दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

उत्तराखंड सीएम की रेस में धामी के साथ यह नाम भी शामिल, जानें किसका पलड़ा भारी

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 संपन्न हो गया जिसमें बीजेपी ने 43 सीटें जीतकर बंपर बहुमत भी पा ली. वहीं कांग्रेस सिर्फ 18 सीटें ही जीत पाई. लेकिन इसमें एक गड़बड़ भी हो गई की सीएम धामी चुनाव हार गए. अब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया है की उत्तराखंड का मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? तो देखते हैं एक विश्लेषण की धामी कैसे फिर सीएम बन सकते हैं और बाकी नेताओं में से क्या कोई और सीएम बन सकता है? पढ़ें पूरा विश्लेषण...

uttarakhand assembly elections 2022
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022

By

Published : Mar 11, 2022, 3:42 PM IST

Updated : Mar 11, 2022, 3:48 PM IST

देहरादून:मतगणना के बाद उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बनना तय हो गया है. 47 सीटों के साथ बीजेपी ने बहुमत के आंकड़े को आसानी से पार कर लिया है. मगर सीएम धामी के खटीमा से चुनाव हारने के कारण मुख्यमंत्री पद का मामला थोड़ा रोचक हो गया है. हर किसी की जुबान पर बस एक ही सवाल है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा. तो आइए उत्तराखंड बीजेपी के कुछ नेताओं में संभावना टटोलते हैं कि इनमें से कौन मुख्यमंत्री बनेगा?

पुष्कर सिंह धामी: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी फिर से एक सरप्राइजिंग पैकेज हो सकते हैं. गुरुवार को चुनाव परिणाम आने के बाद कई नेताओं के बयान आए कि धामी को ही सीएम बनाना चाहिए. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने भी उनकी हार पर दुख जताया. उन्होंने कहा कि धामी के पास पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी थी. इसलिए वो अपनी सीट खटीमा में ज्यादा समय नहीं दे पाए थे. उनके साथ सतपाल महाराज ने भी उनकी तारीफ की है.

धामी ऐसे बन सकते हैं सीएम:अगर बीजेपी हाईकमान का धामी में विश्वास बना रहा तो धामी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. इसके लिए उन्हें 6 महीने के अंदर चुनाव लड़कर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी जिसमें कोई बड़ी बात नहीं है. बीजेपी का कोई भी विधायक धामी के लिए अपनी सीट छोड़ सकता है. इसके बाद धामी उस सीट से छह महीने के अंदर चुनाव जीतकर विधानसभा के सदस्य बन सकते हैं.

चंपावत विधायक ने सीट खाली करने का ऑफर भी दिया: चंपावत विधानसभा सीट से चुनाव जीते बीजेपी के कैलाश चंद्र गहतोड़ी ने तो धामी के लिए सीट छोड़ने का ऑफर तक पेश कर दिया है. अगर धामी चंपावत से चुनाव लड़ते हैं तो जीतकर विधानसभा पहुंच सकते हैं. 2014 में जब हरीश रावत कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री बने थे तो उनके लिए धारचूला से विधायक हरीश धामी ने सीट खाली की थी. धारचूला से चुनाव जीतकर हरीश रावत विधानसभा पहुंचे थे.

पुष्कर सिंह धामी का प्लस प्वाइंट:पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में ही उत्तराखंड बीजेपी ने चुनाव लड़ा. बीजेपी ने चुनाव में 47 सीटें जीतकर उत्तराखंड का ये मिथक तोड़ा कि यहां सरकारें रिपीट नहीं होती है. धामी बीजेपी आलाकमान की आंखों का तारा हैं. राजनाथ सिंह से उनकी यूपी के छात्र राजनीति के समय से ही नजदीकी रही है. राजनाथ जब यूपी के मुख्यमंत्री थे तब लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़े पुष्कर सिंह धामी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के महामंत्री रहे थे.

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी तो पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक गुरु हैं. जब कोश्यारी 2002 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो धामी उनके ओएसडी रहे थे. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी धामी को पसंद करते हैं. इसके अलावा उन्होंने 6 महीने जो मुख्यमंत्री के रूप में बिताए वो विवाद से रहित रहे. उन्होंने कोई विवादित बयान नहीं दिया और सभी मंत्रियों, विधायकों से उनके संबंध अच्छे रहे. ऐसे में बीजेपी धामी को फिर से सीएम की कुर्सी पर बिठा सकती है.

वरिष्ठ पत्रकार आलोक शुक्ल क्या कहते हैं: पिछले कुछ दिनों की राजनीतिक हलचल का विश्लेषण करने के बाद वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आलोक शुक्ल कहते हैं पुष्कर सिंह धामी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. क्योंकि धामी ने अपने छोटे से कार्यकाल में जिस तरह से सरकार को संभाला और निर्णय लिए उससे उनकी परिपक्वता झलकती है. धामी के मुख्यमंत्री बनने के दो रास्ते हैं. पहले जो चंपावत के विधायक कैलाश गहतोड़ी जिन्होंने धामी के लिए अपने सीट से इस्तीफा देने की घोषणा की है. दूसरा बीजेपी अपने किसी विधायक की सीट गंवाए बिना एक निर्दलीय को राज्यमंत्री पद देकर उसकी सीट पर पुष्कर सिंह धामी को चुनाव लड़ा सकती है. हालांकि आखिरी फैसला विधायक दल की बैठक में ही होगा. लेकिन ये संभावनाएं पुष्कर सिंह धामी को फिर से मुख्यमंत्री बना सकती हैं.

धन सिंह रावत: पिछली बार जब बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम की कुर्सी से उतारा था तो उत्तराखंड में ये आम चर्चा थी कि धन सिंह रावत अगले मुख्यमंत्री बन सकते हैं. लेकिन आखिरी मौके पर पार्टी ने तीरथ रावत को सीएम बना दिया था. इस बार भी धन सिंह रावत सीएम की रेस में सबसे आगे हैं. जब तीरथ को हटाया तो उत्तराखंड में ऐसा वातावरण तैयार हो गया था कि अब तो धन सिंह रावत की सीएम बनेंगे. उनके राजतिलक की तैयारियां होने की खबरें भी आने लगी थीं. लेकिन बीजेपी हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया था.

ये भी पढ़ें:उत्तराखंड के रण में फिर चला मोदी 'मैजिक', फीका रहा राहुल-प्रियंका का 'जादू'

संघ से निकले नेता हैं: धन सिंह आरएसएस के जमाने से ही समर्पित कार्यकर्ता के साथ खांटी बीजेपी नेता हैं. इस बार तो उनका राजनीतिक बायोडाटा और रिच हो गया है. उन्होंने पौड़ी जिले की श्रीनगर सीट से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को धूल चटा दी है. दूसरी मुख्य विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष को हराना अपने आप में बड़ा कारनामा माना जाता है. धन सिंह रावत भी इस जीत से फूले नहीं समा रहे हैं.

धन सिंह रावत का प्लस प्वाइंट: धन सिंह रावत शांत और सौम्य नेता माने जाते हैं. वो विवादों से दूर रहते हैं. बीजेपी आलाकमान उन्हें पसंद भी करता है. उनके बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से संबंध भी अच्छे हैं. ऐसे में इस बार मुख्यमंत्री पद पर धन सिंह रावत की लॉटरी लग सकती है.

ये भी पढ़ें:गंगोत्री की बादशाहत बरकरार, जिसकी सीट उसकी सरकार का मिथक नहीं टूटा

सतपाल महाराज:चौबट्टाखाल सीट से चुनाव जीतकर आए सतपाल महाराज मूल रूप से आध्यात्मिक गुरु हैं. उनकी राजनीति कांग्रेस से शुरू हुई थी. हरीश रावत के साथ विवाद के चलते 2014 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी. दरअसल उनकी हरीश रावत से कतई नहीं बनती थी. दूसरा जब विजय बहुगुणा को सीएम की कुर्सी से हटाया गया था तो सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. जब जानी दुश्मन मुख्यमंत्री बन गया तो फिर सतपाल महाराज का उस पार्टी में रहना संभव नहीं था. इसलिए सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी.

सतपाल महाराज का प्लस प्वाइंट: सतपाल महाराज भी शांत प्रवृत्ति के नेता हैं. वो विवादों से दूर रहते हैं. राज्य की अफसरशाही में भी सतपाल महाराज का अच्छा रेपो है. उन्हें अनावश्यक विवाद खड़ा करने वाला नेता नहीं माना जाता है. हालांकि उनके मन में भी मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा दबी हुई है लेकिन बीजेपी में आने के बाद उन्होंने कभी इसे प्रकट नहीं किया. इस बार का चुनाव जीतने के बाद भी उन्होंने कहा कि वो सीएम बनने की रेस में नहीं हैं. पार्टी हाईकमान जो निर्णय करेगा वह उन्हें मान्य होगा.

बिशन सिंह चुफाल: पिथौरागढ़ की डीडीहाट सीट के जीतकर आए बिशन सिंह चुफाल को बीजेपी के शांत और सौम्य नेताओं में से माना जाता है. जब त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री थे तो उस समय अपनी उपेक्षा की शिकायत लेकर वो हाईकमान के पास दिल्ली जरूर गए थे. लेकिन इसके अलावा आमतौर पर उनका स्वभाव शांत है. चुफाल एक दुर्गम जिले से आते हैं. पिथौरागढ़ की सीमाएं चीन-तिब्बत और नेपाल से लगती हैं. पिथौरागढ़ जिले से बीजेपी को इस बार एक सीट का नुकसान हुआ है. उसे चार में से दो सीटें मिलीं. एक हल्की सी उम्मीद है कि बीजेपी इस बार बिशन सिंह चुफाल को सीएम बना सकती है.

बिशन सिंह चुफाल का प्लस प्वाइंट:बिशन सिंह चुफाल पारंपरिक नेता हैं. उन्हें दुनिया-जहान के झमेलों से कुछ लेना-देना नहीं रहता है. इस समय वो धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में 4 मंत्रालय संभाल रहे थे. उनके पासपेयजल, वर्षा जल संग्रहण, ग्रामीण निर्माण और जनगणना जैसे विभाग थे. चुफाल के नाम पर कोई विवाद नहीं है. उन पर भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं हैं. संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है. बिशन सिंह चुफाल को बीजेपी के सौम्य नेताओं में गिना जाता है इसलिए बीजेपी हाईकमान उनकी इन बातों का संज्ञान ले सकता है.

अजय भट्ट:अजय भट्ट नैनीताल-उधम सिंह नगर लोकसभा सीट से केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री हैं. भट्ट की बीजेपी संगठन और आरएसएस दोनों में मजबूत पकड़ है. उनका दुर्भाग्य रहा कि जब-जब ये माना गया कि वो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे तब-तब वो रानीखेत विधानसभा सीट से चुनाव हार गए. 2007 में पहली बार ऐसा हुआ लेकिन 2017 में भी यही कहानी दोहराई गई.

लेकिन बीजेपी हाईकमान को अजय भट्ट पर अटूट विश्वास रहा है. विधायकी का चुनाव हारने के बावजूद 2019 में बीजेपी ने अजय भट्ट को नैनीताल-उधम सिंह नगर से लोकसभा का बड़ा चुनाव लड़ा दिया. अजय भट्ट ने भी बीजेपी हाईकमान खासकर पीएम मोदी और अमित शाह को निराश नहीं किया और लोकसभा का चुनाव जीत गए. भट्ट ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत को पटखनी दी थी.

ये भी पढ़ें:कुमाऊं में जीत ने BJP को सौंपी सत्ता की चाभी, दो महारथियों को न भूलने वाला जख्म भी दिया

अजय भट्ट का प्लस प्वाइंट:अजय भट्ट के कई प्लस प्वाइंट हैं. उन्हें बीजेपी का अनुशासित नेता माना जाता है. वे कभी गलत बयानबाजी नहीं करते हैं और संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है. इसके साथ ही पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही तमाम वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का विश्वास प्राप्त है. वे किसी गुटबाजी में नहीं पड़ते हैं और उनपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप भी नहीं लगा है. वो पार्टी के लोगों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं. ऐसे में बीजेपी, अजय भट्ट पर सीएम का दांव खेल सकती है.

अनिल बलूनी: अनिल बलूनी राज्यसभा सांसद हैं. उनकी पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ नजदीकी जग-जाहिर है. मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो तभी से अनिल बलूनी के उनसे घनिष्ठ संबंध रहे हैं. मोदी के केंद्रीय राजनीति में आने और प्रधानमंत्री बनने के बाद अनिल बलूनी का राजनीतिक कद बढ़ता चला गया. पहले उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया और फिर प्रवक्ताओं का हेड बना दिया गया. इसके बाद उन्हें राज्यसभा का सांसद बना दिया गया.

बलूनी का प्लस प्वाइंट:पत्रकार से नेता बने अनिल बलूनी सौम्य माने जाते हैं. हालांकि वो ज्यादातर दिल्ली में रहते हैं, लेकिन पहाड़ के मद्दों को लेकर संजीदा रहते हैं. चाहे वो रेल से जुड़ी समस्याएं हों या फिर मोबाइल नेटवर्क को लेकर उत्तराखंड के लोगों की समस्या. अनिल बलूनी हर बार इस पर काम करते और संबंधित विभागों के मंत्रियों से मिलते रहते हैं. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से नजदीकी होने के चलते अनिल बलूनी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है.

ये भी पढ़ें:पिता की हार का बदला लेकर कोटद्वार पहुंची ऋतु खंडूड़ी का भव्य स्वागत, पढ़िए किसे किया पहला फोन

बंशीधर भगत:लोकतंत्र की सबसे पहली सीढ़ी यानी ग्राम प्रधान से उत्तराखंड बीजेपी का अध्यक्ष बनने का बंशीधर भगत का सफर उन्हें विशेष बनाता है. उत्तराखंड के ताकतवर नेताओं में शामिल भगत की पूछ उत्तर प्रदेश के जमाने से ही रही है. वे यूपी में कल्याण सिंह की सरकार में राज्यमंत्री रहे और उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उन्होंने भाजपा की हर सरकार में बड़ा मंत्रालय संभाला है. बंशीधर भगत ने सात बार चुनाव लड़ा और छह बार जीत दर्ज की. 2002 में वह हल्द्वानी विधानसभा सीट पर कांग्रेस नेता डॉ. इंदिरा हृदयेश से चुनाव हार गए थे. हालांकि अगले ही चुनाव में उन्होंने इंदिरा जैसी कद्दावर नेता को हराकर बदला लेने के साथ ही अपने कद को भी साबित किया था.

बंशीधर भगत के प्लस प्वाइंट:बंशीधर भगत आमजन के नेता हैं. उन्होंने राजनीति की शुरुआती सीढ़ी से अपनी पारी शुरू की है तो इस कारण कार्यकर्ताओं के दर्द को समझते हैं. लोगों की समस्याओं के लिए अफसरों से भिड़ जाते हैं. पार्टी संगठन में अच्छी पकड़ है. हालांकि जल्दी ताव खा जाते हैं जिससे उनका वाणी पर नियंत्रण खो जाता है. इसके बावजूद बंशीधर भगत सीएम की दौड़ में सबको चौंका सकते हैं.

रमेश पोखरियाल निशंक:वेकेंद्र में शिक्षा मंत्री का पद संभाल चुके हैं. स्वास्थ्य समेत कुछ अन्य कारणों से केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ने वाले रमेश पोखरियाल भी सीएम पद के दावेदार हो सकते हैं. उनके पास यूपी के समय से मंत्री पद संभालने का अनुभव रहा है तो वो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे चुके हैं.

ये भी पढ़ें:मोदी लहर में भी डूबी इन तीन दोस्तों की नैय्या, जानें कैसे तीन तिगाड़ा का काम बिगड़ा!

रमेश पोखरियाल निशंक का प्लस प्वाइंट: निशंक शिशु मंदिर के शिक्षक से मंत्री मुख्यमंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं. आरएसएस में भी उनकी अच्छी पकड़ है. हालांकि वीते वक्त में लगे भ्रष्टाचार के आरोप के दाग उनके आड़े आ सकते हैं. इसके बावजूद चुनाव प्रचार के दौरान जैसे निशंक आगे आए और मतगणना से पहले उनकी सक्रियता देखी गई उससे उनका दावा मजबूत दिखाई दे रहा है.

किसी महिला को सीएम बनाकर बीजेपी चौंका सकती है: BJP हाईकमान हमेशा से ही चौंकाने वाले फैसला करता आया है. बीजेपी की पिछली सरकार में जो तीन लोग त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और धामी मुख्यमंत्री बने चुनाव से पहले और बाद में दूर-दूर तक उनके नाम की चर्चा तक नहीं थी. बीजेपी हाईकमान ने सबको चौंकाते हुए इन तीनों को बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनाया.

मदन कौशिक:बीजेपी के इस नेता ने पांचवीं बार हरिद्वार से चुनाव जीता है. वो इस समय उत्तराखंड बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं. हालांकि इस बार हरिद्वार जिले में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने हरिद्वार जिले की 11 सीटों में से 8 सीटें जीती थीं. इस बार पार्टी इस जिले से सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई और बीजेपी को पूरे पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इसके लिए मदन कौशिक को दोषी ठहराया जा रहा है. मदन कौशिक पर कुछ बीजेपी नेताओं ने उन्हें हरवाने के लिए भीतरघाट करवाने का आरोप भी लगाया था. ऐसे में कौशिक का दावा कमजोर साबित हो सकता है, क्योंकि बीजेपी अनुशासन वाली पार्टी है. अगर जांच में ये बातें सही पाई गईं तो मदन कौशिक के अध्यक्ष पद पर भी खतरा होगा. वोटिंग के बाद की घटनाओं ने मदन कौशिक की स्थित को सीएम की दौड़ में कमजोर कर दिया. नहीं तो वो सीएम की रेस में हो सकते थे.

बीजेपी की 6 महिला उम्मीदवार जीती हैं: इस बार बीजेपी से छह महिला प्रत्याशी चुनाव जीती हैं. अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर सीट से रेखा आर्य चुनाव जीती हैं. कोटद्वार सीट से पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडू़ड़ी की बेटी ऋतु चुनाव जीती हैं. नैनीताल सीट से सरिता आर्य चुनाव जीती हैं. देहरादून कैंट से सविता कपूर चुनाव जीती हैं. शैलारानी रावत ने केदारनाथ से जीत हासिल की है. रेनू बिष्ट ने यमकेश्वर से जीत हासिल की है. बीजेपी हाईकमान अगर किसी महिला को सीएम की कुर्सी पर बिठाने का प्लान बना रहा हो तो ऋतु खंडूड़ी और रेखा आर्य में से किसी को मौका मिल सकता है. रेखा आर्य को सीएम बनाकर बीजेपी पहली दलित सीएम दे सकती है.

ये भी पढ़ें:लैंसडाउन में हरक की साख को लगा बड़ा झटका, चुनाव हारी बहू अनुकृति गुसाईं, दलीप रावत ने लगाई जीत की हैट्रिक

यूपी, महाराष्ट्र और हरियाणा में चौंका चुके हैं: इससे पहले यूपी महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी हाईकमान मुख्यमंत्री को लेकर चौंका चुका है. 2017 में जब यूपी में मनोज सिन्हा और केशव मौर्य मुख्यमंत्री की दौड़ में नंबर 1 और नंबर 2 थे तो बीजेपी हाईमान ने अचानक योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया था. महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस का नाम कम ही लोगों ने सुना था लेकिन उन्हें अचानक मुख्यमंत्री बना दिया गया था. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर भी ऐसे ही अचानक मुख्यमंत्री बना दिए गए थे. ऐसे में बीजेपी हाईकमान मुख्यमंत्री पद पर कोई भी चौंकाने वाला फैसला ले सकता है. इन नामों के अलावा भी जिस पर किसी की उम्मीद नहीं हो वो भी मुख्यमंत्री बन जाए तो चौंकने वाली बात नहीं होगी.

उत्तराखंड के राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं:उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि बीजेपी फिर से धामी को मुख्यमंत्री बना सकती है. इसके लिए उसे अपने एक विधायक को इस्तीफा दिलाना होगा और उस सीट से जीतकर धामी विधानसभा पहुंच जाएंगे. इसके साथ ही वो कहते हैं कि बीजेपी धन सिंह रावत और सतपाल महाराज पर भी दांव खेल सकती है. बिष्ट का कहना है कि इन दोनों में भी धन सिंह रावत का पलड़ा भारी लगता है क्योंकि वो मूल रूप से भाजपाई हैं. जब विधानमंडल दल के नेता का चुनाव होगा तो बीजेपी मूल कैडर के विधायक सतपाल महाराज की बजाय धन सिंह रावत के पक्ष में वोट देंगे.

बीरेंद्र बिष्ट का ये भी कहना है कि बंशीधर भगत और बिशन सिंह चुफाल भी दौड़ में हो सकते हैं, लेकिन ये दोनों नेता इतने हाई प्रोफाइल नहीं हैं कि इनका दावा मजबूत माना जाए. बीरेंद्र कहते हैं कि बीते दिनों अनिल बलूनी का नाम चर्चा में था, लेकिन अब उनके नाम की चर्चा नहीं हो रही है.

Last Updated : Mar 11, 2022, 3:48 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details