सेलिब्रिटीज या किसी अवॉर्ड, इवेंट की जानकारी का पूरा लेखा-जोखा होता है. ये एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां फिल्मों की रेटिंग देखने के बाद लोग किसी फिल्म या वेब सीरीज देखने का प्लान करते हैं लेकिन आप भी IMDb के जरिये किसी फिल्म को रेटिंग दे सकते हैं. IMDb पर एकाउंट बनाकर जब आप साइन इन करते हैं तो किसी भी फिल्म को सर्च करने के बाद उसे रेटिंग दे सकते हैं, जो कि 1 से 10 नंबर के बीच देनी होती है.

IMDb पर फिल्म की रेटिंग एक स्टार के साथ लिखी होती है और उसी के साथ एक आंकड़ा भी दिखता है. जो बताता है कि इस फिल्म को कितने लोगों ने रेटिंग दी है. यानि जितने ज्यादा लोग किसी फिल्म के लिए रेट या वोट करेंगे तो उसकी विश्वसनीयता उतनी ही बढ़ेगी. ये फिल्म की अच्छी और बुरी रैंकिंग दोनों में ध्यान देने वाली बात है.

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